दुवा की सुन्नतें और आदाब – ६

(९) अल्लाह तआला की ओर पूरा ध्यान रखकर दुआ करें। गफलत और लापरवाही से दुआ न करें और दुआ करते समय इधर-उधर न देखें।

हज़रत अबू-हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फरमाया: “अल्लाह तआला से दुआ करो, दुआ के क़ुबूल होने का यक़ीन करते हुए और याद रखो कि अल्लाह तआला गाफिल और बेपरवाह दिल की दुआ क़ुबूल नहीं करते हैं।

(१०) अपनी तमाम छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए अल्लाह तआला से दुआ करें।

हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फरमाया: तुममें से हर शख़्स अपने रब से अपनी ज़रूरत या सारी ज़रूरतें (रिवायत करने वाले को शक है) मांगे; यहाँ तक कि अगर तुममें से किसी के चप्पल का पट्टा टूट जाए तो उसे चाहिए कि वह अल्लाह तआला से उसका भी सवाल करे और (अगर उसे नमक की ज़रूरत पड़े तो) उसको चाहिए कि वह अल्लाह से नमक का भी सवाल करे।

(११) सिर्फ मुसीबत और परेशानी के वक़्त दुआ न करें; बल्कि तमाम हालत में दुआ करें, चाहे हालात अच्छे हों या बुरे।

हज़रत अबू-हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फरमाया: जो शख़्स यह चाहता है कि अल्लाह तआला मुसीबत और परेशानी के वक़्त में उसकी दुआ क़बूल करे, तो वह ख़ुशहाली में कसरत के साथ दुआ करे।
(कसरत = बहुत-बहुत)

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