मय्यित को नेहलाने का तरीक़ा-भाग-२

वुज़ु

गुसल देनेवाला मय्यित को इस्तिन्जा कराने के बाद वुज़ु कराए. मय्यित को वुज़ु कराने का तरीक़ा वही है जो जीवित

शख़्स के लिए है.(जो सुन्नतें जीवित शख़्स के लिए हैं, मय्यित को वुज़ु कराने में भी उन का ख़्याल रख्खा जाएगा) मात्र इतना फ़र्क़ है के मय्यित को कुल्ली न कराए, नाक में पानी न डाले और हाथ गट्टों तक न धुलाए, बलकि सब से पेहले चेहरा धुलाए, फ़िर दोनों हाथ कोहनीयों समैत धुलाए फ़िर सर का मसह कराए और अख़ीर में दोनों पैर धुलाए. [५]

 

नोटः

  • कुछ फ़ुक़हा ने वर्णन किया है के रूई को भीगो कर के मय्यित के दांतो और नाक को इस से साफ़ करना जाईज़ है.[६]
  • अगर मय्यित हालते जनाबत या हालते हैज़ या निफ़ास में हो, तो कुछ फ़ुक़हा के नज़दीक उस के मुंह और नाक में पानी पहुंचाना बेहतर है(ज़रूरी नहीं है) और उस का तरीक़ा वही है जो ऊपर उल्लेख हुआ के रूई भीगोई जाए और उस से मय्यित के मुंह और नाक को साफ़ कर दिया जाए.

जब वुज़ु संपूर्ण हो जाए, तो निम्नमिखित तरीक़े से गुसल दिया जाए

१) मय्यित को ऐसे पानी से गुसल दिया जाए जो अर्ध गर्म हो और उस को बेरी के पत्ते या कोई भी साफ़ करने वाली

चिज ड़ाल कर पकाया गया हो. अगर बेरी के पत्ते या कोई भी साफ़ करने वाली चीज़ ड़ाल कर पकाया हुआ पानी उपलब्ध न हो, तो सादह अर्ध गर्म पानी काफ़ी है.[७]

२) गुसल देनेवाला साबुन या किसी और चिज़ से, जिस से सफ़ाई हासिल हो जाए मय्यित के सर और बाल को धोए.[८]

३) फ़िर मय्यित को बायीं करवट पर लिटा दे और दायें हिस्से को धोए.[९]

४) दायीं करवट पर कंधे से पैर तक तीन दफ़ा पानी इस तरह दाले के बायीं करवट तक पहुंच जाए.[१०]

५) फ़िर मय्यित को दायीं करवट पर लिटाए और बायें हिस्से को तीन बार धोए. [११]

६) फ़िर गुसल देने वाला मय्यित को अपने बदन से टेक लगा कर बिठा दे और उस के पेट को धीरे धीरे मले और दबाए. अगर कुछ पाख़ाना(मल) या पेशाब(मुत्र) निकले तो उस को धो दे और दोबारा इस्तिन्जा करा दे. यह बात याद रहे के पाख़ाना या पेशाब के निकलने की वजह से वुज़ु या गुसल में कोई कमी नही आएगी, लिहाज़ा दोबारा वुज़ु या गुसल कराने की कोई ज़रूरत नहीं है. [१२]

७) अंत में मय्यित को दोबारा बायीं करवट पर लिटाए और बायें हिस्से पर सर से पैर तक काफ़ूर मिला हुवा पानी इस तरह ड़ाले के वह दूसरे हिस्से तक पहुंच जाए. बस गुसल पूरा हो गया. आख़री दफ़ा दायीं करवट पर नहीं लिटाया जाएगा.[१३]

८) गुसल देने के बाद मय्यित के बदन को किसी कपड़े या तोलिए से पूंछ(साफ़ कर दे) दे.[१४]

९) सर और दाढी पर इत्र लगा दें. फ़िर सजदे की जगहों पर कपूर मल दें (सजदे की जगहें  यअनी  पेशानी, नाक, दोनों हथेली, दोनों धुटनो और दोनों पैरों की उंगलियो के निचे के हिस्से के ऊपर जो ज़मीन पर लगता है सजदे के वकत). अगर कपूर न हो, तो इत्र लगा दें.[१५]

नोट

  • मय्यित के गुसल देने के लिए अर्ध गर्म पानी का इस्तिमाल किया जाए. बहुत ज़्यादह गर्म पानी का इस्तिमाल न किया जाए.[१६]
  • मय्यित को गुसल देने की उपरोक्त विधि (उदाहरण के लिए तीन दफ़ा पानी ड़ालना ) सुन्नत है. अगर कोई इस तरह न गुसल दें, बल्कि मय्यित के बदन को एक बार धो ड़ाले, तो इस तरह भी गुसल सही हो जाएगा और फ़र्ज़ की अदाईगी हो जाएगी, इस के लिए एक बार बदन को धोना फ़र्ज़ है. अगर तीण बार से ज़ियादह बदन को धोने की ज़रूरत हो तो यह जाईज़ है और अगर ज़रूरत न हो, तो मकरूह है.[१७]

 

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=1374


 

[५] (ويوضأ) من يؤمر بالصلاة (بلا مضمضة واستنشاق) للحرج وقيل يفعلان بخرقة وعليه العمل اليوم ولو كان جنبا أو حائضا أو نفساء فعلا اتفاقا تتميما للطهارة كما في إمداد الفتاح مستمدا من شرح المقدسي ويبدأ بوجهه ويمسح رأسه قال الشامي : قوله ( ويوضأ من يؤمر بالصلاة ) خرج الصبي الذي لم يعقل لأنه لم يكن بحيث يصلي قاله الحلواني وهذا التوجيه ليس بقوي إذ يقال إن هذا الوضوء سنة الغسل المفروض للميت لا تعلق لكون الميت بحيث يصلي أو لا كما في المجنون شرح المنية ومقتضاه أنه لا كلام في أن المجنون يوضأ وأن الصبي الذي لا يعقل الصلاة يوضأ أيضا على خلاف ما يقتضيه توجيه الحلواني من أنهما لا يوضئان (رد المحتار ٢/١٩٥) قال الشامي : قوله ( ولو كان جنبا الخ ) نقل أبو السعود عن شرح الكنز للشلبي أن ما ذكره الخلخالي أي في شرح القدوري من أن الجنب يمضمض ويستنشق غريب مخالف لعامة الكتب اهـ قلت وقال الرملي أيضا في حاشية البحر إطلاق المتون والشروح والفتاوى يشمل من مات جنبا ولم أر من صرح به لكن الإطلاق يدخله والعلة تقتضيه اهـ وما نقله أبو السعود عن الزيلعي من قوله بلا مضمضة واستنشاق ولو جنبا صريح في ذلك لكني لم أره في الزيلعي قوله ( اتفاقا ) لم أجده في الإمداد ولا في شرح المقدسي (رد المحتار ٢/١٩٦) قال الشامي: قوله ( ويبدأ بوجهه ) أي لا يغسل يديه أولا إلى الرسغين كالجنب لأن الجنب يغسل نفسه بيديه فيحتاج إلى تنظيفهما أولا والميت يغسل بيد الغاسل قوله ( ويمسح رأسه ) أي في الوضوء وهو ظاهر الرواية كالجنب بحر (رد المحتار ٢/١٩٦)

[६] ومن العلماء من قال يجعل الغاسل على أصبعه خرقة رقيقة ويدخل الأصبع في فمه ويمسح بها أسنانه وشفتيه ولهاته ولثته وينقيها ويدخل في منخريه أيضا كذا في الظهيرية قال شمس الأئمة الحلواني وعليه عمل الناس اليوم كذا في المحيط (الفتاوى الهندية ١/١٥٨)

[७] والغسل بالماء الحار أفضل عندنا كذا في المحيط ويغلى الماء بالسدر أو بالحرض فإن لم يكن فالماء القراح كذا في الهداية (الفتاوى الهندية ١/١٥٨)

[८] ويغسل رأسه ولحيته بالخطمي وإن لم يكن فبالصابون ونحوه لأنه يعمل عمله هذا إذا كان في رأسه شعر اعتبارا بحالة الحياة كذا في التبيين فإن لم يكن فيكفيه الماء القراح كذا في شرح الطحاوي (الفتاوى الهندية ١/١٥٨)

[९] ( ويضجع على يساره ) ليبدأ بيمينه قال الشامي : قوله ( ويضجع الخ ) هذا أول الغسل المرتب وأما قوله وصب عليه ماء مغلي الخ وقوله وإلا فالقراح وقوله وغسل رأسه بالخطمي يفعل قبل الترتيب الآتي وعبارة الشرنبلالية ويفعل هذا قبل الترتيب الآتي ليبتل ما عليه من الدرن اهـ ط قلت لكن صريح البحر والنهر وغيرهما أن قوله وصب عليه ماء مغلي الخ ليس خارجا عن هذه الغسلات الثلاث الآتية بل هو إجمال لبيان كيفية الماء أي لبيان الماء الذي يغسل به وهو كونه مغلي بسدر لا باردا ولا قراحا وكذا قال في الفتح وإذا فرغ من الوضوء غسل رأسه ولحيته بالخطمي ثم يضجعه الخ ومثله في الجوهرة (رد المحتار ٢/١٩٦)

[१०] ( يضجع ) الميت ( على يساره فيغسل ) شقه الأيمن ابتداء لأن البداءة بالميامن سنة ( حتى يصل الماء إلى ما ) أي الجنب الذي ( يلي التخت ) بالخاء المعجمة ( منه ) أي الميت قال الطحطاوي : ويسن أن يصب الماء عليه عند كل إقعاد ثلاثا والزيادة جائزة للحاجة وإلا ينبغي أن يكون إسرافا كحال الحياة أفاده السيد (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح ص٥٦٩)

[११] ( واضجع على يساره فيغسل حتى يصل الماء إلى ما يلي التخت منه ثم على يمينه كذلك ) لأن السنة هي البداءة من الميامن والمراد بما يلي التخت منه الجنب المتصل بالتخت … ثم اعلم أن المصنف ذكر غسله مرتين الأولى بقوله واضجع على يساره فيغسل الثانية بقوله ثم علي يمينه كذلك (البحر الرائق ٢/١٨٦)

[१२] ثم يجلسه ويسنده إليه ويمسح بطنه مسحا رفيقا تحرزا عن تلويث الكفن فإن خرج منه شيء غسله ولا يعيد غسله ولا وضوءه (الفتاوى الهندية ١/١٥٨)

[१३] والحاصل أن السنة أنه إذا فرغ من وضوئه غسل رأسه ولحيته بالخطمي من غير تسريح ثم يضجعه على شقه الأيسر ويغسله وهذه مرة ثم على الأيمن كذلك وهذه ثانية ثم يقعده ويمسح بطنه كما ذكره ثم يضجعه على الأيسر فيصب الماء عليه وهذه ثالثة لكن ذكر خواهر زاده أن المرة الأولى بالماء القراح والثانية بالماء المغلي فيه سدر أو حرض والثالثة بالماء الذي فيه الكافور ولم يفصل صاحب الهداية في مياه الغسلات بين القراح وغيره وهو ظاهر كلام الحاكم وفي فتح القدير والأولى أن يغسل الأوليان بالسدر ولم يذكر المصنف كمية الصبات وفي المجتبي يصب الماء عليه عند كل إضجاع ثلاث مرات وإن زاد على الثلاث جاز (البحر الرائق ٢/١٨٦)

[१४] ثم ينشفه بثوب كيلا تبتل أكفانه (الفتاوى الهندية ١/١٥٨)

[१५] ثم يوضع الحنوط على رأسه ولحيته لما روي أن آدم صلى الله عليه وسلم عليه لمّا توفي غسلته الملائكة وحنطوه ويوضع الكافور على مساجده يعني جبهته وأنفه ويديه وركبتيه وقدميه لما روي عن ابن مسعود رضي الله عنه أنّه قال وتتبع مساجده بالطيب يعني بالكافور … ولا بأس بسائر الطيب غير الزعفران والورس في حق الرجل (بدائع الصنائع ٢/٤٠)

( قوله والكافور على مساجده ) يعني جبهته وأنفه وكفَيه وركبتيه وقدميه لفضيلتها لأنه كان يسجد بها للّه تعالى فاختصت بزيادة الكرامة والرجل والمرأة في ذلك سواء (الجوهرة النيرة ١/١٣٤)

حدثنا وكيع عن سفيان عن منصور عن إبراهيم قال إذا فرغ من غسله تتبع مساجده بالطيب (مصنف ابن أبي شيبة رقم ١١١٣٢)

[१६] قال الشامي : قوله ( وإلا فماء خالص مغلي ) أي إغلاء وسطا لأن الميت يتأذى بما يتأذى به الحي ط وأفاد كلامه أن الحار أفضل سواء كان عليه وسخ أو لا نهر (رد المحتار ٢/١٩٦)

 [१७] ( ويصب عليه الماء عند كل اضطجاع ثلاث مرات ) لما مر ( وإن زاد عليها أو نقص جاز ) إذ الواجب مرة قال الشامي : قوله ( ليحصل المسنون ) وهو تثليث الغسلات المستوعبات جسده إمداد قوله ( لما مر ) أي من قوله ليحصل السمنون ط قوله ( وإن زاد ) أي عند الحاجة لكن ينبغي أن يكون وترا ذكره في شرح مختصر الكرخي شرح المنية قوله ( قوله جاز ) أي صح وكره بلا حاجة لأنه إسراف أو تقتير (رد المحتار ٢/١٩٧)

Check Also

क़यामत की निशानियां – क़िस्त ५

दज्जाल के बारे में अहले सुन्नत वल-जमआत का ‘अकीदा दज्जाल की जाहिर होने और उसकी …