(१) इस्तिन्जा के लिए बायें हाथ का इस्तिमाल करना. दायें हाथ से इस्तिन्जा करना नाजाईज़ है. [१]
عن عبد الله بن أبي قتادة عن أبيه رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال إذا بال أحدكم فلا يأخذن ذكره بيمينه ولايستنجي بيمينه (صحيح البخاري، الرقم:۱۵٤)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबू क़तादाह (रज़ि.) अपने वालीद के वास्ते से रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की बात नक़ल करते हैं के आप ने फ़रमाया “जब तुम में से कोई पेशाब करे (क़ज़ाए हाजत करे) तो वह अपनी शर्मगाह को अपने सीधे हाथ से न पकड़े और न दायें हाथ से इस्तिन्जा करे.”
(२) पेशाब, पाख़ाना के दौरान बात चीत न करना, मगर ये के ज़रूरत हो. [२]
عن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم لا يخرج اثنان إلى الغائط فيجلسان يتحدثان كاشفين عورتهما فإن الله عز وجل يمقت على ذلك (مجمع الزوائد، الرقم: ۱۰۲۱) [३]
हज़रत अबू हुरयरह (रज़ि.)से मरवि है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि व सल्लम) ने ईरशाद फ़रमाया, “दो आदमी क़ज़ाऎ हाजत के लिए (एसी जगह) न जाए के दोनों क़ज़ाए हाजत के दौरान सतर खोलें हुए आपस में बात चीत करें, बेशक अल्लाह तआला के नज़दीक ये अमल नापसंदीदा है.”
(३) बयतुलख़ला के अंदर ज़बान से किसी क़िस्म का ज़िक्र न करना. अगर छींक आए, तो अलह्मदुलिल्लाह मत कहो और अगर कोई सलाम करे, तो जवाब मत दो. [४]
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[१] قال العلامة ابن عابدين رحمه الله ثم يفيض الماء باليمنى على فرجه ويعلي الإناء ويغسل فرجه باليسرى… (رد المحتار ١/٣٤٥)
[२] عن ابن عمر رضي الله عنهما أن رجلا مر ورسول الله صلى الله عليه وسلم يبول فسلم فلم يرد عليه (صحيح مسلم، الرقم: ٣٧٠)
(ولا يتكلم إلا لضرورة) لأنه يمقت به (مراقي الفلاح صـ ٥٢)
[३] رواه الطبراني في الأوسط ورجاله موثقون (مجمع الزوائد، الرقم: ١٠٢١)
[४] ولا يتكلم ولا يذكر الله تعالى ولا يشمت عاطسا ولا يرد السلام ولا يجيب المؤذن فإن عطس يحمد الله بقلبه ولا يحرك لسانه (الفتاوى الهندية ١/٥٠)