तलाक़ की सुन्नतें और आदाब – ५

तलाक़ के बाज़ मसाईल

(१) तलाक़ सिर्फ़ शौहर का हक़ है और सिर्फ़ शौहर तलाक़ दे सकता है. बिवी तलाक़ नहीं दे सकती है.

अलबत्ता अगर शौहर अपनी बिवी को तलाक़ देने का हक़ दे दे, तो इस सूरत में बिवी अपने आप को तलाक़ दे सकती है, लेकिन बिवी सिर्फ़ उसी मजलिस में अपने आप को तलाक़ दे सकती है जिस मजलिस में उस को तलाक़ का इख़्तियार दिया गया है, अगर वह अपने आप को उसी मजलिस में तलाक़ दे दे, तो तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी. [१]

(२) जब शौहर तलाक़ दे दे, तो तलाक़ तुरंत वाक़ेअ हो जाएगी. उस के बाद शौहर न तलाक़ को मनसूख़ कर सकता है और न बीवी उस को रद कर सकती है. [२]

(३) जब शौहर तलाक़ के अलफ़ाज़ कहे, भले वह लोगों के सामने कहे अथवा वह तन्हाई में कहे, भले वह बीवी की मौजूदगी में कहे अथवा वह उस की गैर मौजूदगी में कहे, तो इन तमाम सूरतों में से हर सूरत में तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी. [३]

(४) तलाक़ के वाक़ेअ होने के लिए शर्त नहीं है के शौहर गवाहों की हाज़री में दे, लिहाज़ा अगर शौहर एसी जगह में तलाक़ दे जहां कोई हाज़िर न हो, तब भी तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी. [४]

(५) अगर शौहर अपनी बिवी को मैसेज, ख़त, ईमेल तथा स्काईप वगैरह के ज़रीये तलाक़ दे, तो तलाक़ वाके़अ हो जाएगी. [५]

(६) अगर शौहर अपनी बीवी को एक साथ तीन तलाक़ दे दे (मषलन वह युं कहेः में ने तुम को तीन तलाक़ दी अथवा तुम को तीन तलाक़ें हैं अथवा में तुम को तीन तलाक़ें देता हुं), तो अगर चे एक साथ तीन तलाक़ देने से वह गुनेहगार होगा, लेकिन तीनों तलाक़ें वाक़ेअ हो जाऐंगी, ख़्वाह इस से पेहले शौहर ने बीवी से संभोग किया हो अथवा न किया हो. यह हुकम चारों मज़ाहिब (हनफिय्या, शाफिय्या, मालिकीय्या, और हनाबिला) के नज़दीक हैं. [६]

(७) अगर शौहर अपनी बीवी को तीन तलाक़ विविध रूप पर दे दे (मषलन वह युं कहेः तुम को तलाक़ हो, तुम को तलाक़ हो, तुम को तलाक़ हो अथवा में तुको तलाक़ देता हुं, में तुम को तलाक़ देता हुं, में तुम को तलाक़ देता हुं), तो अगर इस से पेहले शौहर ने बीवी से संभोग किया हो, तो तीनों तलाक़ें वाक़ेअ हो जाऐंगी.

अगर इस से पेहले शौहर ने बीवी से संभोग न किया हो, तो सिर्फ़ पेहली तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी (यह तलाक़ तलाक़े बाईन होगी जिस से बीवी तुरंत निकाह से निकल जाएगी). दूसरी और तीसरी तलाक़ वाक़ेअ नहीं होगी. [७]

(८) अगर कोई शख़्स अपनी बीवी को ग़ुस्से अथवा नशे की हालत में तलाक़ दे दे, तो गुस्से अथवा नशे की हालत में तलाक़ देने से तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी. [८]

(९) अगर बच्चा अथवा मजनून शख़्स अपनी बीवी को तलाक़ दे दे, तो इन दोनों की तलाक़ वाक़ेअ नहीं होगी. [९]

(१०) अगर कोई शख़्स अपनी बीवी को हालते इकराह में (ज़बरदस्ती की हालत में) तलाक़ दे दे (यअनी वह तलाक़ देने पर मजबूर हुवा अथवा जान अथवा माल से उस को घमकी दी गई, यहांतक के उस ने अपनी बीवी को तलाक़ दे दी), तो इस इकराह की सूरत में भी अगर वह तलाक़ दे दे, तो उस की तलाक़ वाक़ेअ हो जाएगी. [१०]

(११) शौहर को सिर्फ तीन तलाक देने का अधिकार है, इसलिए अगर शौहर तीन तलाक से ज्यादा तलाकें दे, तो सिर्फ तीन तलाकें वाक़े’ होगी।

(१२) तीसरी तलाक़ देने के बाद बीवी शौहर के लिए हराम हो जाएगी, इसलिए इस के बाद दोनों के लिए शौहर और बीवी की तरह रहना जायज़ नहीं होगा, लेकिन अगर दोनों दोबारा मिलना चाहें तो हलाला करना जरूरी होगा।

(१३) हलाला का शर’ई तरीक़ा यह है कि औरत इद्दत गुजारने के बाद किसी दुसरे शख्स से निकाह करे और उसके साथ संभोग करे। इसके बाद अगर यह दूसरा शौहर उस औरत को तलाक़ दे दे या उसका इन्तेकाल हो जाए, तो उस दूसरे निकाह की इद्दत गुजारने के बाद औरत के लिए पहले शौहर से निकाह करना जाइज़ होगा।

(१४) यदि निकाह के बाद पति ने अपनी पत्नी के साथ हमबिस्तरी नहीं की, और न ही उसके साथ एकांत में इतना समय बिताया कि जिस में उन दोनों के लिए हमबिस्तरी करना मुमकिन था, या उसने उस के साथ एकांत में इतना समय बिताया , जिसमें दोनों के लिए हमबिस्तरी करना मुमकिन था; लेकिन हमबिस्तरी करने में कोई रुकावट मौजूद थी, (जैसे, बीवी हैज़ की हालत में थी या कमरे में कोई शख्स मौजूद था), तो फिर इन सूरतों में से किसी सूरत में शौहर ने अपनी बीवी को तलाक दे दी, तो इस तलाक से एक तलाके बाईन वाके़’अ होगी और बीवी तुरंत उसके निकाह से निकल जाएगी।

उसके बाद अगर दोनों दोबारा मिलना चाहें तो दोनों मिल सकते हैं; लेकिन नया निकाह पढ़ना होगा नये महर के साथ।

(१५) अगर शौहर किसी शर्त पर तलाक को मु’अल्लक़ करे, (जैसे, वह अपनी बीवी से कहे: अगर तुम फलां जगह जाओगी, तो तुम को तलाक है या वह कहे: अगर तुम फलां से बात करोगी, तो तुम को तलाक है), तो इस सुरत में, जब शर्त पाई जाए, तो बीवी पर तलाक़ वाक’अ होगी।


[१] وأهله زوج عاقل بالغ مستيقظ (الدر المختار ۳/۲۳٠)

لأن الطلاق لا يكون من النساء (الدر المختار ۳/۱۹٠)

(قال لها اختاري أو أمرك بيدك ينوي) تفويض (الطلاق) لأنها كناية فلا يعملان بلا نية (أو طلقي نفسك فلها أن تطلق في مجلس علمها به) (الدر المختار ۳/۳۱۵)

[२] عن أبي هريرة قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم ثلاث جدهن جد وهزلهن جد النكاح والطلاق والرجعة (سنن الترمذي، الرقم: 1184، وقال: هذا حديث حسن غريب)

[३] ويقع طلاق كل زوج إذا كان عاقلا بالغا (الهداية ۲/۳۵۸)

[४] وفي البحر قيدنا الإشهاد بأنه خاص بالنكاح لقول الإسبيجابي: وأما سائر العقود فتنفذ بغير شهود ولكن الإشهاد عليه مستحب للآية (رد المحتار ۳/۲۱)

 ومعلوم أن الإشهاد على الفرقة ليس بواجب بل هو مستحب (بدائع الصنائع ۳/۱۸۱)

[५] وإن كانت مرسومة يقع الطلاق نوى أو لم ينو ثم المرسومة لا تخلو أما إن أرسل الطلاق بأن كتب أما بعد فأنت طالق فكلما كتب هذا يقع الطلاق وتلزمها العدة من وقت الكتابة (الفتاوى الهندية ۱/۳۷۸)

والبدعة أن يطلقها ثلاثا أو ثنتين بكلمة واحدة أو في طهر لا رجعة فيه أو يطلقها وهي حائض فيقع ويكون عاصيا (الاختيار لتع المختار3/122) [६]

إذا طلق الرجل امرأته ثلاثا قبل الدخول بها وقعن عليها (الفتاوى الهندية 1/373)

[७] ولا شك أن الإيقاع إن كان متفرقا يكون بالوقوع متفرقا لأن الوقوع على حسب الإيقاع لأنه حكمه والحكم يثبت على وفق العلة والدليل عليه أنه أوقع الثلاث في زمان ما بعد الشرط لأن الإيقاع هو كلامه السابق إذ لا كلام منه سواه وكلامه متفرق فإن قوله طالق كلام تام مبتدأ وخبر وقوله وطالق معطوف على الأول تابعا فيكون خبر الأول خبرا له كأنه قال أنت طالق وأنت طالق وأنت طالق وهذه كلمات متفرقة فيكون الأول متفرقا ضرورة فيقتضي الوقوع متفرقا وهو أن يقع الأول ثم الثاني ثم الثالث فإن لم تكن المرأة مدخولا بها فدخول الأول يمنع وقوع الثاني والثالث عقيبه لانعدام الملك والعدة (بدائع الصنائع 3/138)

[८] ويقع الطلاق من غضب خلافا لابن القيم اهـ وهذا الموافق عندنا لما مر في المدهوش (الدر المختار 3/244)

وطلاق السكران واقع (الهداية 1/224)

صح … (أو سكران) ولو بنبيذ أو حشيش أو أفيون أو بنج زجرا وبه يفتى تصحيح القدوري (الدر المختار 3/240)

[९] ويقع طلاق كل زوج إذا كان عاقلا بالغا ولا يقع طلاق الصبي والمجنون والنائم (الهداية 1/224)

[१०] طلاق المكره واقع سواء كان المكره سلطانا أو غيره أكرهه بوعيد متلف أو غير متلف (المبسوط للسرخسي 24/40)

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