दुवा की सुन्नतें और आदाब – ५

(१) दुआ के शुरू में अल्लाह तआला की ह़म्द-ओ-सना बयान करें और उस के बाद नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम पर दुरूद भेजें, फिर इन्तिहाई आजिज़ी-व-ख़ाकसारी और अदब-ओ-आदर के साथ अल्लाह तआला के सामने अपनी ज़रूरतें पेश करें।

हज़रत फ़ुज़ाला बिन उबैदुल्लाह रद़िय अल्लाहु अन्हू फ़रमाते हैं कि एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम मस्जिद में बैठै हुए थे कि एक शख़्स (मस्जिद में) आया। उस ने नमाज़ पढ़ी, फिर उस ने दुआ कीः ए अल्लाह! मुझे बख़्श दीजिए और मुझ पर रहम फ़र्माए, तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम ने उस से कहाः ए नमाज़ पढ़ने वाले! तु ने (दुआ करने में) जल्दी की, जब तुम नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर (दुआ करने के लिए) बैठ जाओ, तो पहले अल्लाह तआला की उस की शान के मुताबिक तारीफ़ करो और मुझ पर दुरूद भेजो, फिर अल्लाह तआला से दुआ करो. रावी फ़रमाते हैं कि उस के बाद एक दूसरे शख़्स ने नमाज़ अदा की, नमाज़ के बाद उस ने दुआ की, (दुआ में) उसने अल्लाह तआला की हम्द की और नबी सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम पर दुरूद भेजा, तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम ने उस से फ़रमायाः ए नमाज़ पढ़ने वाले! दुआ करो, तुम्हारी दुआ क़बूल की जाएगी। (क्यूंकि तुम ने दुआ के आदाब के मुताबिक दुआ की।)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रद़िय अल्लाहु अन्हू फ़रमाते हैं कि जब तुम में से कोई दुआ करना चाहे, तो उस को चाहिए कि वह सबसे पहले अल्लाह तआला की उन की शान के लायक तारीफ़ करे. जिस के वह हकदार हैं, फ़िर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम पर दुरूद भेजे, उस के बाद दुआ करे; क्यूंकि (इस तरीक़े से दुआ करने में) कामयाबी की ज़्यादह उम्मीद है। (क्यूंकि उस ने दुआ के आदाब के मुताबिक दुआ कर रहा है।)

(२) दुआ के वक़्त अपने हाथों को अपने सीने तक उठाएँ।

हज़रत सलमान फारसी रद़िय अल्लाहु अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम ने फ़र्माया: बेशक अल्लाह तआला निहायत मेहरबान और सखी है, (उसकी मेहरबानी और सखावत का यह हाल है कि) उस को इस बात से शर्म आती है कि वो उस शख़्स को खाली हाथ वापस कर दें, जो उस के सामने अपने हाथों को उठाता है।

(३) दुआ के दौरान जब आप हाथ उठाएं तो अपनी हथेलियों को आसमान की ओर रखें।

हज़रत मालिक बिन यसार रद़िय अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने फ़र्माया: जब तुम अल्लाह तआला से दुआ मांगो, तो अपने हाथों की हथेलियों का रुख आसमान की तरफ रखकर मांगो। अपने हाथों के उपर वाले हिस्से को आसमान की तरफ करके न मांगो (यानी दुआ करते समय अपनी हथेलियों को नीचे की ओर न रखें)।

(४) दुआ करते समय दोनों हथेलियों के बीच थोड़ी दूरी रखें।

(५) जब आप दुआ करें तो अल्लाह तआला के सामने अपनी पूरी आजिज़ी (विनम्रता), बेबसी और कमज़ोरी व्यक्त करें और पूरी इन्किसारी और तवाज़ु के साथ धीमी आवाज में अल्लाह तआला से अपनी जरूरतें मांगें।

(इन्किसारी= टूटी हुई हालत में)
(तवाज़ु= अपने आप को ह़कीर रखना, नम्रता)

कुराने-करीम में अल्लाह तआला का इर्शाद है:

وَاذۡکُرۡ رَّبَّکَ فِیۡ نَفۡسِکَ تَضَرُّعًا وَّخِیۡفَة وَّدُوۡنَ الۡجَهرِ مِنَ الۡقَوۡلِ بِالۡغُدُوِّ وَالۡاٰصَالِ وَلَا تَکُنۡ مِّنَ الۡغٰفِلِیۡنَ ﴿۲۰۵﴾

याद किया कर अपने रब को अपने जी में, गिड़गिड़ा कर और खौफ के साथ, और बात (आवाज) को बुलंद किए बगैर, सुबह-शाम और मत हो जाना गाफिल रहने वालों में से।

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