फज़ाइले-आमाल – २०

सहाबा रद़ियल्लाहु अन्हुम के हंसने पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की तंबीह और क़ब्र की याद

नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम एक मर्तबा नमाज़ के लिए तशरीफ़ लाए, तो एक जमाअत को देखा कि वह खिलखिला कर हंस रही थी और हंसी की वजह से दांत खिल रहे थे।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि अगर मौत को कसरत से याद किया करो तो जो हालत मैं देख रहा हूं, वह पैदा न हो; लिहाजा मौत को कसरत से याद किया करो।

क़ब्र पर कोई दिन ऐसा नहीं गुज़रता, जिसमें वह आवाज़ न देती हो कि मैं बेगान्गी का घर हूं, तन्हाई का घर हूं, मिट्टी का घर हूं, कीड़ों का घर हूं।

जब कोई मोमिन क़ब्र में रखा जाता है तो वह कहती है कि तेरा आना मुबारक है। बहुत अच्छा किया, तू आ गया। जितने आदमी ज़मीन पर चलते थे तू उन सब में मुझे ज्यादा पसन्द था। आज जब तू मेरे पास आया है तो मेरे बेहतरीन सुलूक को देखेगा।

इसके बाद वह क़ब्र जहां तक मुर्दे की नज़र पहुंच सके, वहां तक वसीअ हो जाती है और एक दरवाज़ा उसमें जन्नत का खुल जाता है जिससे वहां की हवा और खुश्बू उसको आती रहती हैं।

और जब कोई बद-किरदार क़ब्र में रखा जाता है तो वह कहती है, तेरा आना ना-मुबारक है, बुरा किया जो तू आया। ज़मीन पर जितने आदमी चलते थे, उन सब में तुझ ही से मुझे ज़्यादा नफ़रत थी। आज जब तू मेरे हवाले हुआ है तो मेरे बर्ताव को भी देख लेगा।

इसके बाद वह इस तरह से उसको दबाती है कि पसलियां आपस में एक दूसरे में घुस जाती हैं और सत्तर (70) अज़दहे उस पर ऐसे मुसल्लत हो जाते हैं कि अगर एक भी ज़मीन पर फुंकार मारे तो उसके असर से ज़मीन पर घास तक बाक़ी न रहे, वो उसको क़ियामत तक डसते रहते हैं।

इसके बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि ने इर्शाद फ़रमाया कि क़ब्र या जन्नत का एक बाग़ है या जहन्नम का एक गढ़ा है।

फ़ायदा:  अल्लाह का खौफ़ बड़ी ज़रूरी और अहम चीज़ है। यही वजह है कि हुज़ूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम अक्सर किसी गहरी सोच में रहते थे।

और मौत का याद करना उसके लिए मुफीद है। इसीलिए हुज़ूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने यह नुस्खा इर्शाद फ़रमाया, कभी-कभी मौत को याद करते रहना बहुत ही ज़रूरी और मुफीद है।

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