मोहब्बत का बग़ीचा (बाईसवां प्रकरण)‎

بسم الله الرحمن الرحيم

पड़ोसी के अधिकार

हर इन्सान के लिए ज़रूरी है के वह उन अधिकार से वाक़िफ़ हो जो उस पर लाज़िम हैं और उन को अदा करे, ताकि दुनिया  का निज़ाम सहीह तरीक़े से जारी व सारी रहे, इस लिए अधिकार न अदा करने की वजह से दुनिया में फ़ितना वो फ़साद बरपा होता है, हंगामी फैलती है, चोरी ड़कैती के वाक़िआत कषरत से पेश आते हैं, लोगों पर ज़ुल्मो सितम होता है और औरतों, बच्चों और कमज़ोरों के अधिकार छीन लिए जाते हैं, क्युंकि वह अपना दिफ़ाअ नहीं कर सकते हैं और उन के अन्दर अपने अधिकार को हासिल करने की ताक़त नही होती है. इसी बीना पर शरीअत ने लोगों के अधिकार को बयान किया है और उन की अदायगी का तरीक़ा सिखाया है.

चुनांचे क़ुर्आने करीम में अल्लाह तआला का इरशाद हैः

وَبِالْوٰلِدَيْنِ إِحْسٰنًا وَبِذِى الْقُرْبٰى وَالْيَتٰمَىٰ وَالْمَسٰكِينِ وَالْجَارِ ذِى الْقُرْبَىٰ وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُمْ

और मां बाप के साथ अच्छा मामला करो और दूसरे रिश्तेदारों, यतीमों, फ़क़ीरों, पास वाले पड़ोसी, दूर वाले पड़ोसी, पास बैठने वाले और मुसाफ़िर के साथ अच्छा व्यव्हार करो और (उन के साथ भी अच्छा मामला करो) जो तुम्हारे मालिकाना क़बज़े में हैं (ग़ुलाम और बांदियों के साथ).

पड़ोसी के अधिकार अदा करने की ताकीद

इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने पड़ोसी का हक़ बयान किया है और उस को अदा करने की तरग़ीब दी है, तथा बहोत सी अहादीषे मुबारका में भी पड़ोसियों के अधिकार को अदा करने की ताकीद की गई है. एक हदीष में वारिद है के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के कामिल मोमिन वह नहीं है जो पेट भर कर खाए (जबकि वह जानता हो के) उस के बाज़ू में उस का पड़ोसी भूका है. (शोअबुल इमान)

पड़ोसी के अधिकार

एक दूसरी रिवायत में आया है के हज़रत मुआविया बिन हयदा (रज़ि.) ने नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से अर्ज़ किया ए अल्लाह के रसूल ! मेरे ज़िम्मे मेरे पड़ोसी का क्या हक़ है? आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः अगर वह बिमार हो जाए, तो उस की इयादत करो. अगर उस की वफ़ात हो जाए, तो उस के जनाज़े में शिर्कत करो. अगर वह क़र्ज़ मांगे तो उस को क़र्ज़ दो. अगर वह तंग दस्ती में मुब्तला हो जाए, तो उस की तंग दस्ती पर पर्दा पोशी करो. अगर उस को कोई अच्छी चीज़ मिले, तो उस को मुबारक बाद दो, अगर उस को कोई मुसीबत और तकलीफ़ पहोंचे, तो उस को तसल्ली दो. अपनी इमारत उस की इमारत से ऊंची न बनावो के उस के घर में हवा न जाए, और उस को अपनी हांड़ी की ख़ुश्बु से तकलीफ़ न पहोंचावो (खाने की ख़ुश्बु से तकलीफ़ न दो. इस का मतलब यह है के खाने इस तरह न पकावो के उस की ख़ुश्बु ग़रीब पड़ोसी को पहोंचे और वह तकलीफ़ महसूस करे, क्युंकि इस प्रकार का खाना उस की इस्तिताअत से बाहर है जैसे गोश्त भूनना वग़ैरह) मगर यह के तुम उस में से अपने पड़ोसी के लिए थोड़ा खाना निकालो (और उस के घर भेज दो). (मजमउज्ज़वाईद)

सहाबए किराम (रज़ि.) का पड़ोसियों के अधिकार अदा करना

इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार की बहोत ज़्यादा अहमिय्यत है और उन की अदायगी पर बहोत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है. इसी वजह से सहाबए किराम (रज़ि.) अपने पड़ोसियों के अधिकार का बहोत ख़्याल रखते थे और उन की अदायगी में ज़र्रा बराबर कोताही नहीं करते थे. क्योंकि उन को पता था के दीन में पड़ोसियों के मुतअल्लिक़़ बहोत ज़्यादा ताकीद वारिद हुई है.

हज़रत मुजाहिद (रह.) फ़रमाते हैं के एक बार हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ि.) के घर में एक बकरी ज़बह की गई. जब आप तशरीफ़ लाए, तो घरवालों से पूछाः क्या तुमने हमारे यहूदी पड़ोसी के घर कुछ भेजा? में ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को यह केतहे हुए सुना है के हज़रत जिब्रईल (अलै.)  मुझे पड़ोसी के (अधिकार के) बारे में मुसलसल वसिय्यत करते रहे, यहांतक के मुझे यह ख़्याल होने लगा के अल्लाह तआला उस को भी (मरने वाले का) वारिष क़रार देंगे. (तिर्मीज़ी शरीफ़)

हज़रत हसन बसरी (रह.) का वाक़िया

हज़रत हसन बसरी (रह.) का एक वाक़िया मनक़ूल है के उन का एक नसरानी पड़ोसी था. हज़रत हसन (रह.) घर के नीचे के हिस्से में रेहते थे और नसरानी ऊपर के हिस्से में रेहता था. नसरानी का बयतुल ख़ला ऊपर था और वहां से हज़रत हसन बसरी (रह.) के घर में पेशाब के क़तरे गिरते थे. हज़रत हसन बसरी (रह.) ने उस के नीचे एक बरतन रखवा दिया था. जब वह भर जाता था, तो उस को फैंक देते थे. उस के बावजूद हज़रत हसन बसरी (रह.) ने कभी भी शिकायत नहीं की और नसरानी को कुछ नहीं कहा. यह सिलसिला बीस सालों तक चलता रहा. एक दिन हज़रत हसन बसरी (रह.) बीमार हुए, तो वह नसरानी इयादत के लिए हाज़िरे ख़िदमत हुवा. जब उस ने घर की हालत देखी, तो पूछाः ए अबु सईद ! आप यह तकलीफ़ कब से बरदाश्त कर रहे हैं? हज़रत हसन बसरी (रह.) ने जवाब दियाः बीस साल से. यह सुन कर उस ने फ़ौरन अपनी जुन्नार तोड़ी और इस्लाम क़बूल कर लिया. (अलइम्तिाअ तथा वल मुवानसह)

पड़ोसी के अधिकार अदा न करने पर वईदें

ख़ुलासा यह है के जिस तरह पड़ोसियों के अधिकार का ख़्याल रखने की बड़ी ताकीद की गई है इसी तरह उन लोगों के बारे में सख़्त वईदें वारिद हुई हैं जो अपने पड़ोसियों को तकलीफ़ पहोंचाते हैं. हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के जो शख़्स अल्लाह तआला और क़यामत के दिन पर इमान रखता है वह अपने पड़ोसी को न सताए. (सहीहल बुख़ारी)

एक दूसरी हदीष में आया है के हुज़ूरे अकदस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने (तीन मर्तबा) फ़रमाया “ख़ुदा की क़सम मोमिन नहीं है, ख़ुदा की क़सम मोमिन नहीं है, ख़ुदा की क़सम मोमिन नहीं है, किसी ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! कोन शख़्स ? हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः जिस का पड़ोसी उस की मुसीबतों (और बदियों) से मोमून न हो.” (मिश्कातुल)

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) की एक दूसरी रिवायत में है के एक आदमी ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से अर्ज़ कियाः ए अल्लाह के रसूल ! फ़लानी औरत कषरत से नमाज़ पढ़ती है, रोज़ा रखती है और सदक़ा करती है, लेकिन अपने पड़ोसी को अपनी ज़बान से तकलीफ़ पहोंचाती है (एसी औरत के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं) नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने जवाब दियाः वह जहन्नम में जाएगी. उस शख़्स ने कहाः और फ़लां औरत थोड़ी नमाज़ें पढ़ती है, कुछ रोज़े रखती है (फ़राईज़ पर इक्तिफ़ा करती है) और पनीर के टुकड़े सदक़ा करती है और अपने पड़ोसी को अपनी ज़ुबान से तकलीफ़ नहीं पहोंचाती है (एसी औरत के बारे में आप का क्या ख़्याल है) आप ने फ़रमायाः वह जन्नत में जाएगी. (मजमउज्ज़वाईद)

मज़कूरा बाला अहादीषे मुबारका से अच्छी तरह स्पष्ट हो गया के इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार के मुतअल्लिक़ बहोत ज़्यादा महत्तवता दी गई हैं, लिहाज़ा हमें चाहिए के उन के तमाम अधिकार को अदा करने की भरपूर कोशिश करें.

अल्लाह तआला हमें बंदो के अधिकार अदा करने की तौफ़ीक़ अता करे और दीनो दुनिया की भलाईयों की तरफ़ हमारी रेहनुमाई फ़रमाए. आमीन या रब्बल आलमीन

 

 

आमीन

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=17478


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