‘उलमा-ए-आख़िरत की बारह अलामात
दूसरी अलामत
दूसरी अलामत यह है कि उसके कौल व फेल (कहने और करने) में तआरूज़ (इख़्तिलाफ) न हो, दूसरों को खैर का हुक्म करे और खुद उस पर अमल न करे। हक तआला शानुहू का इर्शाद है:-
أَتَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنسَوْنَ أَنفُسَكُمْ وَأَنتُمْ تَتْلُونَ الْكِتَابَ ۚ
‘क्या गज़ब है कि दूसरों को नेक काम करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते, हालांकि तुम तिलावत करते रहते हो किताब की।
दूसरी जगह इर्शाद है:-
كَبُرَ مَقْتًا عِندَ اللَّهِ أَن تَقُولُوا مَا لَا تَفْعَلُونَ
‘अल्लाह तआला के नज़दीक यह बात बहुत नाराज़ी की है कि ऐसी बात कहो, जो करो नहीं।
हातिम असम रहिमहुल्लाह कहते हैं कि क़ियामत के दिन उस आलिम से ज़्यादा हसरत वाला कोई न होगा जिसकी वजह से दूसरों ने इल्म सीखा और उस पर अमल किया, वो तो कामयाब हो गए और वह खुद अमल न करने की वजह से नाकाम रहा।
इब्ने सिमाक रहिमहुल्लाह कहते हैं: कितने शख़्स ऐसे हैं, जो दूसरों को अल्लाह तआला की याद दिलाते हैं, खुद अल्लाह तआला को भूलते हैं, दूसरों को अल्लाह तआला से डराते हैं, खुद अल्लाह तआला पर जुर्रत करते हैं, दूसरों को अल्लाह तआला का मुकर्रब बनाते हैं, ख़ुद अल्लाह तआला से दूर हैं, दूसरों को अल्लाह तआला की तरफ बुलाते हैं, खुद अल्लाह तआला से भागते हैं।
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन गनम रहिमहुल्लाह कहते हैं कि मुझसे दस सहाबा-ए-किराम रद़िय अल्लाहु अन्हुम ने यह मज़्मून बयान किया कि हम लोग कुबा की मस्जिद में बैठे हुए इल्म हासिल कर रहे थे, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम तशरीफ लाए और फ़रमाया कि जितना चाहे इल्म हासिल कर लो, अल्लाह तआला के यहां से अज्र (उजरत,वेतन) बगैर अमल के नहीं मिलता। (पेज नंबर: १२०-१२१)