फज़ाइले-आमाल – १०

दूसरा बाब: अल्लाह जल्ल जलालुहू व ‘अम्म नवालुहू का ख़ौफ़ और डर

दीन के साथ इस जांफ़िशानी के (जान छिड़कने के) बावजूद, जिसके क़िस्से अभी गुज़रे और दीन के लिए अपनी जान व माल, आबरू सब कुछ फ़ना कर देने के बाद जिसका नमूना अभी आप देख चुके हैं, अल्लाह जल्ल शानुहू का ख़ौफ़ और डर, जिस क़दर इन हज़रात में पाया जाता था, अल्लाह करे कि उसका कुछ शम्मा (हिस्सा) हम सियहकारों को भी नसीब हो जाये।

मिसाल के तौर पर इसके भी चन्द क़िस्से लिखे जाते हैं:

आंधी के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम का तरीक़ा

हजरत आइशा रद़िय अल्लाहु अन्हा फ़र्माती हैं कि जब अब्र, आंधी वगैरह होती थी तो हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम के चेहरा-ए-अन्वर पर उस का असर ज़ाहिर होता था और चेहरे का रंग फ़क़ हो जाता था और खौफ़ की वजह से कभी अन्दर तशरीफ़ ले जाते थे और कभी बाहर तशरीफ़ लाते और यह दुआ पढ़ते रहते:
(अब्र=बादल,घटा,मेघ)

اَللّٰهُمَّ إِنِّيْ أَسْئَلُكَ خَيْرَهَا وَخَيْرَ مَا فِيْهَا وَخَيْرَ مَا أُرْسِلَتْ بِهْ وَأَعُوْذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا فِيْهَا وَشَرِّ مَا أُرْسِلَتْ بِهْ

या अल्लाह इस हवा की भलाई चाहता हूं और जो इस हवा में हो, बारिश वगैरह उसकी भलाई चाहता हूं और जिस ग़रज़ से यह भेजी गई, उसकी भलाई चाहता हूं। या अल्लाह ! मैं इस हवा की बुराई से पनाह मांगता हूं और जो चीज़ इसमें है और जिस ग़रज़ से यह भेजी गई, उसकी बुराई से पनाह मांगता हूं।’

और जब बारिश शुरू हो जाती तो चेहरे पर इंबिसात (खुशी) शुरू होता। मैंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम) सब लोग जब अब्र देखते हैं तो खुश होते हैं कि बारिश के आसार (निशानी) मालूम हुए, मगर आप पर एक गरानी (भारीपन) महसूस होती है।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम ने इर्शाद फ़र्माया, आइशा मुझे इसका क्या इत्मीनान है कि इसमें अज़ाब न हो। क़ौमे-आद को हवा के साथ ही अज़ाब दिया गया और वह अब्र को देख कर खुश हुए थे कि इस अब्र में हमारे लिए पानी बरसाया जायेगा, हालाँकि उसमें अज़ाब था।

अल्लाह जल्ल शानुहू का इर्शाद है-

فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُّسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَٰذَا عَارِضٌ مُّمْطِرُنَا ۚ بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُم بِهِ ۖ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ ‎﴿٢٤﴾‏ تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا فَأَصْبَحُوا لَا يُرَىٰ إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ ‎﴿٢٥﴾‏

तर्जुमा-उन लोगों ने (यानी क़ौमे-आद ने) जब उस बादल को अपनी वादियों के मुक़ाबिल आते देखा तो कहने लगे, यह बादल तो हम पर बारिश बरसाने वाला है (इर्शादे-खुदावन्दी हुआ कि), नहीं, बरसाने वाला नहीं, बल्कि यह वही (अज़ाब है) जिसकी तुम जल्दी मचाते थे (और नबी अलैहिस्सलाम से कहते थे कि अगर तू सच्चा है तो हम पर अज़ाब ला), एक आंधी है, जिसमें दर्दनाक अज़ाब है जो हर चीज़ को अपने रब के हुक्म से हलाक कर देगी। चुनांचे वो लोग आंधी की वजह से ऐसे तबाह हो गए कि बजुज़ (सिवाय) उनके मकानात के कुछ न दिखलाई देता था और हम मुजरिमों (गुनेहगारों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं ।’

फ़ायदा: यह अल्लाह के खौफ़ का हाल उसी पाक ज़ात का है जिसका सय्यिदुल-अव्वलीन वल-आखिरीन (अगलों-पिछलों के सरदार) होना खुद उसी के इर्शाद से सबको मालूम है।

खूद कलामे-पाक में यह इरशाद है कि अल्लाह तआला ऐसा न करेंगे कि उनमें आपके होते हुए उन को अजाब दें।

इस वादा-ए-खुदावन्दी के बावजूद फिर हुज़ूरे-अक़्दस सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम के ख़ौफ़े-इलाही का यह हाल था कि अब्र और आंधी को देख कर पहली क़ौमों के अज़ाब याद आ जाते थे।

उसी के साथ एक निगाह अपने हाल पर भी करना है कि हम लोग हर वक़्त गुनाहों में मुब्तला रहते हैं और ज़लज़लों और दूसरी क़िसम के अज़ाबों को देखकर बजाए इस से मुतास्सिर (असर लेते) होने के, तौबा, अस्तग्फ़ार, नमाज़ वग़ैरह में मशगूल होने के, दूसरी क़िस्म-क़िस्म की लग्व-तहक़ीक़ात (बेकार रिसर्च, मालूमात) में पड़ जाते हैं।

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