दुवा की सुन्नतें और आदाब – ४

दुआ की क़ुबूलियत के समय

अज़ान और जिहाद के वक्त

हज़रत सहल बिन सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: दो वक्त की दुआ रद नहीं की जाती हैं या बहुत कम रद की जाती हैं: एक अज़ान के वक्त और दूसरी जिहाद के वक्त, जब दोनों लश्कर एक दूसरे से लड़ने लगे।

अज़ान और इका़मत के दरम्यान

हज़रत अनस रदि अल्लाहु ‘अन्हू से मन्कू़ल है कि हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: अज़ान और इका़मत के दरम्यान की दुआ रद नहीं की जाती है।

आधी रात के वक्त

हज़रत उस्मान बिन अबिल-आस सक़फी रदि अल्लाहु ‘अन्हू से मरवी है कि हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: आधी रात गुज़रने के बाद आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं, फिर एक फरिश्ता पुकारता है: क्या कोई दुआ करने वाला है; ताकि उसकी दुआ क़बूल की जाए? क्या कोई मांगने वाला है; ताकि उसकी फर्माइश पूरी की जाए? क्या कोई परेशान हाल है; ताकि उसकी परेशानी दूर की जाए? फिर जो भी मुसलमान दुआ करता है, अल्लाह त’आला उसकी दुआ क़बूल फ़रमाते हैं सिवाय ज़िनाकार औरत के और उस शख्स के जो लोगों का हक़ ज़बरदस्ती छीन लेता है।

फ़र्ज़ नमाज़ के बाद और तहज्जुद के वक्त

हज़रत अबू उमामा रदि अल्लाहु ‘अन्हू फ़रमाते हैं कि एक बार नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा गया: कौन सी दुआ ज़्यादा सुनी जाती है? (और ज़्यादा क़बूल की जाती है) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: रात के आखिरी हिस्से की दुआ और फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ।

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