फज़ाइले-सदकात – १६

‘उलमा-ए-आख़िरत की बारह अलामात

बारहवीं अलामत:

बारहवीं अलामत बिदआत (बिदअत) से बहुत शिद्दत और एहतिमाम से बचना है, किसी काम पर आदमियों की कसरत का जमा हो जाना कोई मोतबर चीज़ नहीं।

बल्कि असल इत्तिबा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम का है और यह देखना है कि सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम का क्या मामूल रहा है और उसके लिए उन हज़रात के मामूलात और अह़्वाल का ततब्बु’अ और तलाश करना और उसमें मुन्हमिक रहना ज़रूरी है।

हज़रत हसन बसरी रह़िमहुल्लाह का इर्शाद है कि दो शख़्स बि‌अती हैं जिन्होंने इस्लाम में दो बिदअतें जारी कीं:

एक वह शख़्स जो यह समझता है कि दीन वह है जो उसने समझा है और जो उसकी राय की मुवाफ़कत करता है, वही नाजी (निजात पाने वाला) है।

दूसरा वह शख़्स जो दुनिया की परस्तिश (पूजा) करता है, उसी का तालिब है, दुनिया कमाने वालों से खुश होता है और जो दुनिया न कमावें, उन से ख़फा होता है।

इन दोनों आदमियों को जहन्नम के लिए छोड़ दो और जिस शख़्स को हक तआला शानुहू ने इन दोनों से महफूज़ रखा हो, वह पहले अकाबिर का इत्तिबा करने वाला है, उनके अहवाल और तरीके की पैरवी करने वाला है, उसके लिए इंशाअल्लाह बहुत बड़ा अज्र है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु का इर्शाद है कि तुम लोग ऐसे ज़माने में हो कि इस वक़्त ख़्वाहिशात इल्म के ताबे हैं, लेकिन अन्क़रीब एक ऐसा ज़माना आने वाला है कि इल्म ख़्वाहिशात के ताबे होगा यानी जिन चीज़ों को अपना दिल चाहेगा, वही उलूम (इल्म) से साबित की जायेंगी।

बाज़ बुजुर्गों का इर्शाद है कि सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के ज़माने में शैतान ने अपने लश्करों को चारों तरफ भेजा, वो सब के सब फिर फिरा कर निहायत परेशान हाल, थके हुए वापस हुए।

उसने पूछा क्या हाल है? वो कहने लगे कि इन लोगों ने तो हमको परेशान कर दिया हमारा कुछ भी असर इन पर नहीं होता, हम इनकी वजह से बड़ी मशक़्क़त में पड़ गये।

उसने कहा कि घबराओ नहीं यह लोग अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम के सोहबत याफ्ता है, इन पर तुम्हारा असर मुश्किल है, अन्क़रीब ऐसे लोग आने वाले हैं जिन से तुम्हारे मकासिद पूरे होंगे।

उसके बाद ताबिईन के ज़माने में उसने अपने लश्करों को सब तरफ फैलाया, वो सब के सब उस वक़्त भी परेशान हाल वापस हुए।

उसने पूछा: क्या हाल है? कहने लगे कि इन लोगों ने तो हमें दिक (परेशान) कर दिया, ये अजीब किस्म के लोग हैं कि हमारी अग़राज़ (गरज़) इनसे कुछ पूरी हो जाती हैं, मगर जब शाम होती है तो अपने गुनाहों से ऐसी तौबा करते हैं कि हमारा सारा किया कराया बर्बाद हो जाता है।

शैतान ने कहा कि घबराओ नहीं, अन्क़रीब ऐसे लोग आने वाले हैं जिनसे तुम्हारी आंखें ठंडी हो जायेंगी, वो अपनी ख़्वाहिशात में दीन समझ कर ऐसे गिरफ्तार होंगे कि उनको तौबा की भी तौफीक न होगी। वो बद्दीनी को दीन समझेंगे।

चुनांचे ऐसा ही हुआ कि बाद में शैतान ने उन लोगों के लिए ऐसी बिदआत (बिदअत) निकाल दीं जिनको वो दीन समझने लगे, उस से उनको तौबा कैसे नसीब हो।

यह बारह अलामात मुख़्तसर तरीके से ज़िक्र की गयीं हैं, जिनको अल्लामा ग़ज़ाली रह़िमहुल्लाह ने तफ्सील से ज़िक्र किया है।

इसलिए उलमा को अपने मुहासबा (हिसाब) के दिन से ख़ास तौर से डरने की ज़रूरत है कि उनका मुहासबा भी सख़्त है, उनकी ज़िम्मेदारी भी बढ़ी हुई है और कियामत का दिन जिसमें यह मुहासबा होगा बड़ा सख़्त दिन होगा।

अल्लाह तआला शानुहू महज़ अपने फ़ज़्ल व करम से उस दिन की सख्ती से महफूज़ रखे।

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