بسم الله الرحمن الرحيم
सहाबए किराम (रज़ि.) के बारे में यहूदो नसारा की शहादत
अल्लाह तआला ने सहाबए किराम (रज़ि.) को फ़क़त दीन में कामयाब नही बनाए, बलके उन को दुनिया में भी कामयाबी नसीब फ़रमाइ. उन की कामयाबी तथा कामरानी का राज़ यह था के वह हर समय अल्लाह तआला के हुकमों के फ़रमां बरदार रेहते थे और दुनिया के माल की मोहब्बत उन के दिलो पर ग़ालिब नही थी, लिहाज़ा वह किसी क़ीमत पर दुनिया की वजह से हुकमे इलाही तोड़ने के लिये तय्यार नही थे.
सहाबए किराम (रज़ि.) जहां जाते थे वह अपने मामलात और तमाम कार्यो में न्याय तथा इन्साफ़ को क़ाईम करते थे, तथा कुफ़्फ़ार के साथ भी वह न्याय तथा इन्साफ़ के साथ बरताव करते थे, यहां तक के यहूद जो सहाबए किराम (रज़ि.) के सख़्त दुश्मन थे वह भी इस बात की गवाही देते थे के सहाबए किराम (रज़ि.) पाक जिवन गुज़ारते थे और हर एक के साथ न्याय तथा इन्साफ़ करते थे.
हदीष की किताबों में मनक़ूल है के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (रज़ि.) को यहूदियों के पास जिज़या वसूल करने के लिए भेजते थे (जिज़ये से मुराद वह माल जो कुफ़्फ़ार मुसलमानों को अदा करते थे मुसलमानों की ज़मीन पर रेहने की वजह से). हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाह (रज़ि.) यहूदियों के बाग़ात के खजूरों की मिक़दार का अन्दाज़ा लगा कर उन पर जिज़या मुक़र्रर करते थे.
एक मर्तबा हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (रज़ि.) यहूदियों के यहां जिज़या वसूल करने के लिए पहुंचे, तो यहूदियों ने उन के सामने कुछ जेवरात रिश्वत के तौर पर पेश किए और कहाः यह माल आप के लिए है, ताकि आप हमारे साथ आसानी का मामला फ़रमाऐं और खजूर का अन्दाज़ा लगाने में हमारी रिआयत करें.
यह सुन कर हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (रज़ि.) ने फ़रमायाः ए यहूदियों की जमाअत ! ख़ुदा की क़सम तुम मेरे नज़दीक अल्लाह तआला की मख़लूक़ में से सब से ज़्यादा मबग़ूज़ और नापसंदीदा जमाअत हो (उन का बुग़्ज़ उन के लिए इस वजह से था के यहूद हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के ख़िलाफ़ बहोत साज़िशें करते थे). उस के बावजूद में तुम्हारे ऊपर ज़र्रा बराबर ज़ुल्म नहीं करूंगा (तुम से नाहक़ कुछ नहीं लुंगा) बहर हाल जो माल तुम ने पेश किया है वह माल सरासर रिश्वत है और रिश्वत से जो माल हासिल होता है वह रिबा(व्याज) है और हम सहाबा रिबा(व्याज) को कदापी नहीं खाते हैं. यहूदियों ने यह बात सुन कर तुरंत कहा ! सहाबा के न्याय तथा इन्साफ़ की वजह से आसमान तथा ज़मीन क़ाईम हैं. (मूत्ता इमाम मोहम्मद)
जिस तरह यहूदियों ने सहाबए किराम (रज़ि.) के न्याय तथा इन्साफ़ की गवाही दी उसी तरह अहले रूम ने भी खुले शब्दों में इस बात की गवाही दी थी के सहाबए किराम (रज़ि.) की कामयाबी का राज़ यह था के वह खलवत तथा जलवत में अपने परवरदिगार की इताअत तथा फ़रमां बरदारी करते थे और नेक काम करते थे.
तारीख़ की किताबो में मनक़ूल है के जंगे यरमूक में सहाबए किराम (रज़ि.) को रूमियों पर ग़लबा हासिल हुवा, जब के उन की (रूमियों की) तअदाद बहोत ज़्यादा थी. जब रूमियों का हारा हुवा लश्कर अपने बादशाह हिरक्ल के पास पहुंचा, तो उस ने उन से कहाः तुम्हारे लिए हलाकत तथा बरबादी हो, तुम मझे उन लोगों के बारे में बतावो जो तुम से क़िताल कर रहे हैं, क्या वह तुम्हारी तरह इन्सान नहीं हैं? उन लोगों ने जवाब दियाः क्युं नहीं (बेशक वह हमारी तरह इन्सान हैं) फिर हिरक़्ल ने पूछाः तुम्हारी तअदाद ज़्यादा है या उन की? उन्होंने जवाब दियाः हर जगह हमारी तअदाद सहाबए किराम (रज़ि.) से ज़्यादा है. हिरक़्ल ने फिर सवाल कियाः फिर तुम हार से क्युं दोचार हो रहे हो?
तो एक बूढ़े सरदार ने जवाब दियाः (उन की जीत का राज़ यह है के) वह रात में नमाज़ पढ़ते हैं, दिन में रोज़ा रखते हैं, वअदा पूरा करते हैं, अच्छाई का हुकम देते हैं, बुराई से रोकते हैं और आपस में न्याय तथा इन्साफ़ करते हैं. (और हमारी हार की वजह यह है के) हम शराब नोशी करते हैं, बदकारी करते हैं, हराम कामों को करते हैं, वचन तोडते हैं, लोगों का माल ग़सब (चुराते) हैं ज़ुल्म करते हैं, बुराई का हुकम देते हैं, अल्लाह तआला को राज़ी करने वाले आमाल से रोकते हैं और ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं.
हिरक़्ल ने उस का जवाब सुन कर कहाः तुम ने बिलकुल सच्ची बात कही. (अलबिदाया वननिहाया)
इस वाक़िए से मालूम हुवा के सहाबए किराम (रज़ि.) के न्याय तथा इन्साफ़ को देख कर कुफ़्फ़ार तथा मुशरिकीन इस बात का इक़रार करने पर मजबूर थे के “इस्लाम” न्याय तथा इन्साफ़ का हामिले दीन है.
अल्लाह तआला हम सब को सहाबए किराम (रज़ि.) के नक़शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए. आमीन या रब्बल आलमीन
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