
शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“मौतो हयात का एतेबार नहीं, याद रखो, एक वसिय्यत करता हुं नसीहत करता हुं वह यह के जहां तक हो सके हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की इत्तेबा की कोशिश करो. दूसरी बात जो इस वक़्त केहनी है वह यह के अपनी अपनी जगह ख़ानक़ाहें ज़िक्र की मजालिस क़ाईम करो, लोगों को अपने पास बिठावो और सिखावो और इस इन्तिज़ार में न रहो के कोई ख़ुद तालिब बन कर आए, इस की उम्मीद न रखियो, न तालीम में ने सुलूक में अब तो लोगों को अपने अपने मशग़लों से खींच कर (दीन की तरफ़) लाना होगा.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं-१४२)
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