“ए अल्लाह ! तेरे ही लिए हम्द है जो तेरी शान के मुनासिब है पस तु मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद भेज जो तेरी शान के मुनासिब है और हमारे साथ भी वह मामला कर जो तेरी शायाने शान हो. बेशक तु ही उस का मुस्तहिक़ है के तुझ से ड़रा जाए और मग़फ़िरत करने वाला है.”...
और पढ़ो »दूसरे अंबिया (अलै.) के साथ रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद भेजना
जब तुम अंबिया (अलै.) पर दुरूद भेजो, तो उन के साथ मुझ पर दुरूद भेजो, क्युंकि में भी रसूलों में से एक रसूल हुं...
और पढ़ो »दुरूद न पढ़ने की वजह से क़यामत के दिन हसरत तथा अफ़सोस का कारण
हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़्वाब में ज़ियारत हुई के हुज़ूरे अकद़स (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में शिब्ली हाज़िर हुए, हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) खड़े हो गए और उन की पेशानी को बोसा दिया और मेरे इसतिफ़सार (बहोत ज़्यादा पूछने) पर हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के...
और पढ़ो »हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) का विशेष दुरूद
ए अल्लाह ! मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की शफ़ाअते कुबरा (जब लोग मैदाने हशर में परेशानी के आलम में होंगे) और उन का दरजा बुलंद फ़रमा और दुनिया और आख़िरत में उन की आरज़ू पूरी फ़रमा, जिस तरह तू ने हज़रत इब्राहीम (अलै.) और मूसा (अलै.) को अता फ़रमाया है...
और पढ़ो »उम्मत का दुरूद नबी (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को पहोंचना
अपने घरों को क़ब्रस्तान न बनावो (घरों को नेक आमालः नमाज़, तिलावत और ज़िक्र वग़ैरह से आबाद रखो. उन को क़ब्रस्तान की तरह मत बनावो जहां नेक आमाल नही होते हैं) और मेरी क़बर को जशन की जगह मत बनावो और मुझ पर दुरूद भेजो, क्युंकि तुम्हारा दुरूद मेरे पास (फ़रिश्तों के ज़रीए) पहोंचता है, चाहे तुम जहां कहीं भी हो...
और पढ़ो »नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की शफ़ाअत
नुज़हतुल मजालिस में लिखा है के बाज़ सुलहा में से एक साहब को हबसे बौल हो गया(पेशाब रूक गया). उन्होंने सपने में आरिफ़ बिल्लाह हज़रत शैख़ शिहाबुद्दीन इब्ने रसलान को जो बड़े ज़ाहिद और आलिम थे देखा और उन से...
और पढ़ो »एक दुरूद पर दस नेकियां
“जो शख़्स मुझ पर दुरूद भेजता है, उस का दुरूद मेरे पास पहोंचता है (फ़रिश्तो के ज़रीए से) और में (भी) उस के दुरूद का जवाब देता हुं और उस के अलावह उस के लिए दस नेकियां (भी) लिखी जाती हैं.”...
और पढ़ो »हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) का विशेष दुरूद
अबु बकर बिन मुजाहिद अल मुक़री नव मौलूद के वालिद के साथ उठे. वज़ीर के दरवाज़े पर पहोंचे. अबु बकर ने वज़ीर से कहा उस आदमी को तेरे पास रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने भेजा है. वज़ीर खुशी से उठ खड़ा हुवा उसे अपनी जगह पर बिठाया और पूरा क़िस्सा पूछा. उस को पूरा ख़्वाब सुनाया...
और पढ़ो »ग़फ़लत की जगहों में दुरूद शरीफ़ पढ़ना
“ए मेरे भतीजे ! मेरी किताब “अश शिफ़ा बितअरीफ़ि हुक़ूक़िल मुस्तफ़ा” को मज़बूती से पकड़ लो और उस को अल्लाह तआला के नज़दीक मक़बूलियत हासिल करने का ज़रीआ बनावो.”...
और पढ़ो »अज़ान के बाद दूसरी दुआ
ए अल्लाह ! मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को “वसीला”(पूरी उम्मत के लिए सिफ़ारिश का हक़) अता फ़रमा, उन को मक़ामे इल्लिय्यीन में बुलंद दरजा नसीब फ़रमा, मुनतख़ब (गिने चुने) बंदो के दिलों में उन की मोहब्बत ड़ाल दे और मुक़र्रब लोगों के साथ उन का ठिकाना बना...
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