अपने आमाल को हकीर समझना
सदका देने के बारे में एक अदब यह है कि अपने सदके को ह़कीर समझे, उसको बड़ी चीज़ समझने से ‘उज्ब (खुद पसंदी) पैदा होने का अंदेशा है, जो बड़ी हलाकत की चीज़ है और नेक आमाल को बर्बाद करने वाली है।
हक तआला शानुहू ने भी कुरआने-पाक में त’अन् (ताने) के तौर पर इसको ज़िक्र फरमाया है। चुनांचे इर्शाद है:-
وَيَوْمَ حُنَيْنٍ ۙ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنكُمْ شَيْئًا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ الْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُم مُّدْبِرِينَ ﴿٢٥﴾ ثُمَّ أَنزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا
और ह़ुनैन के दिन (भी तुमको गल्बा दिया था) जब कि (यह किस्सा पेश आया था) तुमको अपने मज्मे की कसरत से घमंड पैदा हो गया था, फिर वह कसरत तुम्हारे कुछ काम न आयी और (कुफ़्फ़ार के तीर बरसाने से तुम्हें इस कदर परेशानी हुई कि) ज़मीन अपनी वुसअत के बावजूद तुम पर तंग हो गई, फिर तुम (मैदाने जंग से) मुंह फेर कर भाग गए। इसके बाद अल्लाह जल्ल शानुहू ने अपने रसूल और मोमिनीन पर तसल्ली नाज़िल फ़रमायी और ऐसे लश्कर (फरिश्तों के) तुम्हारी मदद के लिए भेजे, जिनको तुमने नहीं देखा।
इसका किस्सा कुतुबे-अहादीस में मशहूर है। कसरत से रिवायात इस किस्से के बारे में वारिद हुई हैं, जिनका खुलासा यह है कि रमज़ानुल-मुबारक सन् 08 हिजरी में, जबकि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का-मुकर्रमा को फतह कर लिया, तो कबीला हवाज़िन और सकीफ पर हमले के लिए रमज़ान ही में तशरीफ ले गये।
चूंकि मुसलमानों की जमइय्यत उस वक़्त पहले ग़ज़वात के लिहाज़ से बहुत ज़्यादा हो गई थी तो उनमें अपनी कसरत पर ‘उज्ब (गुमान) पैदा हुआ कि हम इतने ज़्यादा हैं कि मग्लूब नहीं हो संकते। इसी बिना पर कि हक तआला शानुहू को घमंड और उज्ब बहुत ना पसंद है, इब्तिदा में मुसलमानों को शिकस्त हुई, जिस की तरफ से आयते-बाला में इशारा है कि तुम को अपने मज्मे की कसरत पर घमंड पैदा हुआ, लेकिन मज्मे की कसरत तुम्हारे कुछ भी काम न आयी।
हज़रत ‘उर्वह रहिमहुल्लाह फरमाते हैं कि जब अल्लाह के पाक रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने मक्का मुकर्रमा फतह कर लिया तो कबीला हवाज़िन और सकीफ़ के लोग चढ़ाई करके आये और मौज़ा हुनैन में वो लोग जमा हो गये।
हज़रत हसन रज़ि० से नकल किया गया कि जब मक्का वाले भी फतह के बाद मदीने वालों के साथ जमा हो गए, तो वो लोग कहने लगे कि वल्लाह! अब हम इकट्ठे होकर हुनैन वालों से मुकाबला करेंगे। हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उन लोगों की यह घमंड की बात गरां गुज़री और ना पसंद हुई।
गर्ज़ ‘उज्ब की वजह से यह परेशानी पेश आयी। ‘उलमा ने लिखा है कि नेकी जितनी भी अपनी निगाह में कम समझी जाएगी, उतनी ही अल्लाह तआला के यहां बड़ी समझी जाएगी, और गुनाह जितना भी अपनी निगाह में बड़ा समझा जाएगा, उतना ही अल्लाह तआला के यहां हल्का और कम समझा जाएगा, यानी हल्के से गुनाह को भी यही समझे कि मैंने बहुत बड़ी हिमाकत की, हरगिज़ हरगिज़ न करना चाहिए था। किसी गुनाह को भी यह न समझो कि चलो इसमें क्या हो गया। (पेज नंबर: ३७६ – ३७८)