नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की शफ़ाअत का हुसूल

عن ابن عمر قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم من زار قبري وجبت له شفاعتي (سنن الدارقطني، الرقم: ۲٦۹۵) رواه البزار والدارقطني ‏قاله النووي وقال ابن حجر في شرح المناسك: رواه ابن خزيمة في صحيحه وصححه جماعة كعبد الحق والتقي السبكي وقال القاري في شرح الشفا ‏‏: صححه جماعة من أئمة الحديث. (فضائلِ حج صـ ۱۸۲)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का यह इरशाद नक़ल करते हैं के “जिस शख़्स ने मेरी क़बर की ज़ियारत की, उस के लिए मेरी शफ़ाअत ज़रूरी हो गई.” (में उस के लिए क़यामत के दिन अल्लाह तआला से ज़रूर सिफ़ारिश करूंगा के उस को बख़्श दिया जाए).

ख़्वाब में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का सिखाया हुवा दुरूद

कमाल दमीरी (रह.) ने शर्हुल मिनहाज में हज़रत शैख़ अबू अबदिल्लाह बिन नोअमान से नक़ल किया है के उन्हें ख़्वाब में सो बार नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ज़ियारत हुई. आख़री बार जब उन्होंने नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को ख़्वाब में देखा तो उन्होंने सवाल कियाः ए अल्लाह के रसूल ! आप पर कोनसा दुरूद भेजना मेरे लिए सब से अफ़ज़ल है? तो आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने जवाब दियाः यह दुरूद पढ़ा करोः

اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ الَّذِيْ مَلَأْتَ قَلْبَهُ مِنْ جَلَالِكَ وَعَيْنَهُ مِنْ جَمَالِكَ ‏فَأَصْبَحَ فَرِحًا مَسْرُوْرًا مُؤَيَّدًا مَنْصُوْرًا

“ए अल्लाह ! हमारे आक़ा मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद भेजिए, जिन के दिल को आप ने अपने जलाल भर दिया और जिन की आंख को अपने जमाल से भर दिया, तो वह शादां तथा फ़रहां (खुशहाल) हो गए और जिस की मदद तथा नुसरत ग़ैब से की गई.” (अल क़वलुल बदीअ, पेज नं-१४७)

कषरतसे दुरूद शरीफ़ पढ़ने की वजह से अल्लाह तआला की तरफ़ से सम्मान

अबुल अब्बास अहमद बिन मनसूर (रह.) के बारे में मनक़ूल है के जब उनका इन्तेक़ाल(मृत्यु) हो गया, तो शीराज़ के एक शख़्स ने उन को सपने में देखा के वह शीराज़ की जामेअ मस्जिद में ख़ूबसुरत जोऱा और हीरे जवाहरात से सजा ताज पेहने हुए खऱे हैं तो उस ने उन से पूछा के अल्लाह तआला ने आप के साथ क्या मामला फ़रमाया? उन्होंने जवाब दियाः अल्लाह तआला ने मेरी मग़फ़िरत फ़रमा दी, मेरा सम्मान किया, मुझे ताज पेहनाया और मुझे जन्नत में दाख़िल फ़रमाया. तो उस ने पूछाः किस अमल की वजह से? उन्होंने कहाः रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर कषरत से दुरूद पढ़ने की वजह से. (अल क़वलुल बदीअ)

‎يَا رَبِّ صَلِّ وَسَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ‏‎

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दुरूद शरीफ़ पढ़ने की बरकत से ज़रूरतों की तकमील

“जो शख़्स मेरी क़बर के पास खड़ा हो कर मुझ पर दुरूद पढ़ता है में उस को ख़ुद सुनता हुं और जो किसी और जगह दुरूद पढ़ता है तो उस की दुनिया और आख़िरत की ज़रूरतें पूरी की जाती हैं और में क़यामत के दिन उस का गवाह और उस का सिफ़ारिशी होवुंगा”...