रज़ाअत के अहकाम
(१) जितने रिश्ते नसब के एतेबार से हराम है वह रिश्ते रज़ाअत (दूघ पिलाने) के एतेबार से भी हराम है यअनी जिन औरतों से नसब की वजह से निकाह करना हराम है, उन औरतों से रज़ाअत (दूघ पिलाने) की वजह से भी निकाह करना हराम है.
मिषाल के तौर पर जिस तरह हक़ीक़ी मां तथा हक़ीक़ी बहन से निकाह करना हराम है, इसी तरह रज़ाई मां और रज़ाई बहन से निकाह करना हराम है. लिहाज़ा अगर किसी औरत ने किसी बच्चे/बच्ची को दूघ पिलाया हो, तो वह औरत और उस का ख़ाविन्द उस बच्चे/बच्ची के रज़ाई मां और बाप बनते हैं और उन के लिए उस बच्चे/बच्ची से निकाह करना हराम होगा.
इसी तर दूघ पिलाया हुवा बच्चा/बच्ची के लिए रज़ाई मां बाप की औलाद से निकाह करना जाईज़ नही है, क्युंकि रज़ाई मां बाप की औलाद दूघ पिलाया हुवा बच्चा/बच्ची के रज़ाई भाई तथा बहन बनते हैं.
इसी तरह रज़ाई मां-बाप के भाई, बहन, दूघ पिलाया हुवा बच्चा/बच्ची के से निकाह करना जाईज़ नही है क्युंकि वह दूघ पिलाया हुवा बच्चा/बच्ची के रज़ाई चचा, रज़ाई फूफी, रज़ाई मामू और रज़ाई खाला बनते है. [१]
(२) शरीअत में मुतबन्ना (लेपालक बच्चा/बच्ची) का हुकम हक़ीक़ी बच्चा/बच्ची की तरह नहीं है यअनी किसी लड़के/लड़की को मुतबन्ना लड़का/लड़की बनाने से वह हक़ीक़ी बेटा/बेटी नहीं होता है और हक़ीक़ी लड़का/लड़की के अहकाम उस से मुतअल्लिक़ नही होते हैं, लिहाज़ा मुतबन्ना लड़का/लड़की के वालिदैन तथा उन की औलाद के लिए मुतबन्ना लड़का/मुतबन्ना लड़की से निकाह करना जाईज़ है. [२]
(३) अगर लेपालक लड़का हो और वह बुलूग़ की उमर को पहोंच जाए, तो उस के लिए ज़रूरी है के वह अपनी गोद लेने वाली मां और परिवार की दूसरी औरतों से परदा करे, क्युंकि वह उन का नामहरम है.
अगर लेपालक लड़की हो और वह बुलूग़ की उमर को पहोंच जाए, तो उस के लिए ज़रूरी है के वह अपने गोद लेने वाले वालिद और परिवार के दूसरे मर्दों से पर्दा करे, क्युंकि वह उन का नामहरम है.
(४) अगर लेपालक बच्चा बहोत छोटा है और गोद लेने वाली मां ने उस को मुद्दते रज़ाअत (दो क़मरी साल) के अनदर अपना दूध पिलावे, तो फिर लेपालक बच्चा गोद लेने वाले मां बाप के लिए रज़ाई बच्चा बनेगा और वह उस के रज़ाई मां बाप बनेंगे और उन की औलाद लेपालक बच्चे के रज़ाई भाई और बहन बनेंगे.
लिहाज़ा रज़ाई मां बाप के बच्चों और लेपालक बच्चे के दरमियान रज़ाअत के सारे अहकाम जारी होंगे यअनी उन के दरमियान परदा ज़रूरी नहीं होगा और उन का आपस में निकाह नहीं करना जाईज़ नहीं होगा, क्युंकि वह एक दूसरे के रज़ाई भाई बहन है.
ख़ुलासा बात यह है जिस तरह सगे भाईयों और बेहनों के दरमियान निकाह हराम है उसी तरह रज़ाई भाईयों और बहनों के दरमियान निकाह हराम है.
(५) अगर गोद लेने वाली मां ने लेपालक बच्च अथवा बच्ची को एसा दूध पिलाया हो जो गैर फ़ितरी (अस्वभाविक) तरीक़े से उस के लिए पैदा हुवा हो (यअनी दवा खाने के ज़रीए दूघ पैदा हुवा हो न के हमल के ज़रीए) तो गोद लेनेवाली मां लेपालक बच्चा अथवा बच्ची की रज़ाई मां बन जाएगी, अलबत्ता गोद लेने वाला बाप लेपालक बच्चा अथवा बच्ची का रज़ाई बाप नहीं बनेगा (क्युंकि यह दूध उस के हमल ठेहराने की वजह से पैदा नहीं हुवा है).
इस सूरत में रज़ाई रिश्ता सिर्फ़ गोद लेने वाली मां (रज़ाई मां) और उन के रिश्तेदारों के साथ षाबित होगा (यअनी गोद लेने वाले बाप और उन के रिश्तेदारों के साथ षाबित नहीं होगा). तथा गोद लेनेवाली मां के लेपालक बच्चा अथवा बच्ची के रज़ाई भाई और बहन बन जाऐंगे और उन के दरमियान रज़ाअत के अहकाम जारी होंगे.
जानना चाहिए के अगर चे इस सूरत में गोद लेनेवाला बाप लेपालक लड़की का रज़ाई बाप नहीं बनेगा, लेकिन चुके वह लेपालक लड़की की रजाई मां का शौहर है इस लिए उस के और लेपालक लड़की के दरम्यान परदा करना वाजिब नहीं होगा.
अलबत्ता गोद लेनेवाले बाप के वह बच्चे जो दूसरी बीवी से हों, वह लेपालक लड़की और लड़के के रज़ाई भाई बहन नहीं बनेंगे, लिहाज़ा उन के दरमियान परदा करना वाजिब होगा.
इसी तरह गोद लेनेवाले बाप के वालिदैन इस लेपालक बच्चा अथवा बच्ची के रज़ाई दादा/दादी नहीं बनेंगे, लिहाज़ा परदा और निकाह वग़ैरह के अहकाम में लेपालक बच्चा/बच्ची उन के लिए अजनबी के हुकम में होगा.
उस के बर ख़िलाफ़ गोद लेने वाली मां के वालिदैन इस लेपालक बच्चा अथवा बच्ची के रज़ाई नाना और नानी बनेंगे, लिहाज़ा उन के दरमियान परदा वाजिब नहीं होगा.
[१] فالرضاع في إيجاب الحرمة كالنسب والصهرية والأصل فيه قوله عليه السلام يحرم من الرضاع ما يحرم من النسب … والتحريم بالرضاع كما يثبت من جانب المرأة يثبت من جانب الرجل وهو الزوج الذي نزل لبنها بوطئه ويسميه الفقهاء لبن الفحل وبيانه أن المرأة إذا أرضعت بلبن حدث من حمل رجل فذلك الرجل أب الرضيع لا يحل لذلك الرجل نكاحها وإن كانت أنثى … وإن كانت للرجل امرأة واحدة فحملت منه وأرضعت صبيين صارا أخوين لأب وأم وأخوات الزوج عمات المرضع ولا يحل له مناكحتهن ويجوز له مناكحة أولادهن وأم الزوج جدة الرضيع تحرم عليه (المحيط البرهاني ٤/۹٤-۹۳)
(قوله ولا حل بين رضيعي ثدي) أي بين من اجتمعا على الارتضاع من ثدي واحد في وقت واحد لأنهما أخوان من الرضاع … (قوله: وبين مرضعة وولد مرضعتها وولد ولدها) والمرضعة الأولى بفتح الضاد اسم مفعول والثانية بكسرها أي لا حل بين الصغيرة المرضعة وولد المرأة التي أرضعتهما لأنهما أخوان من الرضاع … وكذا لا يتزوج أخت المرضعة لأنها خالته ولا ولد ولدها لأنه ولد الأخ (البحر الرائق ۳/۲٤٤)
[२] اُدْعُوْهُمْ لِآبَائِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِنْدَ اللّٰهِ فَإِنْ لَّمْ تَعْلَمُوْا آبَاءَهُمْ فَإِخْوَانُكُمْ فِيْ الدِّيْنِ وَمَوَالِيْكُمْ (سورة الأحزاب : ۵)
كذلك كان من مزعوماتهم أن الرجل إذا تبنى ولد غيره صار ملحقا ببنيه وأجريت عليه سائر أحكام البنوة من الميراث والحرمات وكان هذا تغيير شرائع الله سبحانه وتعالى من عند أنفسهم كما كان دأبهم في أمثالها (أحكام القرآن للمفتي محمد شفيع رحمه الله ۳/۲۹٠)
المتبنى لا يلحق بالابناء في الاحكام
الثاني: إن الدعي والمتبنى لا يلحق في الأحكام بالابن فلا يستحق الميراث ولا يرث عنه المدعي ولا يحرم حليلته بعد الطلاق والعدة على ذلك المدعي ولا عكسه (أحكام القرآن للمفتي محمد شفيع رحمه الله ۳/۲۹۱)
[३] قال وينظر الرجل من ذوات محارمه إلى الوجه والرأس والصدر والساقين والعضدين ولا ينظر إلى ظهرها وبطنها وفخذها … والمحرم من لا تجوز المناكحة بينه وبينها على التأبيد بنسب كان أو بسبب كالرضاع والمصاهرة الخ (الهداية ٤/۳۷٠)
قال ولا يجوز أن ينظر الرجل إلى الأجنبية إلا وجهها وكفيها قال فإن كان لا يأمن الشهوة لا ينظر إلى وجهها إلا لحاجة لقوله عليه الصلاة والسلام من نظر إلى محاسن امرأة أجنبية عن شهوة صب في عينيه الآنك يوم القيامة فإذا خاف الشهوة لم ينظر من غير حاجة تحرزا عن المحرم وقوله لا يأمن يدل على أنه لا يباح إذا شك في الاشتهاء كما إذا علم أو كان أكبر رأيه ذلك (الهداية ٤/۳٦۸)