हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“हमारी तबलीग़ का हासिल यह है के आाम दीन दार मुसलमान अपने ऊपर वालों से दीन को लें और अपने नीचे वालों को दें. मगर नीचे वालओं को अपना मोहसिन समझें. क्युंकि जितना हम कलिमे को पहोंचाऐंगे फैलाऐंगे उस से ख़ुद हमारा कलिमा भी कामिल और मुनव्वर होगा और जितनों को हम नमाज़ी बनाऐंगे उस से ख़ुद हमारी नमाज़ भी कामिल होगी (तबलीग़ का यह बड़ा गुर है के उस से मुबल्लिग़ को अपनी तकमील मक़सूस हो, दूसरों के लिए अपने को हादी न समझे क्युंकि हादी अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं.” (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास(रह.), पेज नं- ३८)
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