क़ुर्आने करीम की सुन्नतें और आदाब – १

उम्मत का सब से महान इन्आम

अल्लाह सुब्हानहु वतआला ने उम्मते मुहम्मदिया अला साहिबिहा अलफ़ अलफ़ सलातो सलाम को एक एसा समुन्दर अता किया है जिस का कोई साहिल नहीं है. यह समुन्दर प्रकार प्रकार के हीरे, जवाहिरात, मोतियों और अनमोल ख़ज़ानों से भरा हुवा है. जो व्यक्ति जितना ज़्यादा इस समुन्दर में ग़ौता लगाता रहे और क़ीमती चीज़ें निकालता रहे, वह उतना ज़्यादा फ़ायदा उठाएगा. यह एक एसा समुन्दर है जिस का पानी कभी भी ख़ुश्क नहीं होगा, बलके यह इन्सान को दुनिया और आख़िरत दोनों में फ़ायदा पहोंचाने वाला है और हर प्रकार की सआदतों से नवाज़ने वाला है. यह समुन्दर कौनसा समुन्दर है? यह समुन्दर क़ुर्आने करीम है.

क़ुर्आने करीम नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की उम्मत पर अल्लाह सुब्हानहु वतआला का सब से अज़ीम इन्आम है. यह अल्लाह तआला का कलाम है और दुनिया की कोई नेअमत उस का मुक़ाबला नहीं कर सकती है.

जब तक उम्मत क़ुर्आने करीम की तालीमता (शिक्षाओं) पर क़ाईम रहेगी और उस के अधिकारों को अदा करती रहेगी “क़ुर्आने करीम” उन के लिए दुनिया और क़बर में नूर और रोशनी का ज़रीया बनेगा. तथा क़यामत के दिन मैदाने हशर में उन के साथ रहेगा, यहां तक के उन को जन्नत में ले जाएगा.

घर में क़ुर्आने पाक की तिलावत करना

हदीष शरीफ़ में बयान किया गया है के जिस घर में क़ुर्आने पा की तिलावत की जाती है, उस घर में अल्लाह तआला की एसी बरकतें होती हैं के फ़रिश्तें वहां विपूलता से आते हैं और उस घर में अल्लाह तआला की विशेष रहमतें नाज़िल होती है.

हज़रत उबादा बिन सामित (रज़ि.) की हदीष में मनक़ूल है के जिस घर में क़ुर्आने पाक की तिलावत होती है उस के ऊपर नूर का ख़ैमा होता है जिस से आसमान वाले (फ़रिश्ते) रेहनुमाई हासिल करते हैं, जिस तरह रोशन सितारों के ज़रीए गेहरे समुन्दरों और रेगिस्तान और जंगल में मार्गदर्शन हासिल की जाती है (यअनी मुसाफ़िर उन सितारों से मार्गदर्शन हासिल करते हैं). [१]

एक दूसरी हदीष में आया है के जिस घर में क़ुर्आने करीम की तिलावत की जाती है वह घर अहले ख़ाना के लिए वसीअ हो जाता है (यअनी वह तिलावत अहले ख़ाना के लिए बरकात हासिल करने का ज़रीया बन जाता है), उस में फ़रिश्ते आते हैं और शैतान उस से भाग जाते हैं और उस में ख़ैरो बरकत बढ़ जाती है और वह घर जिस में क़ुर्आने करीम की तिलावत नहीं होती है, उस घर में (अहले ख़ाना के लिए) जिवन तंग हो जाता है, फ़रिश्ते उस घर से निकल जाते हैं उस में शैतान का बसेरा हो जाता है और वह घर ख़ैर से महरूम हो जाता है. [२]

रात का तिलावत के विशेष समय की प्रतिक्षा करना

एक रिवायत में वारिद है के जो शख़्स क़ुर्आने पाक का इल्म हासिल करता है (तथा क़ुर्आने पाक के किसी हिस्से का इल्म हासिल करता है) फिर वह रात के किसी वक्त में उस क़ुर्आन को नफ़ल नमाज़ में पढ़ता है, तो वह रात आने वाली रात को ख़बर देती है के तुम उस बंदे के क़ुर्आने पाक के पढ़ने के उस विशेष वक़्त के लिए प्रतिक्षा करो और तुम उस के साथ अच्छा बरताव करो (ताकि वह बंदा आनन्द और खुशी के साथ नमाज़ में तिलावत तथा इबादत कर सके).

मौत के बाद क़ुर्आने पाक की बरकतें

जिस तरह इन्सान क़ुर्आने पाक की बरकतों से अपनी दुन्यवी जीवन में फ़ैज़याब होता है, इसी तरह वह क़ुर्आने पाक की बरकतों से आख़िरत में भी मुस्तफ़ीद होता है. क़ुर्आने पाक इन्सान को क़बर और आख़िरत में फ़ायदा पहोंचाता है, यहांतक के वह उस को जन्नत में दाख़िल करा देता है.

एक रिवायत में आया है के जब साहिबे क़ुर्आन इन्तिक़ाल कर जाता है, तो नूर का ख़ैमा (जो उस के घर को उस के जिवन में मुनव्वर करता था) ज़मीन से उठा लिया जाता है, फ़रिश्ते आसमान से उस नूर को तलाश कर के देखते हैं, लेकिन उन्हें वह नूर नज़र नहीं आता है.

उस के इन्तेक़ाल के बाद जब उस की रूह आसमान तक पहोंचती है, तो हर आसमान के फ़रिश्ते उस से मुलाकात करते हैं और वह उस से ख़ूश हो कर उस के लिए दुआए रहमत करते हैं फिर वह (रूह) उन फ़रिश्तों से मिलती हैं जो उस (रूह) की सुरक्षा पर मामूर होते थे. फिर वह सब फ़रिश्ते उस के लिए क़यामत के दिन तक इस्तिग़फ़ार करते हैं.

क़बर में सुरक्षा

एक रिवायत में वारिद है के जब साहिबे क़ुर्आन का इन्तिक़ाल हो जाता है और उस के घर वाले उस की तजहीज़ो तकफ़ीन के लिए तय्यारी करते हैं, तो उस समय क़ुर्आने मजीद अत्यंत ख़ूब सूरत शकल में उस के पास आता है और उस के सरहाने खड़ा हो जाता है, (फिर वह उस की सुरक्षा करता है और उस को तसल्ली देता है) और जब उस को अपने कफ़न में रखा जाता है, तो क़ुर्आने मजीद उस के कफ़न में उस के साथ दाख़िल हो जाता है और उस के सीने के साथ लग जाता है.

जब उस शख़्स को क़बर में रखा जाता है और मिट्टी उस पर ड़ाली जाती है और उस के तमाम दोस्तो अहबाब उस को छोड़ कर चले जाते हैं, तो मुनकर और नकीर उस के पास आते हैं और उस को क़बर में बिठाते हैं, उस समय भी क़ुर्आने मजीद उस के पास आता है और वह उस के और मुनकर और नकीर के दरमियान आता है.

तो वह दोनों फ़रिश्ते क़ुर्आने मजीद से केहते हैः तुम एक तरफ़ हो जावो, ताकि हम उस से सुवाल कर सकें, तो क़ुर्आने मजीद उन को जवाब देता है और केहता है में यहां से कदापी नहीं हटूंगा, कअबा के रब की क़सम ! यह बंदा दुनिया में मेरा साथी और दोस्त था, लिहाज़ा में किसी सूरत में उसे नहीं छोड़ूंगा, अगर तुम दोनों को किसी बात का हुकम दिया गया है, तो तुम वह काम कर लो जिस का तुम्हें हुकम दिया गया है, लेकिन मुझे यहां छोड़ दो, ताकी में उस के साथ रहुं, क्युंकि में उस से उस वक़्त तक अलग नहीं होवुंगा, जब तक उसे जन्नत में दाख़िल न करा दुं.


[१] ورواه ابن أبي الدنيا وغيره عن عبادة بن الصامت موقوفا عليه ولعله أشبه كذا في الترغيب والترهيب للمنذري ۱/ ۲٤۵

[२] سنن الدارمي، الرقم: ۳۳۵۲، ورجاله رجال البخاري إلا معاذ بن هانئ وحفص بن عنان وكلاهما ثقة

[३] ورواه ابن أبي الدنيا وغيره عن عبادة بن الصامت موقوفا عليه ولعله أشبه كذا في الترغيب والترهيب للمنذري ۱/ ۲٤۵

[४] ورواه ابن أبي الدنيا وغيره عن عبادة بن الصامت موقوفا عليه ولعله أشبه كذا في الترغيب والترهيب للمنذري ۱/ ۲٤۵

[५] ورواه ابن أبي الدنيا وغيره عن عبادة بن الصامت موقوفا عليه ولعله أشبه كذا في الترغيب والترهيب للمنذري ۱/ ۲٤۵

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