फज़ाइले सदकात – २

अल्लाह त’आला की नेमतें

एक हदीस में है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सूरत (सूरह तकाषुर) तिलावत फरमायी और जब यह पढ़ा –

ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ

फिर उस दिन, नेमतों से सवाल किए जाओगे।

तो इर्शाद फरमाया कि तुम्हारे रब के सामने तुमसे ठंडे पानी का सवाल किया जाएगा, मकानों के साए का सवाल किया जाएगा (कि हमने धूप और बारिश से बचने के लिए साया अता किया था) पेट भराई खाने से सवाल किया जाएगा, आज़ा के सही सालिम होने से सवाल किया जाएगा। (कि हमने हाथ पांव, आंख नाक कान वगैरह सही सालिम अता किए थे, उनका क्या हक अदा किया?) मीठी नींद से सवाल किया जाएगा, हत्ताकि अगर तुमने किसी औरत से मंगनी चाही और किसी और शख़्स ने भी उस औरत से मंगनी चाही और अल्लाह त’आला ने तुमसे उसका निकाह करा दिया तो उससे भी सवाल होगा, कि यह हक त’आला शानुहू का तुम पर एहसान था कि बेटी वालों के दिल में हक तआला शानुहू ने यह बात डाली कि वो तुमसे उसका निकाह करें, दूसरे से न करें।

और उन चीज़ों को जो इस हदीस शरीफ में ज़िक्र की गयीं, गौर करने से आदमी अंदाज़ा कर सकता है कि उस पर हर वक़्त अल्लाह तआला शानुहू के किस कदर एहसानात हैं, और इन चीज़ों में गरीब अमीर सब ही शरीक हैं। कौन शख़्स गरीब से गरीब, फ़कीर से फ़कीर ऐसा है जिस पर हर वक़्त अल्लाह तआला शानुहू के बेइन्तिहा इनामात न बरसते हों? एक सेहत और आज़ा की तन्दुरूस्ती ही ऐसी चीज़ है और इससे बढ़कर हर वक़्त सांस का आते रहना ही एक ऐसी नेमत है जो हर वक़्त हर ज़िंदा को मुयस्सर है।

एक और हदीस में है कि जब यह सूरह नाज़िल हुई तो बाज़ सहाबा रज़ि. ने अर्ज किया, या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)। कौन सी नेमतों में हम हैं? जौ की रोटी, वह भी आधी भूख मिलती है, पेट भर कर नहीं मिलती तो अल्लाह तआला ने “वह़ी” भेजी कि आप उनसे फरमायें, क्या तुम जूता नहीं पहनते? ठंडा पानी नहीं पीते? यह भी तो अल्लाह तआला की नेमतों में से हैं।

एक और हदीस में है कि कियामत के दिन सबसे पहले जिन नेमतों का सवाल होगा, वह बदन की सेहत और ठंडा पानी है।

एक हदीस में है कि जिन नेमतों का सवाल होगा, वह रोटी का टुकड़ा है जिसको खाए और वह पानी है जिससे प्यास बुझाए और वह कपड़े का टुकड़ा है जिससे बदन छुपाए।

एक और हदीस में है कि एक मर्तबा सख़्त धूप में दोपहर के वक़्त हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ि० मस्जिदे नबवी में तशरीफ ले गये, हज़रत उमर रज़ि० को ख़बर हुई वह भी अपने घर से तशरीफ लाए और हज़रत अबूबक्र रज़ि से पूछा कि इस वक़्त कैसे आना हुआ?

उन्होंने फरमाया कि भूख की शिद्दत ने मजबूर किया। हज़रत उमर रज़ि॰ ने फरमाया, उस ज़ात की कसम! जिसके कब्ज़े में मेरी जान है। इसी बेचैनी ने मुझे भी मजबूर किया।

ये दोनों इसी हाल में थे कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने दौलतकदे (मुबारक घर) से तशरीफ लाये और उनसे दर्याफ्त किया कि तुम इस वक़्त कहां आये? उन्होंने अर्ज किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! भूख की शिद्दत ने मजबूर किया। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इसी मजबूरी से मैं भी आया हूँ।

ये तीनों हज़रात उठकर हज़रत अबूअय्यूब अंसारी रज़ि० के मकान पर तशरीफ ले गए, वह खुद तो मौजूद नहीं थे, उनकी अहलिया (बीवी) ने बहुत ख़ुशी का इज़हार किया। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दर्याफ्त किया कि अबूअय्यूब कहाँ हैं? बीवी ने अर्ज किया कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, अभी आते हैं।

इतने में अबूअय्यूब रज़ि० आ गये और जल्दी से खजूर का एक खोशा तोड़ कर लाए। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, सारा खोशा क्यों तोड़ लिया? इसमें से पक्की पक्की क्यों न छांट लीं?

उन्होंने अर्ज किया, हज़रत ! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस ख़्याल से तोड़ लिया कि पक्की और अधकचरी और खुश्क व तर हर किस्म की सामने हो जायें, जिसकी रग्बत हो। इन हज़रात ने हर किस्म की खजूरें उस खोशे में से नोश फ़रमायीं।

इतनी देर में हज़रत अबूअय्यूब रज़ि० ने एक बकरी का बच्चा ज़बह़ करके जल्दी से कुछ हिस्सा आग पर भूना, कुछ हांडी में पकाया और इन हज़रात के सामने लाकर रखा।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़रा सा गोश्त एक रोटी में लपेट कर अबूअय्यूब रज़ि० को दिया कि यह फातिमा को दे आओ। उसने भी कई दिन से ऐसी कोई चीज़ नहीं खाईं। वह जल्दी से दे आए। इन हज़रात ने गोश्त रोटी खाया।

उसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया (अल्लाह की इतनी नेमतें खाईं) गोश्त और रोटी और कच्ची खजूरें, पक्की खजूरें यही फरमाते हुए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों में आँसू भर आये और इर्शाद फरमाया कि यही वो नेमतें हैं जिनसे कियामत में सवाल होगा।

सहाबा रज़ि को यह सुनकर बड़ा शाक हुआ (कि ऐसी सख़्त भूख की हालत में ये चीजें भी बाज़पुर्स के काबिल हैं।) हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, बेशक हैं, और इसकी तलाफ़ी यह है कि जब शुरू करो तो बिस्मिल्लाह के साथ शुरू करो और जब ख़त्म करो तो, यह दुआ पढ़ो :-

الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي هُوَ اشْبَعَنَا وَأَنْعَمَ عَلَيْنَا وَأَفْضَلَ

तमाम तारीफें सिर्फ अल्लाह ही के लिए हैं कि उसीने हमको (महज़ अपने फज़ल से) पेट भर कर अता किया और हम पर इन्आम फरमाया और बहुत ज्यादा अता किया।

Check Also

फज़ाइले-सदकात – ११

‘उलमा-ए-आख़िरत की बारह अलामात छठी अलामत: छठी अलामत उलमा-ए-आख़िरत की यह है कि फत्वा सादिर …