हज्ज और उमरह की सुन्नतें और आदाब – २

हज्ज और उमरे के फ़ज़ाईल

अहादीषे मुबारका में सहीह तरीक़े से हज्ज और उमरा अदा करने वाले के लिए बहोत सी फ़ज़ीलतें वारिद हुई हैं और उस के लिए बहोत से वादे के किए गए हैं. ज़ैल में कुछ फ़ज़ीलतें बयान की जाती हैं, जो अहादीषे मुबारका में वारिद हुई हैंः

(१) हाजी उस हाल में लौटता है के उस के सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैंः

हज़रत अबु हुरैरह (रजि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जिस शख़्स ने (अल्लाह तआला की रिज़ा के लिए) हज्ज किया और कोई बेहूदा बात नहीं की और न ही कोई बुरा काम किया, तो वह (गुनाहों से पाक तथा साफ़ हो कर) उस दिन की तरह लोटेगा, जिस दिन वह मां के पेट से पैदा हुवा था.” [१]

(२) मक़बूल हज्ज का षवाब जन्नत हैः

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “मक़बूल हज्ज का षवाब सिर्फ़ जन्नत है.” [२]

(३) हज्ज ग़ुरबत को दूर करती हैः

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “हज्ज और उमरा एक साथ किया करो, क्युंकि यह दोनों ग़ुरबत दूर करते हैं और गुनाहों से पाक करते हैं, जिस तरह भट्टी लोहे, चांदी और सोने से गंदगी दूर करती है.” [३]

(४) हुज्जाजे किराम अल्लाह तआला के नुमाईन्दे हैंः

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “हज्ज और उमरह अदा करने वाले अल्लाह तआला के नुमाईन्दे हैं. अगर वह अल्लाह तआला से किसी चीज़ की दुआ करें, तो अल्लाह तआला उन को अता फ़रमाऐंगे और अगर वह अल्लाह तआला से मग़फ़िरत तलब करें, तो अल्लाह तआला उन की मग़फ़िरत फ़रमाऐंगे.” [४]

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) की दूसरी रिवायत में है के रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “मुजाहिद, हाजी और उमरह करने वाले अल्लाह तआला के नुमाईन्दे हैं, अगर वह अल्लाह तआला से दुआ करें, तो अल्लह तआला उन की दुआ क़बूल फ़रमाऐंगे और अगर वह अल्लाह तआला से किसी चीज़ का सवाल करें, तो अल्लाह तआला उन को अता फ़रमाऐंगे.” [५]

(५) अल्लाह तआला का हाजियों से ख़ुश होनाः

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) फ़रमाते हैं के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “अरफ़ा के दिन अल्लाह सुब्हानहु वतआला फ़रिश्तों के सामने हाजियों से अपनी ख़ुशी और रज़ामंदी का इज़हार फ़रमाते हैं और अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाते हैंः मेरे बंदो को देखो ! वह मेरे पास परागंदा बाल और ग़ुबार आलूद हो कर आए हैं.” [६]

(६) हाजियों की दुआ का क़बूल होनाः

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जब तुम हाजी से मिलो, तो उस को सलाम करो, उस से मुसाफ़हा करो और उस से दरख़्वासत करो के वह उस के घर में दाख़िल होने से पेहले तुम्हारे लिए मग़फ़िरत और बख़शिश की दुआ करें, क्युंकि उस की दुआ क़बूल की जाएगी, इस लिए के अल्लाह सुब्हानहु वतआला ने उस के सारे गुनाह माफ़ कर दिए.” [७]

(७) दस रबीउल अव्वल तक हाजियों की मग़फ़िरतः

हज़रत उमर (रज़ि.) फ़रमाते हैं के “दस रबीउल अव्वल तक हाजी की मग़फ़िरत की जाती है और उन लोगों की मग़फ़िरत की जाती है, जिन के लिए हाजी मग़फ़िरत की दुआ करते हैं.” [८]

(८) उमरह गुनाहों को मिटाता हैः

हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “एक उमरह दूसरे उमरह तक गुनाहों का कफ़्फ़ारा है (जो उन के दरमियान में किए गए हों) और मक़बूल हज्ज का षवाब जन्नत ही है.” [९]


‏[१] صحيح البخاري، الرقم: ۱٤٤۹

[२] صحيح البخاري، الرقم: ۱٦۸۳

[३] سنن الترمذي، الرقم: ۸۱٠، وقال: حديث ابن مسعود حديث حسن صحيح غريب

[४] سنن ابن ماجه، الرقم: ۲۸۹۲، الترغيب والترهيب، الرقم: ۱٦۹۹، قال البوصيري في مصباح الزجاجة ۳/۱۸۳: هذا إسناد ضعيف، صالح بن عبد الله قال فيه البخاري منكر الحديث رواه البيهقي في سننه الكبرى من طريق إبراهيم بن المنذر الحزامي فذكره بتمامه

[५] سنن ابن ماجة، الرقم: ۲۸۹۳، قال البوصيري في مصباح الزجاجة ۳/۱۸۳: هذا إسناد حسن، عمران مختلف فيه رواه ابن حبان في صحيحه عن الحسن بن سفيان عن الحسن عن سهل عن عمران بن عيينة فذكره بإسناده ومتنه ورواه البيهقي من هذا الوجه فوقفه ولم يرفعه وروى النسائي في الصغرى الشطر الأول من حديث أبي هريرة

[६] المستدرك على الصحيحين للحاكم، الرقم: ۱۷٠۸، وقال الذهبي: هذا حديث صحيح على شرط الشيخين ولم يخرجاه

[७] مسند أحمد، الرقم: ۵۳۷۱، قال الهيثمي في مجمع الزوائد، الرقم: ۵۹۲۷: رواه أحمد وفيه محمد بن البيلماني وهو ضعيف

[८] المصنف لابن أبي شيبة، الرقم: ۱۲۸٠٠، وفي سنده ضعف كما في الأجوبة المرضية للسخاوي ۳/۱٠٤۳

[९] صحيح البخاري، الرقم: ۱۷۷۳

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