मसाईले मुतफ़र्रिक़ा(विविध मसाईल)

जुता, चप्पल पहन कर जनाज़े की नमाज़ अदा करना

अगर जनाज़े की नमाज़ जुता/चप्पल पहन कर अदा की जाए, तो ज़रूरी है केजुता/चप्पल और ज़मीन दोनों पाक हों. और अगर कोई जुता निकाल कर उस पर खड़े हो कर जनाज़े की नमाज़ अदा करे, तो ज़रूरी है के जुता/चप्पल पाक हो(इस सूरत में ज़मीन का पाक होना शर्त नहीं है) अगर जुता नापाक हो, तो जनाज़े की नमाज़ सहीह नहीं होगी. [१]

मकरूह वक़्तों में जनाज़े की नमाज़ अदा करना

अगर जनाज़ा मकरूह वक़्त के शुरू होने के बाद लाया जाए, तो मकरूह वक़्त में जनाज़े की नमाज़ अदा करना जाईज़ है. अलबत्ता अगर जनाज़ा मकरूह वक़्त से पेहले लाया जाए और जनाज़े की नमाज़ मकरूह वक़्त तक ताख़ीर की जाए, तो मकरूह वक़्त में जनाज़े की नमाज़ अदा करना नाजाईज़ है(मकरूहे तहरीमी है).

नोटः-मकरूह अवक़ात से मुराद सूरज निकलने, ड़ूबने और ज़वाल के अवक़ात हैं. सूरज ग़ूरूब होने से मुराद वह वक़्त है जब सूरज का रंग बदलने लगता है, जबतक के सूरज ग़ुरूब हो जाए. [२]

जनाज़े की नमाज़ दुआ है

जनाज़े की नमाज़ दर हक़ीक़त मय्यित के लिए दुआ है, लिहाज़ा जनाज़े की नमाज़ की अदायगी के बाद मज़ीद दुआ की ज़रूरत नहीं है. जनाज़े की नमाज़ की अदायगी के बाद मज़ीद दुआ करना हदीष से षाबित नहीं है. ऐसा न तो नबी(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के ज़माने में किया गया और न ही सहाबए किराम(रज़ि.), ताबिईने इज़ाम और न उन के बाद कई सदियों में किया गया. लिहाज़ा मालूम हुवा के जनाज़े की नमाज़ के बाद मज़ीद दुआ करना बिदअत है और उस को छोड़ना ज़रूरी है.[३]

विद्रोहियों(बाग़ियों) और ड़ाक़ुवों की जनाज़े की नमाज़

उन मुसलमानों की जनाज़े की नमाज़ नहीं अदा की जाएगी जो इस्लामी मुल्क में आदिल मुसलमान हाकिम के ख़िलाफ़ लड़ते हुए मारे जाऐं. अलबत्ता अगर विद्रोहियों(बाग़ियों) को गिरफ़तार कर के जंग के बाद क़तल किया जाए या वह त़बई मौत(प्राकृतिक मौत) मरें, तो उन की जनाज़े की नमाज़ अदा कि जाएगी. इसी तरह अगर ड़ाक़ु इस्लामी मुल्क में डकैती का जुर्म करते हुए मारे जाए, तो उन की जनाज़े की नमाज़ नहीं पढ़ी जाएगी.[४]

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=1782


[१] وقد قدمنا في باب شروط الصلاة أنه لو قام على النجاسة وفي رجليه نعلان لم يجز ولو افترش نعليه وقام عليهما جازت وبهذا يعلم ما يفعل في زماننا من القيام على النعلين في صلاة الجنازة لكن لا بد من طهارة النعلين كما لا يخفى (البحر الرائق ۲/۱۹۳)

ولو قام على النجاسة وفي رجليه نعلان أو جوربان لم تجز صلاته لأنه قام على مكان نجس ولو افترش نعليه وقام عليهما جازت الصلاة بمنزلة ما لو بسط الثوب الطاهر على الأرض النجسة وصلى عليه جاز (البحر الرائق ۱/۲۸۲)

[२] ثلاث ساعات لا تجوز فيها المكتوبة ولا صلاة الجنازة ولا سجدة التلاوة إذا طلعت الشمس حتى ترتفع وعند الانتصاف إلى أن تزول وعند احمرارها إلى أن تغيب إلا عصر يومه ذلك فإنه يجوز أداؤه عند الغروب هكذا في فتاوى قاضي خان … هذا إذا وجبت صلاة الجنازة وسجدة التلاوة في وقت مباح وأخرتا إلى هذا الوقت فإنه لا يجوز قطعا أما لو وجبتا في هذا الوقت وأديتا فيه جاز لأنها أديت ناقصة كما وجبت كذا في السراج الوهاج وهكذا في الكافي والتبيين لكن الأفضل في سجدة التلاوة تأخيرها وفي صلاة الجنازة التأخير مكروه هكذا في التبيين (الفتاوى الهندية ۱/۵۲)

[३] لا يقوم بالدعاء بعد صلاة الجنازة ( الفتاوى البزازية على حاشية الهندية ٤/۸٠)

أي صلاة يكره الدعاء بعدها ؟ أقول هي صلاة الجنازة على رواية قال الزاهدي في القنية عن أبي بكر بن حامد الدعاء بعد الجنازة مكروه اهـ (فتاوى اللكنوي ص ۵٠۵)

وفي صلاة الجنازة ينوي الصلاة لله تعالى والدعاء للميت (الفتاوى الهندية ۱/٦٦)

فتاوى محمودية ۱۳/۱۹٤

[४] ( وهي فرض على كل مسلم مات خلا ) أربعة ( بغاة و قطاع الطريق ) فلا يغسلوا ولا يصلى عليهم ( إذا قتلوا في الحرب ) ولو بعده صلي عليهم لأنه حد أو قصاص  قال الشامي : قوله ( بغاة ) هم قوم مسلمون خرجوا عن طاعة الإمام بغير حق قوله ( فلا يغسلوا الخ ) في نسخة فلا يغسلون وهي أصوب وإنما لم يغسلوا ولم يصل عليهم إهانة لهم وزجرا لغيرهم عن فعلهم وصرح بنفي غسلهم لأنه قيل يغسلون ولا يصلى عليهم للفرق بينهم وبين الشهيد كما ذكره الزيلعي وغيره وهذا القيل رواية وفيه إشارة إلى ضعفها لكن مشى عليها في الدرر و الوقاية وفي التاترخانية وعليه الفتوى قوله ( ولو بعده الخ ) قال الزيلعي وأما إذا قتلوا بعد ثبوت يد الإمام عليهم فإنهم يغسلون ويصلى عليهم وهذا تفصيل حسن أخذ به كبار المشايخ لأن قتل قاطع الطريق في هذه الحالة حد أو قصاص ومن قتل بذلك يغسل ويصلى عليه وقتل الباغي في هذه الحالة للسياسة أو لكسر شوكتهم فينزل منزلته لعود نفعه إلى العامة اهـ وقوله أو قصاص أي بأن كان ثم ما يسقط الحد كقطعة على محرم ونحوه مما ذكر في بابه وقد علم من هذا التفصيل أنه لو مات أحدهم حتف أنفه قبل الأخذ أو بعده يصلى عليه كما بحثه في الحلية وقال ولم أره صريحا قلت وفي الأحكام عن أبي الليث ولو قتلوا في غير الحرب أو ماتوا يصلى عليهم اهـ وهو صريح في المطلوب (رد المحتار ۲/۲۱٠)

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