निकाह की सुन्नतें और आदाब – ४

निकाह़ में कुफ़ू(बराबरी)

निकाह की कामयाबी के लिए और मियां बिवी के दरमियान स्नेह व मुहब्बत बाक़ी रेहने के लिए ज़रूरी है के दोनों एक दूसरे के समान और बराबर हो. जब मियां बिवी में कुफ़ू और जोड़ हो, तो बाहमी स्नेह और एकता होगी और हर एक ख़ुशी और मुहब्बत के साथ अपनी  वैवाहिक ज़िम्मेदारीयों को पूरी करेंगे.

बहोत सी दफ़ा इस बात का मुशाहदा किया गया है के मियां-बिवी के दरमियान समानता और बराबरी न होने की वजह से तफ़ावत और इख़तिलाफ़ात पैदा हुए और अंत में तलाक़ की नौबत आ गई. इसीलिए शरीअत में मियां-बिवी के दरमियान कफ़ाअत (बराबरी) को बड़ी एहमियत दी है. तथा कफ़ाअत के सिलसिले में शरीअत ने बहोत से अहकाम बतलाए हैं.

कफ़ाअत (बराबरी) के सिलसिले में लड़के की हालत का एतेबार होगा और यह देखा जाएगा के लड़का, लड़की का बराबर जोड़ है या नहीं? दूसरे अलफ़ाज़ में युं कहा जाए के किसी लड़की का निकाह एसे लड़के के साथ नहीं कराना चाहिए, जो मक़ाम व रूतबे में उस के बराबर न हो और उस के लिए मुनासिब (योग्य) जोड़ा न हो.[१]

अगर लड़का नौ-मुस्लिम हो और उस के वालिद ग़ैर मुस्लिम हों, तो वह एसी लड़की के लिए कुफ़ू नही होगा जिस के वालिद मुसलमान हों. इसीतरह अगर लड़के के वालिद मुसलमान हों, मगर उस के दादा ग़ैर मुस्लिम हों, तो वह एसी लड़की के लिए कुफ़ू नहीं होगा, जिस के वालिद और दादा दोनों मुसलमान हों.[२]

अगर लड़का और लड़की दोनों के वालिद और दादा मुसलमान हों, तो इस सूरत में लड़का लड़की के दरमियान निम्नलिखित उमूर में कफ़ाअत का एतेबार किया जाएगाः

() दीनदारीः दीनदारी में बराबरी का मतलब यह है के जो व्यक्ति शरीअत का पालन करने वाला न हो और बे हयाई के कामों और गुनाहों में मुब्तला हो, वह किसी पाक दामन, नैक सीरत और दीनदार लड़की के लिए कुफ़ू नहीं होगा.[३]

(२) समाजी हैषिय में बराबरीः समाजी हैषियत में मुसावात और बराबरी की बुनियाद व्यवसाय पर है, लिहाज़ा अगर लड़के का व्यवसाय लड़की के ख़ानदान के व्यवसाय की तरह प्रतिष्ठित न हो, तो वह लड़का उस लड़की के लिए योग्य नहीं होगा, मषलन अगर लड़की सुनार के ख़ानदान से हो और लड़का सफ़ाई कामदार हो तथा मामूली दरजे का मज़दूर हो, तो वह मर्तबे के लिहाज़ से उस लड़की का कुफ़ू और बराबर नही होगा.[४]

(३) मालदारीः मालदारी में बराबरी का मतलब यह है के एक गरीब तथा मिसकीन लड़का मालदार लड़की के बराबर नहीं होगा. अलबत्ता अगर लड़का मालदार लड़की को महर और महीने का नानो नफ़क़ा(महीने का ख़र्चा) दे सकता हो, तो वह उस लड़की के लिए योग्य जोड़ा शुमार किया जाएगा, अगरचे वह लड़की की तरह उतना मालदार न हो.[५]

(४) हसब व नसब (वंश, ख़ानदानः हसबो नसब(ख़ानदान) में बराबरी का एतेबार मात्र अरब ख़ानदानों में है, चुनांचे अगर कोई लड़की अरब ख़ानदान से हो, तो नसब (ख़ानदान) में भी बराबरी का लिहाज़ रखा जाएगा और एसी लड़की का कुफ़ु अरब लड़का होगा, लिहाज़ा अगर लड़का अजमी (गैर अरबी) है, तो वह किसी अरबी लड़की के लिए कुफ़ु नहीं होगा. जहांतक ग़ैर अरबों (अजमियों) का मामला है, तो उन के दरमियान नसबी (ख़ानदानी) बराबरी का लिहाज़ नहीं किया जाएगा.[६]

(५) आज़दीः आज़ादी में बराबरी का एतेबार किया जाएगा, लिहाज़ा एक लड़का जो ममलूक और ग़ुलाम हो किसी आज़ाद लड़की के लिए मुनासिब जोड़ी नहीं शुमार किया जाएगा.[७]

नोटः अगर लड़का लड़की के बराबर न हो (समाजी और मुआशरती हैषियत में लड़का लड़की से कमतर हो या यह के लड़की अरब ख़ानदान से हो या सय्यिदा हो और लड़का अजमी (गैर अरबी) हो), मगर लड़का दीनदार, शरीअतका पालन करने वाला हो और अच्छे संस्कार तथा किरदार का मालिक हो और लड़की उस से शादी करने के लिए राज़ी हो और लड़की के वालिदैन भी लड़के की नेकी और उच्च संस्कार, उच्च किरदार और तक़्वा व दीन दारी से ख़ुश हो तो उस सूरत में बावजूद यह के लड़का लड़की का कुफ़ नही है लड़की के मां-बाप के लिए जाईज़ है के वह अपनी लड़की का निकाह उस से कराए. [८]


[१] (الكفاءة معتبرة) في ابتداء النكاح للزومه أو لصحته (من جانبه) أي الرجل لأن الشريفة تأبى أن تكون فراشا للدنيء ولذا (لا) تعتبر (من جانبها) (رد المحتار ۳/۸٤)

[२] من أسلم بنفسه وليس له أب في الإسلام لا يكون كفئا لمن له أب واحد في الإسلام كذا في فتاوى قاضي خان ومن له أب واحد في الإسلام لا يكون كفئا لمن له أبوان فصاعدا في الإسلام (الفتاوى الهندية ۱/۲۹٠)

[३] والخامس التقوى والحسب حتى لا يكون الفاسق كفئا للعدلة عند أبي حنيفة رحمه الله سواء كان معلن الفسق أو لم يكن هكذا ذكر شيخ الإسلام رحمه الله وذكر شمس الأئمة السرخسي رحمه الله أن الصحيح عند أبي حنيفة رحمه الله أن الكفاءة في التقوى والحسب غير معتبر في التقوى وفسّر الحسب فقال هو مكارم الأخلاق (المحيط البرهاني ۳/۲۳)

[४] وأما الحرفة فقد ذكر الكرخي أن الكفاءة في الحرف والصناعات معتبرة عند أبي يوسف فلا يكون الحائك كفئا للجوهري والصيرفي (بدائع الصنائع ۲/۳۲٠)

والسادس الكفاءة في الحرف فقد اعتبرها أبو يوسف ومحمد رحمهما الله وهو إحدى الروايتين عن أبي حنيفة رحمه الله وعن أبي هريرة رضي الله عنه أن الناس بعضهم أكفاء لبعض إلا حائك أو حجام وفي رواية أو دباغ قال مشايخنا ورابعهم الكنّاس فواحد من هؤلاء الأربعة لا يكون كفئاً للصيرفي والجوهري وعليه الفتوى (المحيط البرهاني ۳/۲٤)

وذكر في شرح الطحاوي: أن أرباب الصناعات المتقاربة أكفاء بخلاف المتباعدة وهذا مختار المحبوبي قال وحرفة فحائك أو حجام أو كناس أو دباغ ليس بكفء لعطار أو بزاز أو صراف وبه يفتى (الترجيح والتصحيح صـ ۳٤۱)

[५] (وتعتبر) أي الكفاءة (في المال وهو) أي الاعتبار في المال (أن يكون مالكا للمهر والنفقة) يتناول الكسوة لأنهما مما ينفق على الزوجة (وهذا) أي كونه مالكا للمهر والنفقة (هو المعتبر في ظاهر الرواية حتى إن من لم يملكهما)  أي المهر والنفقة (أو لا يملك أحدهما لا يكون كفؤا لأن المهر بدل البضع فلا بد من إيفائه وبالنفقة قوام الازدواج ودوامه) فلا بد من ذلك (البناية ۵/۱۱۵)

[६] (وتعتبر) الكفاءة … (نسبا فقريش) بعضهم (أكفاء) بعض (و) بقية (العرب) بعضهم (أكفاء … و) أما في العجم فتعتبر (حرية وإسلاما) (رد المحتار ۳/ ۸٦)

[७] (ومنها الحرية) فالمملوك كيف كان لا يكون كفئا للحرة وكذا المعتق أبوه لا يكون كفئا للحرة الأصليةكذا في فتاوى قاضي خان والمعتق يكون كفئا لمثله كذا في شرح الطحاوي (الفتاوى الهندية ۱/۲۹٠)

[८]وأفاد المصنف أن غير العربي لا يكافئ العربي وإن كان حسيبا أو عالما لكن ذكر قاضيخان في جامعه قالوا الحسيب يكون كفئا للنسيب فالعالم العجمي يكون كفئا للجاهل العربي والعلوية لأن شرف العلم فوق شرف النسب والحسب مكارم الأخلاق في المحيط عن صدر الإسلام الحسيب الذي له جاه وحشمة ومنصب (البحر الرائق ۳/۱۳٠)

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