हज्ज और उमरह की सुन्नतें और आदाब – ११

नेक आमाल के ज़रीए नफ़ल हज्ज के षवाब का हुसूल

अगर किसी शख़्स के पास हज्ज करने के लिए माली वुस्अत न हो, तो उस का यह मतलब नहीं है के एसे शख़्स के लिए दीनी तरक़्क़ी और अल्लाह तआला की मोहब्बत के हुसूल का कोई और तरीक़ा नहीं है, बलके बाज़ नेक आमाल एसे हैं के अगर इन्सान उन को अन्जाम दे, तो इन्शा अल्लाह उस को नफ़ल हज्ज का षवाब मिलेगा.

नीचे कुछ नेक आमाल दर्ज किए जाते है जिन के ज़रीए इन्सान नफ़ल हज्ज का षवाब हासिल कर सकता हैः

(१) वुज़ू कर के घर से निकलना मस्जिद में जमाअत के साथ फ़र्ज़ नमाज़ अदा करने के लिए

हज़रत अबु उमामह (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जो शख़्स वुज़ू कर के घर से निकल जाए (मस्जिद में) फ़र्ज़ नमाज़ बाजमाअत अदा करने के लिए, तो उस को उस शख़्स का षवाब मिलेगा जो हालते एहराम में नफ़ल हज्ज अदा करे और अगर वह नमाज़े चाश्त अदा करने के लिए (मस्जिद को) निकल जाए, तो उस को उमरह करने वाले का षवाब मिलेगा.”

(२) नमाज़े इशराक़.

हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जो शख़्स जमाअत के साथ (मस्जिद में) नमाज़े फ़जर अदा करे, फिर वह अपनी जगह में बैठ कर अल्लाह तआला के ज़िकर में व्यस्त रहे, यहांतक के सूरज के निकलने का वक़्त हो जाए (यअनी सूरज के निकलने के तक़रीबन बीस मिनट बाद) फिर वह दो रकअत नमाज़े इशराक़ पढ़े, तो उस को एक मुकम्मल हज्ज और मुकम्मल उमरह का षवाब मिलेगा.”

(३) दीनी इल्म सीखने तथा सिखाने के लिए मस्जिद जाना.

हज़रत अबु उमामा (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जो शख़्स दीनी इल्म सीखने के लिए तथा (दूसरों को) दीनी इल्म सिखाने के लिए मस्जिद जाए, तो उस को एसे हाजी का षवाब मिलता है, जिस का हज्ज कामिल तरीक़े पर पूरा हुवा हो.”

(४) रमज़ान के महीने में उमरह

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) फ़रमाते हैं के जब रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) हज्ज के सफ़र से वापस आए, तो आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हज़रत उम्मे सिनान (रज़ि.) से पूछा “तुम हज्ज के लिए मेरे साथ क्युं नही आई?” उन्होंने जवाब दिया “मेरे शौहर के पास सिर्फ़ दो ऊंट हैं. एक ऊंट पर मेरा शौहर और उस का बेटा आप के साथ हज्ज के लिए गए और दूसरे ऊंट पर हमारा ग़ुलाम पानी लाता है.” यह सुन कर नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया “माहे रमज़ान में उमरह करो, क्युंकि रमज़ान में उमरह करने से इन्सान को हज्ज के बराबर षवाब मिलेगा तथा आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के रमज़ान में उमरह करने से इन्सान को मेरे साथ हज्ज करने के बराबर षवाब मिलेगा.”

(५) सुबह और शाम सौ (१००) मर्तबा “सुब्हानल्लाह” पढ़ना

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्र (रज़ि.) से रिवायत है के हज़रत रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जो शख़्स सुबह और शाम सौ (१००) सौ (१००) बार “सुब्हानल्लाह” पढ़े उस की मिषाल उस शख़्स की तरह है जिस ने सौ (१००) बार हज्ज किया.”

(६) वालिदैन की ख़िदमत

हज़रत अनस (रज़ि.) से रिवायत है के एक आदमी नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुवा और अर्ज़ किया “में जिहाद में शिर्कत करना चाहता हुं, लेकिन मेरे पास (जिहाद में निकलने के लिए) मालि वुस्अत नहीं है.” नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने दरयाफ़्त किया “क्या तुम्हारे वालिदैन में से कोई जिवीत है?” उस ने जवाब दिया “हां, मेरी मां जिवीत हैं.” रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया “अल्लाह तबारक वतआला को दिखावो के तुम कैसे अपनी मां की ख़िदमत करते हो अगर तुम एसा करोगे, तो तुम को हज्ज करने वाले, उमरह करने वाले और जिहाद करने वाले का षवाब मिलेगा.”

(७) फ़रमां बरदार औलाद का अपने वालिदैन को शफ़क़तो मोहब्बत की निगाह से देखना

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जो भी फ़रमां बरदार लड़का अपने वालिदैन को शफ़्क़तो मोहब्बत की निगाह से देखे अल्लाह तआला उस को हर निगाह के बदले एक मक़बूल हज्ज का षवाब लिख देंगे.” सहाबए किराम (रज़ि.) ने सवाल किया “अगरचे वह (लड़का) अपने वालिदैन को हर दिन सौ (१००) मर्तबा (शफ़्क़तो मोहब्बत से) देखे.” नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाय “हां, अल्लाह तआला की ज़ात बहोत बड़ी है और उस की नेअमत बहोत वसीअ है (अल्लाह तआला ज़रूर उस को सौ (१००) मक़बूल हज्ज का षवाब अता फ़रमाऐंगे और अल्लाह तआला का षवाब तुम्हारे गुमान से ज़्यादा है).”

नोटः मज़कूरा बाला षवाब उन औलाद के लिए है जो अपने वालिदैन की मुतीअ तथा फ़रमां बरदार हो और उन के दिल में अपने मां-बाप की पूरी मोहब्बतो अज़मत हो.


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