मोहब्बत का बग़ीचा (उनतीसवां प्रकरण)‎

بسم الله الرحمن الرحيم

वालिदैन का अपनी औलाद के लिए अमली नमूना

नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला की तमाम मख़लूक़ में से सब से अफ़ज़ल और बरतर थे. अल्लाह तआला ने आप को अपना आख़री रसूल बना कर भेजा और आप को सब से बेहतरीन दीन, दीने इस्लाम अता फ़रमाया, जो इन्सान के लिए एक जामेअ और कामिल जिवन की संहिता है,

तथा जब कोई शख़्स आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक ज़िन्दगी पर नज़र ड़ाले, तो उस पर यह बात साफ़ तौर पर स्पष्ट होगी के अल्लाह तआला ने आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को उच्च दरजे के अख़लाक़ और शराफ़त से नवाज़ा था, ताकि आप की सुन्नते मुबारका ज़िन्दगी के तमाम विभागों में लोगों के लिए क़यामत तक बेहतरीन नमूना बन सके.

चुनांचे आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की मुबारक जिन्दगी का हर पेहलू सहाबए किराम और उम्मते मुस्लिमा के सामने बिलकुल नुमायां था, ख़्वाह आपकी घरेलू ज़िन्दगी जब आप घर में अपनी बिवीयों और बच्चों के साथ होते थे तथा आप की समाजी ज़िन्दगी जब आप लोगों के सामने मस्जीद में इमाम की हैषियत से थे तथा आप सेना के साथ मुजाहिदीन के सामने अमीर और सरदार की हैषियत में थे, इन सारे हालात में आपका मुबारक नमूना उम्मत के लिए हर एतेबार से एक कामिल और संपूर्ण मुसलमान के क़ाईद और सरदार हों, वह बेहतरीन अन्दाज़ से पेश आए और तमाम लोगों के लिए बेहतरीन गुणवत्ता क़ाईम की.

लिहाज़ा बच्चे की तरबियत में जब तक वालिदैन नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ज़िन्दगी के तर्ज़ को अपने जिवन में न अपनाए और आप के उच्च अख़लाक़ तथा शरीफ़ आदतों को न अपनाऐं और घर में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों पर ख़ुद अमल न करें, तो वह अपने बच्चे की तरबियत में सहीह रेहबरी न कर सकेंगे और उस का परिणाम यह है के वह अपने बच्चे की तरबियत में मतलुबा नताईज नहीं देखेंगे.

गर्ज़ यह के अपने जिवन में अगर हमारी ख़्वाहिश है के हम अपने बच्चों की अच्छी तरह तरबियत करे, तो हमारे लिए ज़रूरी है के हम नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के अख़लाक़ तथा आदात को अपनाए और आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों पर अमल करे क्युंके अगर सिर्फ़ ज़बानी तौर पर नसीहत और रेहनुमाई की जाए और ख़ुद उस पर अमल न किया जाए, तो उस का कोई अषर नहीं होता है.

अगर हम सहाबए किराम (रज़ि.) की ज़िन्दगीयों पर नज़र ड़ालें के उन्होंने अपनी औलाद को किस तरह से सिखाया था और किस तरीक़े से उन्होंने अपनी औलाद में अच्छी सिफ़ात पैदा की, तो हमारे सामने यह बात बिलकुल आशकारा होगी के सहाबए किराम (रज़ि.) ने जिस बात की तबलीग़ की उन्होंने उस पर अमल किया और उन की ज़िन्दगी के आमाल उन के शब्दों की मुख़ालफ़त नही करते थे. बलके  वह उन के लिए गवाह थे.

जिस तरह वालिदैन के ज़िम्मे लाज़िम है के वह तक़वा वाली ज़िन्दगी अपनाऐं, ताकि वह अपनी औलाद के लिए एक अमली नमूना बन सकें. इस तरह उन के ज़िम्मे लाज़िम है के वह अपने जीवन में अल्लाह तआला और मख़लूक़ के अधिकार पूरा करे, ताके वह इस शोबे कए विभाग में अपनी औलाद के लिए अधिकार की अदायगी का सहीह नमूना बन सके. तथा वालिदैन को चाहिए के वह अपनी औलाद में दीन की अच्छी सिफ़ात पैदा करे, भले दीन की जाहिरी तथा बातिनी या रूहानी सिफ़ातों. यह इस वजह से अत्यंत ज़रूरी है के जब वह लोगों के साथ बरताव करे.तो वह अच्छी बरताव करेंगे और वह इस्लामी आदाब के साथ पेश आऐंगे.

जब सूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने सहाबए किराम (रज़ि.) को दीन सिखाया, तो आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने यह बातें सिखाईं और आप की तालीमात जामेअ और संपूर्ण थी जो इन्सानी ज़िन्दगी के तमाम पेहलुवों और विभागों को शामिल थी.

हज़रत अनस (रज़ि.) रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के ख़ास ख़ादिम थे. आप को दस साल (हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की (वफ़ात तक) उन की ख़िदमत का शर्फ़ हासिल हुवा. इन दस सालों में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) उन के साथ प्यारो मोहब्बत से पेश आए और उन्हें दीन की तालीम दी.

हज़रत अनस (रज़ि.) फ़रमाते हैंः

में ने दस साल रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत अन्जाम दी, उस दौरान आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने कभी भी मुझे नहीं मारा, न ही कभी गाली दी, न ही मुझे ड़ांटा और न ही क्रोध से देखा.

इस सुनहरी नसीहतों और तालीमात में से जो नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उन्हें दी थीं, उन में से बाज़ चीज़ें नीचे नक़ल की जा रही हैंः

रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) और मख़लूक़ के अधिकार की अदायगी की तालीम

ए मेरे प्यारे बेटे ! मेरे राज़ को हंमेशा छुपाए रखना, तुम सच्चे मोमिन बन जावोगे. हज़रत अनस (रज़ि.) फ़रमाते हैं के मेरी वालिदा और आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की अज़वाजे मुतह्हरात आप का कोई राज़ पूछती थीं (जबके वह इस बात से बेख़बर थीं के जो बात आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने मुझे बताई थी वह एक राज़ था), लेकिन में उन्हें कुछ नहीं बताता था (बलके) में ने आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का कोई राज़ कभी भी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं किया.

नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने यह भी फ़रमाया था के ए मेरे प्यारे बेटे ! अगर तुम हंमेशा मुझ पर दुरूद भेज सकते हो, (तो ज़रूर भेजो), क्युंकि जब तक तुम दूरद भेजते रहोगे, फ़रिश्ते अल्लाह तआला से तुम्हारे लिए मग़फ़िरत की दुआ करेंगे.

ज़ाहिरी सफ़ाई की तालीम और नज़ाफ़त की महान फ़ज़ीलत

ए मेरे प्यारे बेटे ! मुकम्मल वुज़ू करने का प्रबंध करो, अगर तुम एसा करोगे, तो वह दो फ़रिश्ते (जो तुम्हारे आमाल लिख रहे हैं) तुम से मोहब्बत करेंगे और तुम्हारी ज़िन्दगी में बरकत होगी.

रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने मुझ से यह भी फ़रमाया के ए अनस ! जब तुम फ़र्ज़ ग़ुसल क लो, तो अपने बदन को अच्छी तरह धो लो, क्युंकि (अगर तुम अच्छी तरह ग़ुसल करोगे), तो तुम ग़ुसल ख़ाने से इस हाल में बाहर निकलोगे के तुम तमाम सग़ीरा गुनाहों से पाक होगे. में ने फिर पूछाः ए मेरे प्यारे बेटे ! अच्छी तरह ग़ुसल करना कैसा होगा? (यअनी मुझे कैसे यक़ीन होगा के में ने अपने बदन को अच्छी तरह धोया है?) आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)ने फ़रमायाः (जब तुम ग़ुसल करो, तो) तुम अपने बालों की जड़ों को तर करने का प्रबंध करो और बदन का खाल को अच्छी तरह रगड़ों

ए मेरे प्यारे बेटे ! अगर तुम हंमेशा बावुज़ू रेह सकते हो (तो ज़रूर रहो), क्युंके जिस का इन्तिक़ाल होता है वुज़ू की हालत में उस को शहादत का दरजा मिलता है.

Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=17946


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