फज़ाइले-आमाल – १८

हज़रत इब्ने अब्बास रद़ियल्लाहु अन्हुमा की नसीहत

वहब बिन मुनब्बह रह़िमहुल्लाह कहते हैं कि हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रद़ियल्लाहु अन्हुमा की ज़ाहिरी बीनाई (आंखो की रौशनी) जाने के बाद, मैं उनको ले जा रहा था। वह मस्जिदे ह़राम में तशरीफ़ ले गए।

वहां पहुंचकर एक मज्मे’ से कुछ झगड़े की आवाज़ आ रही थी। फ़रमाया, मुझे उस मज्मे’ की तरफ़ ले चलो, मैं उस तरफ़ ले गया।

वहाँ पहुंचकर आपने सलाम किया। उन लोगों ने बैठने की दर्खास्त की तो आपने इन्कार फर्मा दिया और फ़रमाया कि तुम्हें मालूम नहीं कि अल्लाह के खास बन्दों की जमाअत वो लोग हैं, जिनको उसके खौफ़ ने चुप कर रखा है, हालांकि वो न आजिज़ हैं न गूंगे, बल्कि फ़सीह लोग हैं, बोलने वाले हैं, समझदार हैं मगर अल्लाह तआला की बड़ाई के ज़िक्र ने उनकी अक्लों को उड़ा रखा है, उनके दिल उसकी वजह से टूटे रहते हैं और ज़बानें चुप रहती हैं और जब इस हालत पर उनको पुख्तगी मुयस्सर हो जाती है तो उसकी वजह से नेक कामों में वो जल्दी करते हैं, तुम लोग उनसे कहाँ हट गए?

वहब रह़िमहुल्लाह कहते हैं कि उसके बाद मैंने दो आदमियों को भी एक जगह जमा नहीं देखा ।

फ़ायदा – हजरत इब्ने अब्बास रद़ियल्लाहु अन्हुमा अल्लाह के खौफ़ से इस क़दर रोते थे कि चेहरे पर आसुओं के हर वक़्त बहने से दो नालियां सी बन गई थीं।

ऊपर के क़िस्से में हजरत इब्ने अब्बास रद़ियल्लाहु अन्हुमा ने नेक कामों पर एहतिमाम का यह एक सहल नुस्खा बतलाया कि अल्लाह की अज़्मत और उसकी बड़ाई का सोच किया जाये कि इसके बाद हर क़िस्म का नेक अमल सहल है और फिर वह यक़ीनन इख्लास से भरा हुआ होगा।

रात-दिन के २४ घंटों में अगर थोड़ा सा वक़्त भी हम लोग इसके सोचने की खातिर निकाल लें, तो क्या मुश्किल है?

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