क़ुर्आने करीम की सुन्नतें और आदाब – ३

क़ुर्आने मजीद की तिलावत की सुन्नतें और आदाब

(१) क़ुर्आने मजीद की तिलावत करने से पेहले इस बात का प्रबंध करें के आप का मुंह साफ़ हो.

हज़रत अली (रज़ि.) फ़रमता हे हैं के बेशख तुम्हारे मुंह क़ुर्आन मजीद के लिए रास्ते हैं (यअनी क़ुर्आने मजीद की तिलावत मुंह से की जाती है) , लिहाज़ा अपने मुंह को मिस्वाक से साफ़ किया करो.

(२) क़ुर्आने मजीद को अत्यंत अदबो एहतेराम के साथ पकड़ें और उस को सम्मान के साथ हंमेशा ऊंची जगह पर रखें. क़ुर्आने मजीद को ज़मीन पर न रखें अथवा किसी एसी जगह पर न रखें जो बेअदबी का कारण हो.

(३) क़ुर्आने मजीद के ऊपर कोई चीज़ न रखें, यहां तक के दीनी किताब भी क़ुर्आने मजीद पर न रखे.

(४) क़ुर्आने मजीद को बग़ैर वुज़ु के मत छूएं. क़ुर्आने मजीद को बग़ैर बुज़ू के छूना जाईज़ नहीं है.

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाय के क़ुर्आने मजीद को सिर्फ़ वह शख़्स छूए जो बावुज़ू हो.

(५) मुस्तहब यह है के क़ुर्आने मजीद पढ़ने वाला क़ुर्आने मजीद की तिलावत के वक़्त बावुज़ु हो, उस के कपड़े साफ़ हों और उस का रूख़ क़िब्ले की तरफ़ हो, लेकिन क़ुर्आने मजीद की तिलावत के वक़्त अगर क़ुर्आने मजीद पढ़ने वाला क़िब्ले की तरफ़ रूख़ न करे अथवा वह बावुज़ू न हो, तो कोई हरज नही है, बशर्त यह के वह क़ुर्आने मजीद को हाथ से न छुए.

(६) मोबाईल में देख कर बे वुज़ू क़ुर्आने मजीद पढ़ना जाईज़ है. अलबत्ता स्क्रीन के उस हिस्से को न छूऐं, जहां क़ुर्आने मजीद की आयतें हों.

नोटः यह बात ज़हन में रेहनी चाहिए के मोबाईल में देख कर क़ुर्आने मजीद की तिलावत करना अगर चे जाईज़ है, मगर क़ुर्आने मजीद ही से तिलावत करना बेहतर है, क्युंकि उस में क़ुर्आने मजीद की ज़्यादा अदबो एहतेराम है और यह क़ुर्आने मजीद पढ़ने का असल तरीक़ा है.

उस के विरूद्ध मोबाईल में देख कर क़ुर्आने मजीद की तिलावत करना अच्छा नहीं है, क्युंकि बहोत सी दफ़ा एसा होता है के मोबाईल में जानदार चीज़ों की तस्वीरें होती हैं, नीज़ मोबाईल के ज़रीए बहोत से गुनाह होते हैं, लिहाज़ा यह क़ुर्आने मजीद की बे हुरमती का सबब बन सकता है. इसलिए बेहतर यह है के क़ुर्आने मजीद मोबाईल में देख कर न पढा जाए.

लिहाज़ा क़ुर्आने मजीद की महानता और एहतेराम का तक़ाज़ा यह है के आदमी बावुज़ू क़ुर्आने मजीद में देख कर तिलावत करे.

(७) रोज़ाना क़ुर्आने मजीद की तिलावत के लिए कुछ समय नियुक्त कर लें.

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमायाः दिलों को भी ज़ंग लग जाता है, जैसा के लोहे को पानी लगने से ज़ंग लगता है. सहाबए किराम (रज़ि.) से पूछाः ए अल्लाह के रसूल ! उन की सफ़ाई की क्या सूरत है? आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः मौत को कषरत से याद करना और क़ुर्आने मजीद की तिलावत करना.

(८) क़ुर्आने मजीद के अधिकार में से एक अधिकार यह है के उस के मआनी में ग़ौर किया जाए, ताकि क़ुर्आने मजीद के अहकामात पर सहीह तरीक़े से अमल हो सके, लिहाज़ा आदमी को चाहिए के वह क़ुर्आने मजीद की तिलावत के साथ साथ उस की विभिन्न सूरतों के मआनी को भी सीखे.

लेकिन यह बात ज़हन में रखें के क़ुर्आने मजीद के मआनी समझने के लिए ज़रूरी है के आदमी किसी विश्वसनिय (मोअतबर) आलिम के पास जाए और उस की निगरानी में क़ुर्आने मजीद के मआनी सीखे, ताकि वह क़ुर्आने मजीद के मआनी को सहीह तरीक़े से समझ सके.

क़ुर्आने मजीद में अल्लाह तआला का इरशाद हैः

اَفَلَا یَتَدَبَّرُوۡنَ الۡقُرۡاٰنَ اَمۡ عَلٰی قُلُوۡبٍ اَقۡفَالُہَا ﴿۲۴﴾

तो क्या यह लोग क़ुर्आन (की आयात और मआनी) में ग़ौर नहीं करते तथा (उन के) दिलों पर ताले पड़े हुए हैं.

(९) क़ुर्आने मजीद की तिलावत शुरू करने से पेहले तअव्वुज़ (अऊज़ु बिल्लाह) पढ़ें.

अल्लाह तआला फ़रमाते हैंः

فَاِذَا قَرَاۡتَ الۡقُرۡاٰنَ فَاسۡتَعِذۡ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّیۡطٰنِ الرَّجِیۡمِ ﴿۹۸﴾

जब आप क़ुर्आन पढ़ने लगें, तो अल्लाह की पनाह मांगे शैतान मरदूद से.

(१०) जब तुम्हारा दिल क़ुर्आने मजीद की तिलावत की तरफ़ माईल हो, तो क़ुर्आने मजीद पढ़ते रहो और जब तुम थक जावो और तुम्हें महसूस हो के तुम्हारा दिल क़ुर्आने मजीद की तिलावत की तरफ़ माईल न हो, तो तुम तिलावत मौक़ुफ़ कर दो. फिर जब तुम्हारा दिल क़ुर्आने मजीद की तिलावत की तरफ़ माईल हो जाए, तो तुम तवज्जुह और दिल चस्पी के साथ तिलावत करो.

हज़रत जुनदुब बिन अब्दुल्लाह (रज़ि.) से रिवायत है के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के तुम क़ुर्आने मजीद पढ़ो जब तक तुम्हारे दिल (क़ुर्आने मजीद की तरफ़) मुतवज्जेह हो और जब तुम्हें महसूस हो के तुम्हारे दिल में मलाल आवे (यअनी थक जाने की वजह से तुम्हारे दिल तिलावत की तरफ़ माईल न हो), तो तुम उठ खड़े हो (यअनी तिलावत मौक़ूफ़ कर दो). (सहीह बुख़ारी)

(११) तजवीद और सहीह तलफ़्फ़ुज़ (उच्चारण) के साथ क़ुर्आने मजीद की तिलावत करें, यहांतक के अगर आप तेज़ी से भी क़ुर्आने मजीद की तिलावत कर रहे हों, तो इस बात का प्रबंध करें के आप हर शब्द तजवीद और सहीह तलफ़्फ़ुज़ (उच्चारण) के साथ अदा करें.

अल्लाह तआला फ़रमाते हैः

وَرَتِّلِ الۡقُرۡاٰنَ تَرۡتِیۡلًا

और आप क़ुर्आने मजीद को (इत्मीनान के साथ) ख़ूब साफ़ साफ़ पढ़ें.

एक रिवायत में आया है के एक मर्तबा एक शख़्स हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) के पास आया और कहा के में नमाज़ की एक ही रकअत में तमाम मुफ़स्सल सूरतें पढ़ता हुं (सुरए हुजुरात से सुरए बुरूज तक). उस की बात सुन कर हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) ने फ़रमायाः (शायद तुम) शेर (छंद) पढ़ने की तरह तेज़ी से क़ुर्आने मजीद पढ़ते होगे (यअनी तुम तजवीद की रिआयत के बग़ैर क़ुर्आने मजीद पढ़ते होगे). बेशक बाज़ लोग क़ुर्आने मजीद की तिलावत करेंगे, लेकिन वह उन के हलक़ से आगे नहीं बढ़ेगी (यअनी ग़लत पढ़ने की वजह से उन की तिलावत अल्लाह के यहां मक़बूल नहीं होगी अथवा यह के उन के दिलों पर क़ुर्आने मजीद की तिलावत का कोई अषर नहीं आएगा).

(१२) जब भी क़ुर्आने मजीद का नाम लें, तो अदबो एहतेराम के साथ लें. मषलन आप क़ुर्आने मजीद के लिए यह अलफ़ाज़ इस्तेमाल करेंः क़ुर्आने मजीद, क़ुर्आन शरीफ़ और क़ुर्आने पाक वग़ैरह कहें. मात्र “क़ुर्आन” न कहें.

(१३) क़ुर्आने मजीद को ख़ुश इलहानी (मधुर आवाज़) के साथ पढें, मगर मुग़न्नियों और गाने वालों की आवाज़ और तर्ज़ की नक़ल न करें.

हज़रत बरा बिन आज़िब (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के क़ुर्आने मजीद (की तिलावत) को अपनी आवाज़ों से मुज़य्यन (सज़ा हुवा) करो (क़ुर्आने मजीद को ख़ुश इलहानी (मधुर आवाज़) से पढ़ो).

हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के क़ुर्आने मजीद को अरबों की आवाज़ और तर्ज़ में पढ़ो औरअहले किताब और फ़ासिक़ लोगों की आवाज़ और तर्ज़ से बचो. जल्द ही मेरे बाद कुछ एसे लोग आऐंगे जो गाने वालों, राहिबों और नोहा करने वालों की तरह क़ुर्आने मजीद पढ़ेंगे, लेकिन क़ुर्आने मजीद उन के हलक़ से आगे नहीं बढ़ेंगे (यअनी ग़लत पढ़ने की वजह से उन की तिलावत अल्लाह के यहां मक़बूल नहीं होगी अथवा यह के उन के दिलों पर क़ुर्आने मजीद की तिलावत का कोई अषर नहीं आएगा) तथा उन के दिल और उन की क़िराअत सुन कर ख़ुश होने वालों के दिल फ़ितने में (दुनिया की मोहब्बत वग़ैरह में) मुबतला होंगे.

हज़रत अबु हरैरह (रज़ि.) से मरवी है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के जो शख़्स क़ुर्आने मजीद को ख़ुश इलहानी (मधुर आवाज़) से न पढ़े, वह हम में से नहीं है.

(१४) जब आप क़ुर्आने मजीद की तिलावत में व्यस्त हों, तो अपनी पूरी तवज्जुह क़ुर्आने मजीद की तरफ़ आकर्षित रखें. क़ुर्आने मजीद की तिलावत के दौरान बात चीत न करें, विशेष रूप से अगर क़ुर्आने मजीद खुला हो, तो हरगिज़ बात चीत न करें(क्युंकि यह क़ुर्आने मजीद के साथ बे अदबी है). अगर बात चीत की ज़रूरत पेश आए, तो पेहले पूरे अदबो एहतेराम के साथ क़ुर्आने मजीद बंद करें फिर बात करें.

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) के बारे में मनक़ूल है के जब वह क़ुर्आने मजीद की तिलावत फ़रमाते, तो वह किसी सी गुफग़तगु न करते, यहां तक के वह क़ुर्आने मजीद की तिलावत से फ़ारिग़ हो जाए.

(१५) जब आप क़ुर्आने मजीद के सफ़हात पलटते, तो सफ़हात पलटने के लिए ऊंगली पर लुआब न लगाऐं, क्युंकि यह क़ुर्आने मजीद के अदब के ख़िलाफ़ है.

(१६) क़ुर्आने मजीद के ख़तम के वक़्त दुआ करें, इस लिए के उस वक़्त दुआ क़बूल होती है.

हज़रत षाबित (रह.) फ़रमाते हैं के हज़रत अनस (रज़ि.) जब क़ुर्आने मजीद का ख़तम करते थे, तो वह अपने घर वालों और बच्चों को जमा करते थे और उन के लिए दुआ करते थे.

हज़रत इबराहीम तयमी (रह.) से रिवायत है के हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) ने फ़रमाया के जो शख़्स क़ुर्आने मजीद का ख़तम करे उस की दुआ क़बूल की जाती है (लिहाज़ा उसे चाहिए के वह क़ुर्आने मजीद के ख़तम के वक़्त दुआ करे). हज़रत इबराहीम तयमी (रह.) ने फ़रमाया के हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) जब क़ुर्आने मजीद का ख़तम फ़रमाते थे, तो वह अपने घरवालों को इकठ्ठा करते थे और वह दुआ करते थे और उन के घर वाले उन की दुआ पर आमीन केहते थे.

हज़रत हुमैद (रह.) फ़रमाते हैं के जो शख़्स क़ुर्आने मजीद पढ़े (यअनी वह क़ुर्आने मजीद का ख़तम करे) और उस के बाद दुआ करे, उस की दुआ पर चार हज़ार फ़रिश्ते आमीन केहते हैं.

(१७) जनाबत की हालत और हैज़ की हालत में क़ुर्आने मजीद की तिलावत करना जाईज़ नहीं है. अलबत्ता जनाबत की हालत और हैज़ की हालत में इन आयतों को पढ़ना जाईज़ है जो दुआवों पर मुश्तमिल है. इसी तरह इन आयतों की तिलावत करना भी जाईज़ है जो शयातीन तथा जिन्नात वग़ैरह से हिफ़ाज़त के तौर पर पढ़ी जाती हैं.

यह बात ज़हन में रख़ें के जब वह जनाबत की हालत और हैज़ की हालत में इन आयतों को पढ़ेंगे, तो उस वक़्त सिर्फ़ दुआ और इस्तिआज़ा (अल्लाह तआला से तलबे हिफ़ाज़त) की निय्यत से पढ़ें, तिलावत की निय्यत से न पढ़ें, क्यंकि जनाबत की हालत और हैज़ की हालत में क़ुर्आने मजीद को तिलावत की निय्यत से पढ़ना जाईज़ नहीं है.

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाय के जो इन्सान हैज़ की हालत और जनाबत की हालत में हो, वह क़ुर्आने मजीद के किसी भी हिस्से की तिलावत न करे.

(१८) बयतुल ख़ला में क़ुर्आने मजीद की किसी आयत की तिलावत करना जाईज़ नहीं है, इसी तरह बयतुल ख़ला में अल्लाह तआला का नाम लेना जाईज़ नहीं है. नीज़ अगर अंगूठी अथवा चेन पर क़ुर्आन मजीद की कोई आयत लिखी हुई हो अथवा उस पर अल्लाह तआला का नाम लिखा हुवा हो, तो उस को लेकर बयतुल ख़ला में जाना जाईज़ नहीं है. बलके बयतुल ख़ला में दाख़िल होने से पेहले उस का उतार देना ज़रूरी है.

हज़रत अनस (रज़ि.) से रिवायत है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) जब बयतुल ख़ला में दाख़िल होने का इरादा फ़रमाते, तो दा़खिल होने से पेहले आप अपनी अंगूठी को निकाल देते थे, (क्युंके उस पर अल्लाह तआला का नाम लिखा हुवा था).

(१९) अगर आप किसी एसे कमरे में हों जहां क़ुर्आन मजीद रखा हुवा हो और आप अपना कपड़ा बदलना चाहें, तो कपड़ा उतारने से पेहले आप क़ुर्आने मजीद को अदब के साथ अलमारी वग़ैरह में रख दें, उस के बाद आप अपना कपड़ा उतारे. क़ुर्आन मजीद के सामने कपड़ा न उतारे, क्युकि क़ुर्आन मजीद के सामने कपड़ा उतारना क़ुर्आने मजीद की बेअदबी है.

(२०) अगर आप किसी सजदे की आयत की तिलावत करें अथवा आप किसी से सजदे की आयत की तिलावत सुनें, तो आप पर सजदए तिलावत करना वाजिब होगा.

सजदए तिलावत करने का तरीक़ा यह है के आप पेहले तकबीर कहें और फिर आप सजदे में जाऐं फिर आप दोबारा तकबीर कहें और सजदे से उठ जाऐं.

मुस्तहब यह है के आप खड़े हो जाऐं फिर तकबीर केह कर सजदे मे जाए, लेकिन अगर आप बैठ जाएं फिर तकबीर केह कर सजदे में जाऐं, तो यह भी दुरूस्त है.

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के जब इब्ने आदम किसी सजदे की आयत की तिलावत करता है और उस के बाद वह सजदा करता है, तो शैतान रोता है और वह दूर हो जाता है और केहता हैः हाय मेरी हलाकत ! इब्ने आदम को सजदा करने का हुकम दिया गया, तो उस ने सजदा किया पस उस के लिए जन्नत है (यअनी उस को जन्नत मिलेगी) और मुझे सजदा करने का हुकम दिया गया, लेकिन में ने इनकार कर दिया पस मेरे लिए जहन्नम की आग है (यअनी मुझे जहन्नमें ड़ाला जाएगा).

(२१) जब आप क़ुर्आन मजीद का ख़तम करें और सूरए नास तक पहों जाऐं, तो मुस्तहब यह है के आप दोबारा क़ुर्आने मजीद की तिलावत शुरू कर दें, इस तरह से के आप सुरए फ़ातिहा और सुरए बक़रा की इब्तिदाई आयतें (अल मुफ़लिहून तक) पढ़ें.

(२२) क़ुर्आने मजीद के खतम पर निम्नलिखित दुआ पढ़ेंः

اَللّٰهُمَّ ارْحَمْنِيْ بِالْقُرْآنْ وَاجْعَلْهُ لِيْ إِمَاماً وَّهُدًى وَّرَحْمَةً اَللّٰهُمَّ ذَكِّرْنِيْ مِنْهُ مَا نَسِيْتُ وَعَلِّمْنِيْ مِنْهُ مَا جَهِلْتُ وَارْزُقْنِيْ تِلَاوَتَهُ آنَاءَ اللَّيْلِ وَأَطْرَافَ النَّهَارِ وَاجْعَلْهُ لِيْ حُجَّةً يَا رَبَّ الْعَالَمِيْنَ

ए अल्लाह ! मुझ पर क़ुर्आन मजीद के ज़रीए अपनी ख़ुसूसी रहमत नाज़िल फ़रमा और उस को मेरे लिए रेहनुमा, हिदायत और रहमत बना. ए अल्लाह ! मुझे याद दिला दे क़ुर्आने मजीद के उस हिस्से को जो में भूल चुका हुं और मुझे सिखा दे क़ुर्आने मजीद के उस हिस्से को जो में नहीं जानता हुं और रात तथा दिन के विभिन्न समयो में मुझे क़ुर्आने मजीद की तिलावत करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा और उस को (क़यामत के दिन) मेरे लिए हुज्जत तथा दलील बना दे ए तमाम जहानों के परवरदिगार.

(२३) अगर आप ने क़ुर्आन मजीद का कुछ हिस्सा याद कर लिया है, तो हंमेशा उस का दौर करें, ताके आप उस को न भूलें, इस लिए के हदीष शरीफ़ में नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने क़ुर्आन मजीद की तिलावत में ग़फ़लत बरतने और उस को याद करने के बाद भूल जाने के बाारे में सख़्त वईदें सुनाई है.

हज़रत अबु मूसा अशअरी (रज़ि.) से रिवायत है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के क़ुर्आन मजीद की हिफ़ाज़त करो. क़सम है उस ज़ात की जिस के क़बज़े में मेरी जान है, यह (क़ुर्आन मजीद) लोगों के सीनों से निकल जाने में उस ऊंट से ज़्यादा तेज़ है जो अपनी रस्सी में बंधा हुवा हो. (सहीहल बुख़ारी)

हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि.) से रिवायत है के हुज़ूरे अकरम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के मेरे सामने मेरी उम्मत के (नेक आमाल के) अजरो षवाब पेश किए गए. यहां तक के वह तिनका भी जो आदमी मस्जीद से निकालता है (उस का षवाब भी मुझे दिखाया गया) और मेरे सामने उम्मत के गुनाह पेश किए गए, तो में ने उस शख़्स के गुनाह से बड़ा कोई गुनाह नहीं देखा जिस को क़ुर्आने मजीद की कोई सूरत अथवा आयत याद करने हुई और फिर वह उस को भूल गया. (अबू दावूद शरीफ़)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से मरवी है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के साहिबे क़ुर्आन (हाफ़िज़े क़ुर्आन) की मिषाल उस शख़्स की तरह है जिस ने अपने ऊंट को बांध रखा हो. अगर वह उस की निगरानी करता रहेगा, तो वह उस के पास रहेगा और अगर उसे छोड़ देगा तो वह भाग जाएगा. (सहीहल बुख़ारी)

हज़रत सअद बिन उबादा (रज़ि.) से रिवायत है के हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसलल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के जो शख़्स भी क़ुर्आने मजीद पढ़ना सीख लेता है और फिर उसको भूल जाता है, तो वह अल्लाह तआला से क़यामत के दिन उस हाल में मुलाक़ात करेगा के वह मजज़ूम (कोढ़ी) होगा. (अबु दावूद)

नोटः

(१) इस हदीष शरीफ़ में क़ुर्आने मजीद की किसी आयत अथवा सूरत को भुल जाना बदतरीन गुनाह बताया गया है. इस की वजह यह है के क़ुर्आने मजीद अथवा क़ुर्आने मजीद का कोई हिस्सा याद होना अल्लाह तआला की एक बड़ी नेअमत है, फिर क़ुर्आने मजीद को भुल जाना गोया के यह अल्लाह तआला की इस महान नेअमत की बड़ी नाक़दरी है.

(२) बाज़ उलमाए किराम ने बताया है के यह वईद जो हदीष शरीफ़ में वारिद हुई है, यह उस शख़्स के बारे में है जो क़ुर्आने मजीद को भूल जावे (यअनी वह उस की तिलावत में ग़फ़लत बरत ले और जो कुछ उस को याद था वह उस को भूल जावे).

(३) दूसरे उलमाए किराम की राय यह है यह वईद उस शख़्स के बारे में है जो क़ुर्आने मजीद की तिलावत में इस क़दर ग़फ़लत बरत ले, यहां तक के वह क़ुर्आने मजीद पढ़ने पर क़ादिर न रहे (यअनी वह सिर्फ़ क़ुर्आने मजीद को नहीं भूलता है, बलके वह उस के पढ़ने पर भी क़ादिर न रेहता है).


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