क्या जनाज़े की नमाज़ में जामअत शर्त है?

जनाज़े की नमाज़ की सिह्हत के लिए जमाअत शर्त नहीं है. चुनांचे अगर एक शख़्स भी मय्यित की जनाज़े की नमाज़ अदा करले, तो जनाज़े की नमाज़ दुरूस्त होगी, चाहे वह(जनाज़े की नमाज़ पढ़ने वाला) मुज़क्कर(मर्द) यो या मुअन्नत(स्त्री), बालिग़ हो या नाबालिग़. हर सूरत में जनाज़ की नमाज़ अदा हो जाएगी. [१]

अलबत्ता जमाअत के साथ जनाज़े की नमाज़ अदा करने में मय्यित के लिए ज़्यादह फ़ाईदा है, इसलिए के जब लोगों की एक बड़ी संख्या मजमूई तौर पर जनाज़े की नमाज़ पढ़े और जनाज़े की नमाज़ में अल्लाह तआला से मय्यित के लिए मग़फ़िरत की दुआ करेगी, तो उस से अल्लाह तआला की रहमत ज़्यादह मुतवज्जेह होगी, बनिसबत उस के के सिर्फ़ एक आदमी मय्यित के लिए दुआए मग़फ़िरत करे.

हज़रते आंयशा सिद्दीका (रज़ि.) नबी(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का फ़रमान नक़ल करती हैः [२]

عن عائشة عن النبي صلى الله عليه و سلم قال لا يموت أحد من المسلمين فتصلي عليه أمة من المسلمين يبلغون أن يكونوا مائة فيشفعوا له إلا شفعوا فيه (سنن الترمذي، الرقم: ١٠٢٩)

नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के जब किसी मुसलमान का इन्तिक़ाल हो जाए फिर सो (१००) मुसलमान उस की जनाज़े की नमाज़ अदा करें और उस के लिए(जनाज़े की नमाज़ में) सिफ़ारिश करें, तो उस के हक़ में उन की सिफ़ारिश ज़रूर क़बूल की जाएगी.

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=1839


[१] وشرطها أيضا حضوره (ووضعه) وكونه هو أو أكثر (أمام المصلي) (الدر المختار ٢/٢٠٨)

تنبيه ينبغي أن يكون في حكم من دفن بلا صلاة من تردى في نحو بئر أو وقع عليه بنيان ولم يمكن إخراجه بخلاف ما لو غرق في بحر لعدم تحقق وجوده أمام المصلي تأمل (رد المحتار ٢/٢٢٤)

[२] وشرطها أيضا حضوره (ووضعه) وكونه هو أو أكثر (أمام المصلي) (الدر المختار ٢/٢٠٨)

تنبيه ينبغي أن يكون في حكم من دفن بلا صلاة من تردى في نحو بئر أو وقع عليه بنيان ولم يمكن إخراجه بخلاف ما لو غرق في بحر لعدم تحقق وجوده أمام المصلي تأمل (رد المحتار ٢/٢٢٤)

Check Also

क़यामत की निशानियां – क़िस्त ५

दज्जाल के बारे में अहले सुन्नत वल-जमआत का ‘अकीदा दज्जाल की जाहिर होने और उसकी …