(२) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल

मय्यित के घर क़ुर्आन ख़्वानी और खाने में शिर्कत

(१) सवालः क्या मय्यित के घर में क़ुर्आन ख़्वानी के लिए बुलाना कैसा है? क्या हम इस तरह के इजतिमाअ में शिर्कत कर सकते हैं?

जवाबः मय्यित के घर जा कर क़ुर्आन ख़्वानी में शिर्कत करने का षुबूत नहीं है. बेहतर यह है के हर आदमी अपनी सहूलत के अनुसार अपने वक़्त में क़ुर्आने पाक मुकम्मल करे और षवाब मय्यित के लिए पहोंचाए.

(२) सवालः अगर कोई मय्यित के घर जाए और वहां खाना पेश किया जा रहा हो, तो क्या वह खाना तनावुल करना जाईज़ है?

जवाबः यह भी एक रसम है जिस की सुन्नत में कोई असल नहीं है. लिहाज़ा उस खाने में शिरकत नहीं करना चाहिए और यह बात ज़हन नशीं रहें के किसी की मौत का वक़्त इबरत लेने का मौक़ा है. यह वक़्त खुशी मनाने का वक़्त नहीं है के लोग दअवत रखे और लोगों को खाना खिलाए.

(३) सवालः क्या मय्यित के घर उस के घरवालों के लिए खाना भेजना जाईज़ है?

जवाबः नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अपनी मुबारक अहादीष में उम्मत को शिक्षा (तालीम) दी है के जब किसी का इन्तिक़ाल हो जाए, तो पड़ोसियों और महल्ले वालों को चाहिए के मय्यित के घरवालों को तसल्ली दें और इस मुसीबत की घड़ी में उन की मदद करें. उन को चाहिए के घरवालों के लिए खाना तय्यार कर के भेजना चाहिए. स्थानिय लोगों को मय्यित के घरवालों सेअपेक्षा करना के वह हमें खिलाऐं नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक शिक्षाओं (तालीमात) के ख़िलाफ़ है.

Source: http://muftionline.co.za/node/12104


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