एक दिन फजर की नमाज़ के बाद, जबकि इस तहरीक में अमली हिस्सा लेने वालों का निजामुद्दीन की मस्जिद में बड़ा मज्मा था और हज़रत मौलाना (इलियास) रह़िमहुल्लाह की तबीयत इस क़दर कमज़ोर थी कि बिस्तर पर लेटे-लेटे भी दो-चार लफ़्ज़ (शब्द) आवाज़ से नहीं फरमा सकते थे, तो ज़ोर …
और पढ़ो »