जब हज़रत फातिमा रदि अल्लाहु ‘अन्हा का निकाह हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु से हुआ, तो आप सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम ने हज़रत फातिमा रदि अल्लाहु ‘अन्हा से फ़रमाया:
मैं ने आप का निकाह अपने रिश्तेदारों में से उस शख्स से किया है जो मुझे सबसे ज़्यादा मह़बूब है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु को कब्रों को हमवार करने (समतल करने), बुतों को तोड़ने और तस्वीरें मिटाने के लिए भेजना
हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु बयान करते हैं कि एक मर्तबा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक सहाबी की नमाज़ें जनाजा़ पढ़ाई।
उसके बाद, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु ‘अन्हुम को मुखातब करके फ़रमाया:
तुम में से कौन इस बात के लिए तैयार है कि वो मदीना वापस जाए और जहां कोई बुत देखे, उसे तोड़ दे और जहां कोई ऐसी क़बर देखे जो ऊंची बनाई गई हो (यानी ज़मीन की सतह से जाइज़ हद से ऊंची हो या उस पर कोई इमारत बनाई गई हो) तो उसे बराबर कर दे। (यानी शरीयत में जितनी ऊंचाई की इजाजत है, उसके मुताबिक कर दें) और जहाँ भी वह (जानदार चीजों की) कोई तस्वीर देखे, उसे फ़ौरन तबाह और नष्ट कर दे?
यह सुनकर, एक सहाबी ने अर्ज़ किया: मैं यह काम करूँगा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम!
हालाँकि, शहर में दाखिल होने से पहले, वो अपने लोगों के खौफ से मग़लूब हो गए; इसलिए वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वापस आए और इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में जाहिर की (असमर्थता जताई)।
हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु उस समय मौजूद थे। उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा: मैं जाऊंगा, हे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
उसके बाद, हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गए और जो ज़िम्मेदारी आपको सौंपी गई थी, उसे पूरा किया।
वापस आने के बाद, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा:
हे अल्लाह के रसूल, सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! मैं ने शहर में कोई बुत नहीं छोड़ा, सिवाय यह कि मैं ने उसे तोड़ दिया, न कोई कब्र छोड़ी; मगर मैंने उसे बराबर कर दिया (यानी जो कब्र जाइज़ हद से ज़्यादा ऊँची बनाई गई थी, मैंने उसे जाइज़ हद के मुताबिक बना दिया) और न कोई (जानदार की) तस्वीर नज़र आई; मगर मैंने उसे तबाह कर दिया.
उसके बाद, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
जो शख्स उनमें से कोई भी काम दोबारा करेगा (यानी क़बरों को जाइज़ हद से ज़्यादा ऊंची करना या उस पर इमारत बनाना या जानदार चीजों की तस्वीर बनाना), तो उसने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल की गई चीज़ों की नाफरमानी और नाशुक्री की ( यानी, वो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल किये हुए दीन के हुक्मों की नाकद्री की।)
इस वाकए से हमे हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु की बेमिसाल बहादुरी और जुर्अत देख सकते है।
इसी तरह, इस वाकए से यह वाज़ेह और स्पष्ट है कि हज़रत अली रदि अल्लाहु ‘अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मुबारक फ़रमान को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।