हज्ज की फ़रजियत के लिए कितने माल का मालिक होना ज़रूरी हैं ?

सवाल –

१) कुंवारे शख्स पर फ़र्ज होने के लिए कितने माल का मालिक होना ज़रूरी हे?

२) साहिबे एहलो अयाल (धर के मालिक) के पास कितना माल हो तो उस पर हज्ज फर्ज होगा ?

जवाब –

१) हज्ज फर्ज होने के लीए ज़रूरी हे के इंन्सान सफ़रे हज में करने वाले मसारिफ़ का मालिक हो यअनी सफ़र हज के लिए रवाना होने के वकत से वापसी तक जितने इखराजात (खर्चे) आने जाने का किराया, रहना ओर खाना पीना वगेरे के साथ. अगर उस के पास इतना माल हो जो उन सब इखराजात के लिए काफ़ी हो, तो उस पर हज्ज फ़र्ज होगा.

२) हज उस आजाद, आकिल, बालिग ओर सिहतमंद मुसलमान पर फर्ज हे, जिस के पास हवाईजे असलिय्याह ( मसलन घर, घरेलु सामान वगेरह को छोड कर ओर अहलो अयाल के नान व नफ्कह के अलावह ) इतना माल हो, जो सफरे हज के दौरान में जाने के वक्त से लेकर वापसी तक उस की जरूरीयात ( जेसे जहाज ओर रिहाईश के किराए, खाने के खर्चे वगेरह ) के लिए काफि हो.

अल्लाह तआला ज्यादह जानने वाले हैं.

(فرض)…(مرة)…(على الفور)… ( على مسلم )… ( حر مكلف ) عالم بفرضيته … ( صحيح ) البدن ( بصير ) غير محبوس وخائف من سلطان يمنع منه ( ذي زاد ) يصح به بدنه فالمعتاد اللحم ونحوه إذا قدر على خبز وجبن لا يعد قادرا ( وراحلة ) مختصة به وهو المسمى بالمقتب إن قدروإلا فتشترط القدرة على المحارة للآفاقي لا لمكي يستطيع المشي لشبهه بالسعي للجمعة وأفاد أنه لو قدر على غير الراحلة من بغل أو حمار لم يجب قال في البحر ولم أره صريحاوإنما صرحوا بالكراهة وفي السراجية الحج راكبا أفضل منه ماشيا به يفتى والمقتب أفضل من المحارة وفي إجازة الخلاصة حمل الجمل مائتان وأربعون منا والحمار مائة وخمسون فظاهره أن البغل كالحمار ولو وهب الأب لابنه مالا يحج به لم يجب قبوله لأن شرائط الوجوب لا يجب تحصيلها وهذا منها باتفاق الفقهاء خلافا للأصوليين ( فضلا عما لا بد منه ) كما مر في الزكاة ومنه المسكن ومرمته ولو كبيرا يمكنه الاستغناء ببعضه والحج بالفاضل فإنه لا يلزمه بيع الزائد نعم هو الأفضل وعلم به عدم لزوم بيع الكل والاكتفاء بسكنى الإجارة بالأولى وكذا لو كان عنده ما اشترى به مسكنا وخادما لا يبقى بعده يكفي للحج لا يلزمه خلاصة وحرر في النهر أنه يشترط بقاء رأس مال لحرفته إن احتاجت لذلك وإلا لا وفي الأشباه معه ألف وخاف العزوبة إن كان قبل خروج أهل بلده فله التزوج ولو وقته لزمه الحج ( و ) فضلا عن ( نفقة عياله ) ممن تلزمه نفقته لتقدم حق العبد ( إلى ) حين ( عوده ) وقيل بعده بيوم وقيل بشهر ( مع أمن الطريق ) بغلبة السلامة ولو بالرشوة ( الدر المختار 2/455-465)

जवाब देनेवालेः

मुफ़ती ज़करीया मांकडा

इजाझत देनेवालेः

मुफ़ती इब्राहीम सालेहजी

Source: http://muftionline.co.za/node/175

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