पूरी उम्मत पर सहाबए किराम (रज़ि.) की फ़ज़ीलत

हज़रत अबु सईद ख़ुदरी (रज़ि.) से रिवायत है के नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के

“मेरे सहाबा को गालियां न दिया करो ! क़सम है उस ज़ात की जिस के क़बज़े में मेरी जान है, अगर तुम में से कोई शख़्स उहद पहाड़ के बराबर सोना ख़र्च करे, तो वह षवाब में सहाब के एक मुद्द या आधे मुद्द के बराबर को नहीं पहोंचेगा (उन के इख़्लास और उन की क़ुर्बानियों की वजह से).” (अबु दावूद, रक़म नं-४६५८)

हज़रत अबू उबैदह (रज़ि.) के दांतो का टूटना

उहद की लड़ाई में जब नबीऐ अकरम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के चेहरऐ अनवर या सर मुबारक में ख़ौद (फ़ौलादि टोपी,सर का कवच) के दो हलक़े धुस गए थे.

तो हज़ऱत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) दौड़े हुए आगे बढ़े और दूसरी जानिब से हज़रत अबू ऊबैदह (रज़ि.) दौड़े और आगे बढ़ कर ख़ौद के हलक़े (चक्र) दांत से खिंचने शुरू किए. एक हलक़ा (चक्र) निकाला जिस से एक दांत हज़रत अबु ऊबैदह (रज़ि.) का टूट गया. उस की परवाह न की दूसरा हलक़ा खिंचा जिस से दूसरा भी टूटा लेकिन हलक़ा (चक्र) वह भी खिंच ही लिया.

इन हलक़ो के निकलने से हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के पाक जिस्म से ख़ून निकलने लगा तो हज़रत अबू सईद ख़ुदरी (रज़ि.) के वालिद माजिद मालिक बिन सिनान (रज़ि.) ने अपने लबों से उस ख़ून को चूस लिया और निगल लिया. हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के जिस के ख़ून में मेरा ख़ून मिला है उस को जहन्नम की आग नहीं छू सकती. (फ़ज़ाईले आमाल, हिकायाते सहाबा (रज़ि.), पेज नंः १६८)

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