हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“मानवी को मायूस न होना चाहिए हक़ तआला से अच्छी उम्मीद रखनी चाहिए वह बंदे के ज़न (गुमान) के साथ हैं जैसा बंदा उन के साथ गुमान रखता है वैसा ही मामला उस के साथ फ़रमाते हैं बड़ी रहीम करीम ज़ात है मगर यह शर्त है के तलब हो और काम में लगा रहे जो भी हो सके करता रहे फिर वह अपने बंदे के साथ रहमत और फ़ज़ल ही का मामला फ़रमाते हैं वह किसी की मेहनत और तलब को बेकार अथवा फ़रामोश (भूलते) नही फ़रमाते.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत ४/२२४)
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