जब इन्सान शरीअत के मुताबिक़ जिवन गुज़ारता है, तो उस को हक़ीक़ी ख़ुशी और मसर्रत हासिल होती है, अगर चे उस के पास मालो दौलत ज़्यादा न हो और अगर वह शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी न गुज़ारे, तो उस को हक़ीक़ी ख़ुशी हरगिज़ हासिल नहीं होगी, अगर चे उस के पास बे पनाह मालो दौलत हो...
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