Monthly Archives: August 2021

मोहब्बत का बग़ीचा (बारहवां प्रकरण)‎

हम दुआ गो हैं के अल्लाह तआला हमारी औरतों में सिफ़ते “हया” को ज़िन्दा फ़रमाऐं और उन्हें नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों और अज़वाजे मुतह्हरात के तरीक़ों पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमायें. आमीन...

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इस्लाम में कलिमे की हक़ीक़त

हक़ीक़ी इस्लाम यह है के मुसलमान में “ला ईलाह इलल्लाह” की हक़ीक़त पाई जाए. और उस की हक़ीक़त यह है के उस का एतेक़ाद करने के बाद अल्लाह तआला की बंदगी का अज़मो इरादा दिल में पैदा हो...

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फ़रिश्तों का नबिए करीम (सल्लल्लाहुअलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में दुरूदो सलाम पहोंचाना

“नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की उम्मत में से जो शख़्स भी नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूदो सलाम भेजता है, फ़रिश्ते उस को नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में पहोंचाते हैं और अर्ज़ करते हैं के फ़लां इब्ने फ़लां ने आप पर सलाम भेजा है और फ़लां इब्ने फ़लां ने आप पर दुरूद भेजा है.”...

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जुम्आ के दिन कषरत से दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की दुआ

हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “रोशन रात और रोशन दिन में (जुम्आ की रात और जुम्आ के दिन) मुझ पर कषरत से दुरूद भेजो, क्युंकि तुम्हारा दुरूद मेरे सामने पेश किया जाता है, तो में तुम्हारे लिए दुआ और अस्तग़फ़ार करता हुं.”...

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आशूरा की महत्तवता

सवाल – कुछ लोगों का अक़ीदा है के मुहर्रम का महीना हज़रत हुसैन (रज़ि.) की शहादत पर सोग (ग़म) मनाने का महीना है और कुछ लोगों का ख़्याल है के मुहर्रम का महीना ख़ुशी मनाने और अहले ख़ाना (घर वालों) पर फ़राख़ दिली (दिल ख़ोल कर) से ख़र्च करने का …

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दुरूद शरीफ़ जमा करने के लिए फ़रिश्तों का दुनिया में सैर करना

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के "बेशक अल्लाह सुब्हानहु वतआला के बहोत से फ़रिश्ते हैं, जो ज़मीन में फिरते रेहते हैं और मुझे मेरी उम्मत का सलाम पहोंचाते हैं."...

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हज़रत हुसैन (रज़ि.) के लिए आशूरा के दिन रोज़ा रखना

सवाल – क्या हम हज़रत हुसैन (रज़ि.) को षवाब पहोंचाने के लिए आशूरा के मोक़े पर रोज़ा रख सकते हैं? क्या उस का कोई ख़ास फ़ायदा या षवाब है जो अल्लाह तआला हमें अता फ़रमाऐंगे?

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सिर्फ़ दसवी मोहर्रम को रोज़ा रखना

सवाल – क्या सिर्फ़ दसवीं मोहर्रम को रोज़ा रखना दुरूस्त है? यअनी अगर कोई व्यक्ति नव या ग्यारह मोहर्रम को रोज़ा न रखे, बलके सिर्फ़ दस मोहर्रम को रोज़ा रखे, तो क्या यह अमल दुरूस्त होगा?

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