हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) का शरीअतो सुन्नत पर मज़बूती से अमल
जब लोगों ने हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) के हाथ पर बयअत कर ली और आप ख़लीफ़ा बन गए, तो उन्होंने लोगों के सामने एक ख़ुत्बा दिया. सब से पेहले उन्होंने अल्लाह तआला की हम्दो षना की फिर फ़रमायाः
“लोगों ! में तुम पर हाकिम नियुक्त किया गया हुं, हालांकि में तुम में सब से बेहतर नहीं हुं, अगर में अच्छा काम करूं (यअनी अपनी ज़िम्मेदारी को सहीह तरीक़े से अदा करूं) तो तुम मेरा समर्थन करो और अगर बुराई की तरफ़ जावुं तो तुम मुझे सीधा करो. सत्य अमानत है और झूठ ख़यानत है.
“तुम्हारा कमज़ोर आदमी भी मेरी नज़कीक क़वी है, यहां तक के में उस का हक़ वापस दिला दुं इन्शा अल्लाह और तुम्हारा क़वी आदमी भी मेरे नज़दीक कमज़ोर है, यहां तक के में उस से दूसरों का हक़ दिला दुं इन्शा अल्लाह.
“जो क़ौम जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह छोड़ देती है उस को ख़ुदा ज़लीलो ख़ार (अपमानित) कर देता है और जिस क़ौम में बदकारी आम हो जाती है ख़ुदा उस की मुसीबत को भी आम कर देता है.
“में ख़ुदा और उस के रसूल की इताअत करूं, तो तुम मेरी इताअत करो, लेकिन जब ख़ुदा और उस के रसूल की नाफ़रमानी करूं, तो तुम पर इताअत नहीं.”
अच्छा अब नमाज़ के लिए खड़े हो जावो, ख़ुदा तुम पर रहम करे. (सीरत इब्ने हिशाम २/६६१)
हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) सुन्नते नबवी का अमली नमूना (पेकर) थे. ख़लीफ़ा बनने के बाद उन्होंने जो पेहला ख़ुत्बा दिया, उस से इस बात की पूरे तौर पर अक्कासी होती है (समझ में आती है) के वह नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों और शरीअत के किस क़दर मुत्तबिअ और फ़रमां बरदार (आज्ञाकारी और विनम्र) थे. उन की ज़िन्दगी का मक़सूदे असली यही था के वह शरीअत पर मज़बूती से अमल करें और नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों को पूरी दुनिया में आम करें.
हम दुआ गो हैं के अल्लाह सुब्हानहु वतआला हम सब को अपनी ज़िन्दगी में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों पर मज़बूती से अमल करने में हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ (रज़ि.) और तमाम सहाबए किराम (रज़ि.) के नक़्शे क़दम (पदचिन्हों) पर चलने की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमाऐं. आमीन
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