महबूब आक़ा का फ़रमान

शेख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहम्मद ज़करिय्या साहब (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः 

“लोग अपने पूर्वजो से, ख़ानदान से और इसी तरह बहोत सी चीज़ों से अपनी शराफ़त तथा बड़ाई ज़ाहिर किया करते हैं, उम्मत के लिए गर्व का ज़रीआ कलामुल्लाह शरीफ़ है के उस के पढ़ने से उस के याद करने से, उस के पढ़ाने से, उस पर अमल करने से तथा उस की हर चीज़ गर्व के क़ाबिल है और क्युं न हो महबूब का कलाम है, आक़ा का फ़रमान है, दुनिया का कोई बड़े से बड़ा शर्फ़(गर्व) भी उस के बराबर नहीं हो सकता. तथा दुनिया के जिस क़दर कमालात हैं वह आज नहीं तो कल ख़तम होने वाले हैं, लेकिन कलामे पाक का शर्फ़(गर्व) और कमाल हंमेशा के लिए है कभी भी ख़तम होने वाला नहीं है.” (फ़ज़ाईले आमाल, फ़ज़ाईले क़ुर्आने मजीद, पेज नं-२८)

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