मोहब्बत का बग़ीचा (तीसवां प्रकरण)‎

بسم الله الرحمن الرحيم

हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) की बुज़ुर्गी और सच्चाई का क़िस्सा

हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) छठ्ठी सदी हीजरी के जलीलुल क़दर उलमा अने उच्च तरीन बुज़ुर्गाने दीन में से थे. अल्लाह तआला ने आप को बे पनाह मक़बूलियत अता फ़रमाई थी जिस की वजह से आप के मुबारक हाथ पर हज़ारों लोगों ने गुनाहों और बदकारियों से तौबा की थी. आप बहोत से ज़ाहिरी तथा बातिनी कमालात तथा अवसाफ़ और महासिन के हामिल थे. आप के निराले अवसाफ़ तथा मुबारक आदतों में से दो नुमायां आदतेंः रास्त गोई (सच्चाई) और अमानत दारी सूची के शिर्ष पर थीं.

नीचे आप की रास्त गोई (सच्चाई) का एक मशहूर वाकिया नक़ल किया जाता है जिस से बहोत से लोगों के दिल प्रभावित हुए, यहां तक के उस ज़माने के डाकू और गुनेहगार लोग भी प्रभावित हुए और अपने गुनाहों से बाज़ आ गए थे और अल्लाह तआला के नेक बंदों में शामिल हो गए थे.

जब हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) ने दीनी इल्म सीखने का इरादा किया, तो अपनी वालिदा से इजाज़त मांग कर उन्होंने बग़दाद की तरफ़ सफ़र किया और उस ज़माने के बड़े उलमा से दीनी इल्म सीखा. तथा हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) जब इल्म हासिल करने के लिए बग़दाद के लिए रवाना हुए, तो आप की वालिदा माजिदा ने चालीच दीनार आप की गुदडी में बग़ल के नीचे से सिल दिए और बेटे को रूख़्सत करते वक़्त यह नसीहत की के बेटा तुम हंमेशा सच बोलना और हरगिज़ झूट न बोलना. हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.)ने अपनी वालिदा माजिदा की अनमोल नसीहत को दिल में ले लिया और उस पर निय्यत (अज़म) किया के वह हंमेशा सच ही बोलेंगे और आख़री सांस तक उस पर अमल पैरा रहेगा.

वालिदा से दुआऐं ले कर हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.)बग़दाद जाने वाले एक क़ाफ़ले के साथ चल पड़े. सफ़र के दौरान सांठ ड़ाकुवों ने क़ाफ़ले पर हमला कर दिया और क़ाफ़ले वालों का पूरा माल तथा मताअ लूट लिया. हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.)फ़रमाते हैं के एक ड़ाकू मेरे पास आया और पूछाः ए लड़के ! तुम्हारे पास क्या हैं ? में ने कहाः मेरे पास चालीस दीनार हैं. उस ने पूछाः कहां हैं? में ने जवाब दिया के वह मेरे कपड़े में बग़ल के नीचे सिले हुए हैं. ड़ाकु ने सोचा के में उस के साथ मज़ाक़ कर रहा हुं. लिहाज़ा वह मुझे छोड़ कर चला गया.

कुछ देर बाद दूसरा ड़ाकू आया. उस ने भी वही सवाल किया. मे ने उस को भी वही जवाब दिया जो पेहले वाले को दिया था. उस ने भी यही सोचा के में उस के साथ मज़ाक़ कर रहा हुं, लिहाज़ा वह मुझे छोड़ कर चला गया. दोनों ड़ाकुवों ने यह बात अपने सरदार को बताई, तो सरदार ने उन दोनों को हुकम दिया के उस लड़के को मेरे पास लावो.

चुनांचे इन दोनों ने हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) को उस के सामने लाकर हाज़िर किया. उस ने पूछाः ए लड़के ! तुम्हारे पास क्या है? हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) फ़रमाते हैं के में ने जवाब दियाः चालीस दीनार. उस ने पूछाः कहां है? में ने कहाः मेरे कपड़े में बग़ल के नीचे सिले हुए हैं.

ड़ाकू के सरदार ने तअज्जुब से पूछा के ए लड़के ! तुम्हें मालूम है के हम ड़ाकू हैं. हम लोगों का माल लूट लेते हैं, आख़िर तुम्हें किस चीज़ ने सच बोलने पर आमादा किया? में ने जवाब दिया के सफ़र पर रवाना होते वक़्त मेरी वालिदा ने मुझे यह नसीहत की थी के हंमेशा सच बोलना और झूट कभी न बोलना और में ने उस वक़्त यह वादा किया था के में हंमेशा सच ही बोलुंगा और कभी झूट नहीं बोलुंगा. इस लिए में ने तुम्हें सच सच बता दिया.

ड़ाकूवों का सरदार आप का यह जवाब सुन कर बहोत ज़्यादा प्रभावित हुवा और रोने लगा फिर उस ने कहाः ए लड़के ! तुम ने अपनी मां के अहद का इतना ख़्याल रखा और उस को तोड़ना नहीं चाहा जब के में इतने सालों से अपने रब के अहद को तोड रहा हुं (यअनी में ड़ाका ज़नी और गुनाहों का इरतिकाब कर रहा हुं), यह केह कर उस ने ड़ाका ज़नी और गुनाहों से सच्ची तौबा कर ली.

जब दूसरे ड़ाकूवों ने देखा के उन के सरदारने तौबा कर ली है, तो सब ने बयक ज़बान हो कर कहाः आप रहज़नी में हमारे सरदार थे, अब आप तौबा में भी हमारे सरदार हैं, लिहाज़ा हम भी आप के साथ तौबा करते हैं. फिर सब ने तौबा कर ली और लूटा हुवा सारा माल क़ाफ़ले वालों को लौटा दिया.

इस वाक़िये से मालूम हुवा के जब शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी (रह.) ने रास्त गोई (सच्चाई) और अमानत दारी को मज़बूती से पकड़ लिया, तो अल्लाह तआला ने उन का यह अमल लोगों की हिदायत का ज़रिया बनाया, लिहाज़ा साठ (६०) ड़ाकू अपने गुनाहों से ताईब हो गए और राहे रास्त पर आ गए. अगर हम भी अपनी ज़िन्दगी को उस के मुवाफ़िक़ गुज़ारे, तो अल्लाह तआला हमें दुनिया और आख़िरत में उस के अच्छे षमरात दिखाऐंगे.

एक हदीष शरीफ़ में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने सच्चाई और अमानत दारी की महत्तवता बयान करते हुए इरशाद फ़रमाया के सच्चाइ को मज़बूती से पकड़ो, इसलिए के सच्चाई नेकी का रास्ता दिखाती है और नेकी जन्नत की तरफ़ ले जाती है और इन्सान सच बोलता रेहता है, यहांतक के वह अल्लाह तआला के यहां लिख दिया जाएगा और झूट से बचो इस लिए के झूट बुराई का रास्ता दिखाता है और बुराई दोज़ख़ की तरफ़ ले जाती है और इन्सान झूट बोलता रेहता है, यहांतक के वह अल्लाह तआला के यहां झूठा लिख दिया जाएगा. (मुस्लिम शरीफ़)

यह अमर वाज़िह रहे के सच्चाई सिर्फ़ बातचीत में सिमित नहीं है, बलके सच्चाई दीन और दुनिया के तमाम उमूर और विभागों में मतलूब है, क्युंकि जब बंदा सच्चा और अमानत दार होता है, तो वह तमाम दीनी और दुनयवी अधिकार को पाबंदी से अदा करेगा और मख़लूक़ के साथ शफ़क़त तथा हमदरदी से पेश आएगा, जिस तरह नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अपनी उम्मत को हुकम दिया था.

ख़ुलासा बात यह है के जो बंदा अल्लाह तआाल का सच्चा बंदा होता है वह हर समय अपने रब की इताअत तथा फ़रमां बरदारी करेगा और हंमेशा इस धुन और फ़िकर में रहेगा के कैसे में अपने रब को ख़ुश करूं और कैसे में म़खलूक़ की ख़िदमत कर सकुं. जिस शख़्स में सिफ़त “सिदक़” बहोत ज़्यादा पाई जाती है, वह सिद्दीक़ीन के मरतबे पर फ़ाईज़ होगा.

सिद्दीक़ीन में से सब से अफ़ज़ल बंदा हज़रत अबु बकर (रज़ि.) थे.

अल्लाह तआला ने अंबियाए किराम के बाद हज़रत अबु बकर (रज़ि.) को सब से अफ़ज़ल इन्सान बनाया और सिदक़ की सिफ़त में उन को उम्मत की रेहबरी के लिए इमाम बनाया, लिहाज़ा वह तमाम सिद्दीक़ीन के क़ाईद और इमाम हैं. उन की पूरी ज़िन्दगी का हर लफ़्ज़ और अमल सिदक़ तथा वफ़ा का मज़हर था.

बच्चों की तरबियत में एक निहायत अहम बात यह है के वालिदैन अपने बच्चों के अन्दर सच्चाई और अमानत दारी की सिफ़ात पैदा करने की कोशिश करें, क्युंकि जब यह सिफ़ात उन के दिलों में रासिख़ हो जाऐंगी, तो वह पूरी ज़िन्दगी अल्लाह तआला और मख़लूक़ के हुक़ूक़ को अदा करेंगे. नीज़ उन की ज़ाहरि और बातिनी ज़िन्दगी एसी होगी के हर समय उन्हें इस बात का इस्तेहज़ीर होगा के हम को एक दिन अपनी ज़िन्दगी के हर अमल का हिसाब देना होगा और हमें एक दिन अल्लाह तआला के सामने हाज़िर होना होगा, लिहाज़ा जब उन के अन्दर यह ख़ूबियां पैदा होंगी, तो वह रूश्दो हिदायत के चिराग़ बन जाऐंगे, जिन से लोग हिदायत और रोशनी हासिल करेंगे.

अल्लाह तआला हम सब को सादिक़ और अमीन बनाए. आमीन

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=17946


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