हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) और उन की इत्तेबाए सुन्नत का प्रबंध
हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) महान दीन के आलिम, जलील मुहद्दिष, बहोत बड़े फ़क़ीह और अपने ज़माने के वलीए कामिल थे. उन का सिलसिलए नसब वंशावली मशहूर सहाबी हज़रत अबु अय्यूब अन्सारी (रज़ि.) तक पहोंचता था. यह वही सहाबी हैं जिन के घर में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने मदीना मुनव्वरा की हिजरत के मोक़े पर क़याम फ़रमाया था.
हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) को अल्लाह तआला ने बहोत सी विशेषताएं और ख़ूबियां अता की थीं. उन की एक उत्कृष्ट गुणवत्ता यह थी के उन के दिल में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों की बेपनाह मोहब्बत थी. इत्तेबाए सुन्नत की महत्तवता और वलवला का यह हाल था के वह एक एक सुन्नत पर अमल करते का प्रबंध करते थे. नीचे तीन वाक़िआत नक़ल किए जा रहे हैं, जिन से अन्दाज़ा हो सकता है के इत्तेबाए सुन्नत का मक़ाम उन के यहां क्या था.
पेहला वाक़िआ
१३०१ हिजरी में दारूल ऊलूम देवबंद का चौथा तारीख़ी जलसए दस्तारबंदी हुवा था जिस में क़ुतुबुल इरशाद हज़रत गंगोही (रह.) ही के मुबारक हाथ से दस्तार बंदी हुई.
इस मोक़े पर एक रोज़ ग़ालिबन असर की नमाज़ के लिए आप (रह.) तशरीफ़ ले गए तो तकबीर कही जा चुकी थी.
चुनांचे सलाम फैरने के बाद आप को देखा गया के सख़्त परेशानी की हालत में हैं और अप (रह.) फ़रमा रहे हैं के अफ़सोस ! बाईस बरस के बाद आज तकबीरे ऊला फ़ौत हुई.
इस बाक़िए से हमें मालूम होता है के हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) ने मस्जिद में नमाज़ बाजमाअत और तकबीरे ऊला के साथ नमाज़ अदा करने को कितनी अहमिय्यत दी है.
दूसरा वाक़िआ
हज़रत (रह.) के यहां एक एक सुन्नत का चुंके बहोत ही ज़्यादा एहतेमाम था, इस लिए एक मर्तबा लोगों ने कहा के मस्जिद से बायां पांव निकालना और जूता सीधे पांव में पेहले पेहनना सुन्नत है. तो देखें हज़रत (रह.) इन दोनों सुन्नतों को कैसे जमा फ़रमाते हैं.
तो सब ने मिल कर इस का बहोत ख़्याल रखा के हज़रत (रह.) इस में क्या अमल करते हैं.
तो जब हज़रत (रह.) मस्जिद से निकलने लगे तो आप ने पेहले बायां पांव निकाल कर ख़ड़ाऊं पर रखा और जब सीधा पांव निकाला तो खड़ाऊं अंगूठे में ड़ाल ली. उस के बाद बायां पांव को खड़ाऊं के अंदर ड़ाला. सुब्हानल्लाह ! कितने एहतेमाम के साथ हज़रत (रह.) ने दोनों सुन्नतों को जमा फ़रमा दिया.
तीसरा वाक़िआ
एक मर्तबा मस्जिद के सहन में तलबा को दर्स दे रहे थे के बारिश होने लगी. तलबा किताबें और तिपाईयां ले कर अन्दर भागे. हज़रत मौलाबना (रह.) ने अपनी चादर बिछाई और तमाम तालिबे इल्मों के जूते उठा कर उस में ड़ाल कर उन के पीछे पीछे चल दिए.
तलबा ने जब यह सूरत देखी तो वह परेशान हुए और बाज़ रो दिए के हज़रत यह क्या? फ़रमाया के हदीष में आता है के तलबा के लिए चूंटियां अपने बिलों में और मछलियां पानी में दुआ करती हैं. और फ़रिश्ते उन के पांव के नीचे पर बिछाते हैं. एसे लोगों की ख़िदमत कर के में ने सआदत हासिल की है. आप मुझे इस सआदत से महरूम क्युं करते हैं?
सहाबए किराम (रज़ि.) हज़रत रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक सुन्नतों का मुजस्सम नमूना थे. लेकिन उन का ज़माना हमारे ज़माने से बहोत दूर है. जब हम हमारे अकाबिर के जिवन का मुतालआ करते हैं, तो हमें नज़र आता है के हमारे अकाबिर सुन्नतों का जिवित नमूना थे. इस ज़माने में उन्होंने हमें अपने अमल से सुन्नतों पर अमल करने का तरीक़ा सिखाया है.
अल्लाह तआला से दुआ है के वह हमें हमारे जिवन में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की तमाम सुन्नतों पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन
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