हज्ज और उमरह की सुन्नतें और आदाब – ६

हज्ज की तीन क़िस्में

हज्ज की तीन क़िस्में हैंः
(१) हज्ज इफ़राद
(२) हज्ज तमत्तुअ
(३) हज्ज क़िरान

हज्जे इफ़राद

हज्जे इफ़राद यह है के इन्सान हज्ज का एहराम बांध कर सिर्फ़ हज्ज करे और हज्ज के महीनों में हज्ज से पेहले उमरह न करे. [१]

हज्जे तमत्तुअ

हज्जे तमत्तुअ यह है के इन्सान हज्ज के महीनों में उमरह और हज्ज दोनों को अलग अलग एहराम के साथ अदा करे.

इन दोनों इबदतों को अंजाम देने का तरीक़ा यह है के इन्सान हज्ज के महीनों में उमरह का एहराम बांध कर उमरह अदा करेगा फिर जब उमरह से फ़ारिग़ हो जाए तो वह एहराम से निकल जाएगा और जब हज्ज के अय्याम आ जाऐं तो वह हज्ज के लिए एक नया एहराम बांध कर हज्ज अदा करेगा.

हज्ज के महीने शव्वाल, ज़ुल क़अदह और ज़ुल हिज्जह के पेहले दस दिन हैं. [२]

हज्जे क़िरान

हज्जे क़िरान यह है के इन्सान हज्ज के महीनों में उमरह और हज्ज दोनों को एक एहराम के साथ अदा करे. [३]

इन दोनों इबदतों को अंजाम देने का तरीक़ा यह है के इन्सान हज्ज के महीनों में हज्ज और उमरह दोनों का एहराम बांध कर चलेगा और उमरह अदा करेगा. उमरह अदा करने के बाद वह एहराम से न निकलेगा, बलके वह एहराम की हालत ही में रहेगा, यहां तक के जब हज्ज के अय्याम आ जाऐं, तो वह उसी पेहले एहराम के साथ हज्ज भी अदा करेगा.

नोटः- एक एहराम के साथ उमरह और हज्ज अदा करने का मतलब यह है के इन्सान उमरह के शुरू से लेकर हज्ज के आख़िर तक एहराम की हालत में रहेगा (और एहराम के सारे अहकाम का पाबंद रहेगा और तमाम मनहिय्यात से परहेज़ करेगा).

एक एहराम के साथ उमरह और हज्ज अदा करने का मतलब यह नहीं है के इन्सान पर लाज़िम है के वह एहराम की एक चादर को उमरह के शुरू से लेकर हज्ज के आख़िर तक इस्तिमाल करे, क्युकी अगर किसी की एहराम की चादर गंदी हो जाए तथा फट जाए तथा गुम हो जाए, तो उस के लिए दूसरी एहराम की चादर का इस्तिमाल करना जाईज़ होगा.

सब से अफ़ज़ल हज्ज

हज्ज की तीन क़िस्मों में से हर किसम सवाब के बाइस है; लेकिन सब से अफ़ज़ल वाली क़िस्म “हज्जे क़िरान” है, फिर उस के बाद हज्जे तमत्तुअ है फिर अख़ीर में हज्जे इफ़राद है. [४]


[१] الإفراد بالحج أن يحج أولا ثم يعتمر بعد الفراغ من الحج أو يؤدي كل نسك في السفر على حدة أو يكون أداء العمرة في غير أشهر الحج (المبسوط للسرخسي ٤/۲۵)

[२] صفته أي التمتع أن يحرم بعمرة في أشهر الحج ويطوف ويسعى ويحلق أو يقصر وقد حل ثم يحرم بالحج يوم التروية وقبله أفضل (الاختيار ۱/۱۵۸)

أشهر الحج شوال وذو القعدة وعشر من ذي الحجة (اللباب في شرح الكتاب ۱/۲٠۲)

[३] والقارن هو الجامع بين الحج والعمرة سواء أحرم بهما معا أو أحرم بالحجة وأضاف إليها العمرة أو أحرم بالعمرة ثم أضاف إليها الحجة إلا أنه إذا أحرم بالحجة وأضاف إليها العمرة فقد أساء فيما صنع لأن الله تعالى جعل العمرة بداية وجعل الحج نهاية وعليه فمن أضاف العمرة إلى الحج فقد جعل الحج بداية وإنه مخالف ما في الكتاب (المحيط البرهاني ۲/٤٦٦)

[४] وأما بيان أفضل أنواع ما يحرم به فظاهر الرواية عن أصحابنا أن القران أفضل ثم التمتع ثم الإفراد وروي عن أبي حنيفة أن الإفراد أفضل من التمتع (بدائع الصنائع ۲/۱۷٤)

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